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________________ सूत्र ६४८ तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन गणितानयोग ४५३ चन्द-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाईणं देवाणं काम- चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र तथा तारारूप आदि देवों के काम भोगा भोग--- ६४८. ५०-चंदिम-सूरिया णं भंते ! जोइसिदा जोइसरायाणो ६४८. प्र०—हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र-सूर्य केरिसए कामभागे पच्चणुभवमाणा विहरंति? किस प्रकार के काम-भोगों का अनुभव करते हुए विहरते हैं ? उ०-गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाण- उ०—हे गौतम ! जिस प्रकार युवावस्था के प्राथमिक बलत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलत्थाए भारियाए सद्धि उत्थान वाले बलवान् किसी पुरुष को युवावस्था के प्राथमिक अचिरवत्तविवाहकज्जे। उत्थान वाली बलवती किसी भार्या के साथ विवाह हुए कुछ ही समय हुआ हो। अत्थगवेसणाए सोलसवासविप्पवासिए, से णं तओ वह धन कमाने के लिए सोलह वर्ष पर्यन्त के प्रवास में लद्ध? कयकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि नियग गिहं धन कमाने का कार्य पूर्ण करके निर्विघ्न अपने घर शीघ्र हव्वमागए। आया हो । व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सव्वा- स्नान, बलिकर्म, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करके समस्त लंकार विभूसिए, अलंकारों से विभूषित हो । मणुण्णं थालिपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाकुलं भोयणं भुत्ते मनोज्ञ, थाली में पकाया हुआ शुद्ध, अठारह प्रकार के समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि वण्णओ महब्बले व्यंजनों से युक्त भोजन भोगकर महाबल के उद्देशक में वणित(भग. स. ११, उ. ११)-जाव-सयणोवयारकलिए ताए यावत्-शयनोपचारयुक्त वासगृह में शृंगार एवं मनोहर वेषयुक्त तारिसियाए भारियाए सिंगारागार चार वेसाए-जाव- -यावत्-ललित कलायुक्त, अनुरक्त, अत्यन्तरागयुक्त, मन के कलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकूलाए सद्धि अनुकूल उस भार्या के साथ इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंधइतै सद्दे फरिसे रसे रूवे गंधे पंचविहे माणुस्सए काम- इन पाँच प्रकार के काम-भोग भोगता हुआ रहता है, भोगे पच्चणुभवमाणे विहरेज्जा। ५०-से णं गोयमा ! पुरिसे विओसमणकालसमयंसि केरि- प्र०-हे गौतम ! वह वेद उपशमन काल में किस प्रकार के सयं सायासोक्खं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? सुख का अनुभव करता हुआ विहरता है ? उ०-'ओरालं समणाउसो !" तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स उ०-हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस पुरुष के उदार कामभोएहितो वाणमंतराणं देवाणं एतो अणंतगुण- काम-भोगों से वाणव्यन्तर देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्टविसिट्टतरा चेव कामभोगा। तर हैं। - (क्रमशः) उ०.-गोयमा ! चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति । सीहरूवधारीणं देवाणं पंचदेवसया पुरथिमिल्लं बाहं परिवहति । एवं चउद्दिसि पि । -जीवा. प. ३, उ. २, सु. १६८ यहाँ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के १६६वें सूत्र में और टिप्पण में दिये गये जीवाभिगम के १६८वें सूत्र में चन्द्र-विमान का वहन करने वाले देवों का वर्णन है, इनमें सिंह, गज, वृषभ और अश्वरूपधारी देवों के वर्णक है, इन वर्णक सूत्रों में लोकप्रसिद्ध पूर्वादि चार दिशाओं का कथन नहीं है किन्तु चन्द्रविमान के सन्मुखभाग को पूर्व, पृष्ठभाग को पश्चिम, दायें भाग को दक्षिण और बायें भाग को उत्तर माना गया है । इन वर्णक सूत्रों के सम्बन्ध में टीकाकार आचार्य का अभिमत इस प्रकार है : "एषु च चतुर्व पि विमानबाहा-बाहक-सिहादिवर्णकसुत्रेषु कियन्तिपदानि प्रस्तुतोपांगसूत्रादर्शगतपाठानुसारीण्यपि श्रीजीवाभिगमोपांगसूत्रादर्शपाठानुसारेण व्याख्यातानि, न च तत्र वाचनाभेदात् पाठभेदः सम्भवतीतिवाच्यम् । यतः श्रीमलयगिरीपादे “जीवाभिगमवृत्तावेव" क्वचित् सिंहादीनां वर्णनं दृश्यते तद्वहुषु पुस्तकेषु न दृष्टिमित्युपेक्षितं, अवश्यं चेत्तद् व्याख्यानेन प्रयोजनं तहि जम्बूद्वीप टीका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तद् व्याख्यानस्य कृतत्वादित्यतिदेशविषयीकृतत्वेन द्वयोः सूत्रयोः सदृशपाठकत्वमेव सम्भाव्यत इति । यत्तु जीवाभिगमपाठदृष्टान्यपि-"मिअ-माइअ-पीण-रइअपाससाण" मित्यादि पदानि न व्याख्यातानि तत् प्रस्तुतसूत्रे सर्वथा अदृष्टत्वात्, यानि च पदानि प्रस्तुतसूत्रादर्शपाठे दृष्टानि तान्येव जीवाभिगमपाठानुसारेण संगतपाठीकुत्य व्याख्यातानीत्यर्थः ।।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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