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________________ सूत्र ६४७ तिर्यक लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन गणितानुयोग ४४६ अम्बरं दिसाओअसोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ आकाश एवं दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार गयरूबधारीणं देवाणं दक्खिणिल्लं बाहं परिवहंतीत्ति, गजरूपधारी देव दक्षिण की बाह का वहन करते हैं। चन्दविमाणस्स पच्चत्थिमे णं, चन्द्रविमान के पश्चिम में, सेआणं सुभगाणं सुप्पभाएं चल-चवल-ककुह सालोणं, श्वेत शुभग सुप्रभ-चलायमान चपल ककुद से सुशोभित, घण निचिअ-सुबद्ध-लक्खणुण्णय-ईसिआणय-वसभोट्ठाणं, सघन पुष्ट सुबद्ध सुलक्षणयुक्त कुछ झुके हुए श्रेष्ठ ओष्ठ वाले, चंकमिअ-ललिअ-पुलिअ-चल-चवल-गब्विअगईणं, कुटिलगति-ललितगति-आकाशगति-चक्रवालगति-चपलगति एवं गवित गति वाले, सन्नतपासाणं संगतपासाणं सुजायपासाणं, सन्नत और संगत पावं वाले, सुरचित पार्श्व वाले, पोवर-वट्टिअ-सुसंठिअ-कडीणं, पुष्ट गोल एवं सुसंस्थित कटि वाले, ओलंब-पलंब-लक्खणपमाणजुत्त-रमणिज्जवाल गण्डाणं, लटकती हुई-लम्बी-लक्षण एवं प्रमाणयुक्त-रमणीय रोमराजि बाले, समखुरं-बालिधाणाणं, समान खुर और समान पूंछ वाले, समलिहिअ-सिंगतिक्खग्गसंगयाणं, एक से अलिखित एवं तीक्ष्ण शृंगाग्र वाले, तणु-सुहम-सुजाय-णिद्ध-लोमच्छविधराणं, पतली-सूक्ष्म-सुन्दर एवं स्निग्ध रोमराजि वाले, उवचिअ-मंसल-विसाल-पडिपुण्ण-खंधपएस-सुन्दराणं, बढ़े हुए मांसल-विशाल-प्रतिपूर्ण एवं सुन्दर स्कन्धप्रदेश वाले, वेरुलिअ-भिसंत-कडक्ख-सुनिरिक्खणाणं, वैडूर्यमणि के समान चमकदार कटाक्ष पूर्ण निरीक्षण करने बाले, जुत्तपमाण, पहाण-लक्खण-पसत्थ-रमणिज्ज-गग्गर- प्रधान प्रमाणयुक्त प्रशस्त लक्षणयुक्त एवं रमणीय गलगलियों गल्लेसोभिआणं से सुशोभित गले वाले, घरघरग-सुसह-बद्ध-कंठ-परिमण्डिआणं, मधुर ध्वनिवाली धुंघरूमालाओं से परिमंडित कंठ वाले, णाणामणि-कणग-रयण-घटिआ-वेगच्छिग-सुकयमालि- नाना प्रकार के मणिरत्न एवं स्वर्ग से सुरचित घंटियों की याणं, माला धारण करने वाले, . वरघंटा-गलय-मालुज्जल-सिरिधराणं, श्रेष्ठ घण्टाओं की चमकती हुई सुशोभित गलमालायें धारण करने वाले, पउमुप्पल-सगल-सुरभि-मालाविभूसिआणं, सभी सुगन्धित कमल-पुष्पमाला वाले, बइर खुराणं, वज्रमय खुरों वाले, विविहविक्खुराणं, विविध खुरों वाले, फालियामय दंताणं, स्फटिकमय दाँतों वाले, तवणिज्ज-जीहाणं, तप्त स्वर्ण सदृश जिह्वा वाले, तवणिज्ज-तालुआणं, तप्त स्वर्ण सदृश तालु वाले, तवणिज्ज-जोत्तगसुजोइयाणं, तप्त स्वर्ण सदृश जोतों से जुते हुए, कामगमाणं, पीइगमाणं मणोगमाणं, मणोरमाणं अमि- इच्छानुसार चाल बाले, प्रीतिकर गति वाले, मन के समान अगईणं, चंचल गति वाले, मनोरम मनोहर अमित गति वाले, अमिय-बल-वीरिअ-पुरिसक्का रपरक्कमाणं, अमित बल-वीर्य-पुरुषार्थ एवं पराक्रम वाले, महयागज्जिअगम्भीर-रवेणं, महुरेणं, मणहरेणं, पूरेता महान गम्भीर गर्जना के मधुर मनहर शब्दों से पूरित अंबरं दिसाओ य सोभयन्ता चत्तारि देवसाहस्सीओ आकाश एवं दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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