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________________ ४५२ लोक-प्रज्ञप्ति m ललंत-लाम गललाय वरभूसणाणं, सन्नयपासाणं, संगत-पासाणं, सुजायपासाणं, पीपर-बल-किडीगं, ओलम्ब - पलम्ब-लक्खण- पमाण - जुत्त-रमणिज्जवालपुच्छा, -सुम-सुजाय-षिद्ध-लोमच्छविहराणं, मिउ-विसय २ -सुहुम-लक्खण-पसत्थ विच्छिण्णं केसरवालिहराणं, ललंत-थासग - ललाड-वरभूसणाणं, मुमण्डल-ओचूलग चामर- वासग परिमण्डिस कडीण, तवणिज्ज- खुराणं, जि-जीहाणं, तालु तिर्यक् लोक ज्योतिषिकदेव वर्णन : जोजोइया, कामगमाणं जाव मणोरमाणं, अमिअगईणं, पूरेंता अमिअ-बल-वीरिअ पुरिसक्कारपरक्कमाणं, महया महेसिन किलकिलाइव रवेण मगहरे अन्यरं दिखाओ व सोभयन्ता बसारि देवसाहस्सी हयवधारणं देवागं उत्तरितं बाई परिवति, गाहाबी सोलसदेवसहस्सा हवंति चंबेसु वेव सूरेसु । अव सहरसा एक्केक्कम गहविमाणे ॥ चत्तारि सहस्सा गमि अवंति विक दो चेव सहस्साई, तारारूवेक्कमेक्कमि ॥ एवं सुरयमाणानं जाय ताराख्य विमाषाण' वरंएस देवसंचालि - जंबु. वक्ख. ७, सु. १६६ प० - एवं णक्खत्तविमाणस्स वि पुच्छा ? जिनके गले में, श्रेष्ठ आभूषण लटक रहे हैं, सन्नत-संगत एवं सुन्दर पार्श्व वाले, पुष्ट गोलस्थित कट वाले, लटकती हुई लम्बी लक्षण एवं प्रमाणयुक्त रमणीय केशों की पूंछ वाले, पतली-सूक्ष्म- सुन्दर स्निग्ध ( चिकनी ) श्याम रोमराजी वाले, कोमल - विशाल बारीक प्रशस्त लक्षणयुक्त विस्तृत अयाल (गर्दन के बाल ) वाले, जिनके ललाट पर दर्पणाकार श्रेष्ठ आभूषण बँधे हुए हैं, मुखमण्डल (मुंह पर पहराने का आभूषण लम्बे नामर तथा दर्पणाकार आभूषणों से परिमण्डित कटि वाले, वाले, सूत्र ६४७ १ प० एवं सुरविमाणस्स वि पुच्छा ? उ०- गोयमा ! सोलसदेवसाहस्सीओ परिवहति पुव्वकमेणं । प० -- एवं गहविमाणस्स वि पुच्छा ? उ०- गोवमा ! अटुदेव साहसीओ परिवहति पुण्यकमेणं । दो देवा साहसीओ पुरित्यमिवं बाह परिवहति । दो देवा साहसीओ दल बाहं परिवहति । दो देवा साहसीओ पच्चत्थिमित्वं वाहं परिवहति । तप्त स्वर्ण सदृश खुरों वाले तप्त स्वर्ण सदृश जिल्ला वाले, तप्त स्वर्ण सदृश तालु वाले, तप्त स्वर्ण सदृश जोतों से जुते हुए । इच्छानुसार गति वाले बाबत् मनोरम अमित गति अमित त्रल- - वीर्य पौरुष एवं पराक्रम वाले, महान् हिनहिनाट तथा मनहर कल-कल ध्वनि से पूरित आकाम एवं दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार अश्व रूपधारी देव उत्तर की बाहु का वहन करते हैं । गावार्थ चंद्र और सूर्य के विमानों का वहन सोलह सोलह हजार देव करते हैं, प्रत्येक ग्रह विमान का वहन आठ आठ हजार देव करते हैं। प्रत्येक नक्षत्र - विमान का वहन चार-चार हजार देव करते हैं, प्रत्येक तारा- विमान का वहन दो दो हजार देव करते हैं । इसी प्रकार सूर्यविमानों का यावत्-तारा विमानों का वहन कहते है । - दो देवा साहसीओ स्वधारिण उत्तरित्वं वा परिवहति । (क्रमश:)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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