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________________ ४४८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन सूत्र ६४७ अमिअ-बल-वीरिअ-पुरिसक्कार-परक्कमाणं, अप्फोडिअ- अमित बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम वाले, महासिंहनाद की सीहणाय-बोल-कलकल-रवेणं, महुरेणं, मणहरेण, पुरता ध्वनि के मधुर मनहर कलकलरव से पूरित आकाश एवं दिशाओं अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ को सुशोभित करते हुए सिंहरूपधारी चार हजार देव पूर्वी बाहु सीहरूवधारीणं पुरित्थिमिल्लं बाहं वहंति, का वहन करते हैं। चंदविमाणस्स णं दाहिणे ण सेआणं सुभगाणं सुप्पभाणं चन्द्रविमान के दक्षिण में श्वेत सुभग सुप्रभ शंखतल के संखतल-विमल-निम्मल-दधिधन - गोखीरफेण - रयय- समान विमल, निर्मल दधिपिण्ड, गोदुग्ध फेन तथा रजतरागि के णिगरप्पगासाणं, समान प्रकाशमान, वइरामय कुम्भजुअल सुट्ठिअ-पीवर-वरवइर सोंड बट्टि- वज्रमय कुंभयुगल (गण्डस्थल) वाले, सुस्थित श्रेष्ठ पुष्ठ अ-दित्त-सुरत्त-पउमप्पगासाणं, अब्भुण्णय-मुहाणं, वज़मय गोल शुण्ड से दैदिप्यमान-रक्तकमल सदृश उन्नत मुख वाले, तवणिज्जविसाल कण्णं चंचलचलंत-विमलुज्जलाणं, तप्त स्वर्ण सदृश विशाल-चंचल-चलायमान-विमल-उज्ज्वल कर्ण वाले, महुवष्ण-भिसंत-णिद्ध-पत्तल-निम्मल-तिवण्णमणिरयण मधु सदृश वर्ण से दैदीप्यमान-स्निग्ध-पिगल-भोहों से युक्त लोअणाणं ___एवं विवर्ण के मणि-रत्नमय-निर्मल लोचन वाले । अब्भुग्गय-मउल-महिला-धवल-सरिस-संठिअ-णिव्वण- उन्नत-कलिकायें तथा चमेली-पुष्प-सदृश श्वेत, एक समान बढ-कसिण-फालियामय-सुजाय-दंतमुसलो व सोभिआणं, सुन्दराकार-व्रणरहित-दृढ़-सर्वफटिकमय-सुन्दर दन्तमूसल वाले । कंचणकोसीपविट्ठ-दंतग्ग-विमल मणिरयण-रुइल-पेरंत- विमलमणि-रत्नमय-सुन्दर-विचित्र-चित्रचित्रित-स्वर्णमय कोशी चित्तरूवग-विराइआणं, में प्रविष्ट दन्तान वाले, तवणिज्ज-विसालतिलग-प्पमुह-परिमंडिआणं, नाना- तप्त स्वर्णसदृश वर्ण के विशाल तिलकादि से परिमण्डित, मणि-रयण-मुद्ध-गेविज्ज-बद्ध-गलय-वरभूसणाणं, नाना प्रकार के मणि-रत्न-जटित गले के आभूषणों से बद्ध ग्रीवा वाले, वेरुलिअ-विचित्त-दण्ड-निम्मल-वइरामय-तिक्ख-लटु- वैडूर्यमय विचित्र दण्ड एवं निर्मल वज्रमय अंकुश युक्त कुंभअंकुस-कुम्भजुयलंतरोडिआणं, युगल वाले, तवणिज्ज-सुबद्ध-कच्छ-दप्पिअ-बलुद्धराणं, स्वर्णमयी रज्जु के बद्ध एवं मदमत्त उत्कट बल वाले, विमलघणमण्डल-वइरामय-लालाललियताणं, निर्मल निविडघन मण्डल वाली, णाणामणियरण-घंट पासग-रजतामय-बद्ध-रज्जु-लंबिअ- नानामणि-रत्नमय-पाववर्ती घंटा वाली, रत्नमय रज्जु से घंटाजुअल-महुरसरमणहराणं, बँधे हुए एवं लटकते हुए घटायुगल के मधुर स्वर से मनहर, अल्लोणपमाणजुत्त-वट्टिअ-सुजाय-लक्खण-पसत्य-रमणि- संलग्न-प्रमाणयुक्त-गोल-सुन्दर-प्रशस्त लक्षण एवं रमणीय ज्ज-वालगत-परिपुछणाणं, वालों से युक्त पूछ से गात्र पूछने वाले, उवचिअ-पडिपुण्ण-कुम्मचलण-लहुविक्कमाणं, मांसल-प्रतिपूर्ण कूर्म जैसे चरणों से शीघ्र गति वाले, अंक मय-णखाणं, अंकरत्नमय- नख वाले, तवणिज्ज-जीहाणं, तप्त स्वर्ण वर्ण जैसी जिह्वा वाले, तवणिज्ज तालुआणं, तप्त स्वर्ण वर्ण जैसे तालु वाले, तवणिज्ज-जोत्तग-सुजोइआणं, तप्त स्वर्ण वर्ण जैसे जोतों से जुते हुए, कामगमाणं, पोइगमाणं, मणोगलाणं मणोरमाणं, इच्छानुसार चाल वाले, प्रीतिकर चाल वाले, मन के जैसी अमिअगईणं, वेगवती गति वाले, मनोरम,-मनोहर-अमित गति वाले, अमिअबलवीरिय-पुरिसक्कारपरक्कमाणं, अमितबल-वीर्य-पुरुषार्थ एवं पराक्रम वाले, महया गम्भीर-गुलगुलाइत-रवेणं, महुरेणं, मणहरेणं, पूरेता अति गम्भीर-गुलगुलायित, मधुर और मनोहर शब्दों से पूरित,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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