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________________ सूत्र ६४७ - - चंद सूर-गह णक्खत्त-ताराण विमाण वाहगदेवाणं चन्द्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र और ताराविमानवाहक देवों की संख्या सखा ४७. १० -- चंदविमाणे णं भंते ! कति देवसाहस्सीओ परिवहंति ? उ०- गोयमा ! सोलसदेवसाहस्सीओ परिवहतीति । तिर्यक् लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन चंदविमाणस्स णं पुरत्थिमेणं सेआणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल-विमल-निम्मल-दधिघण-गोखीर फेण-रययणिगरप्पवासार्थ विर-ल-प-पीपर-सिसि विसिद्ध तिक्खदाढाविडंबिअ मुहाणं, रसुप्यपसमय माला-जहा महूगुलि-पिगलमखागं, वइरामयणक्खाणं, वइरामय-दाढाणं, पीवरवरोरू पडिपुण्ण-विउल-खंधाणं, मिउविसय-सुम - लक्खणपसत्थ- वरवण्ण- केसर सडोवसो हिला गं ऊसिय-सुन मिय- सुजाय- अप्फोडिअ लंगूलाणं, बहरामप-दंताणं, सज्जीहाण, तवणिज्जन-तालुआणं, तणिज्ज-जोगिया, उ०- गाहाओ , कामगमाणं, पीइगमाणं, मणोगमाणं, मणोरमाणं, अमिअ-गईणं, (ख) जीवा० प० ३, उ० २, सु० १६७ ॥ गणितानुयोग ~ ४७. प्र० - हे भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? ४४७ उ० - हे गौतम! सोलह हजार देव वहन करते हैं— चन्द्रविमान के पूर्व में स्वेत सुभग सुप्रभ, शंखतल के समान विमल, निर्मल-दधिपिण्ड - गोदुग्धफेन ( झाग ) एवं रजतराशि के समान प्रकाशमान कान्त कठोर गोल पुष्ट छिद्ररहित तीक्ष्णदादाओं से युक्त बुने हुए मुंह वाले, दृढ़ रक्तकमलपत्र के सदृश अतिकोमल-तालु एवं जिह्वा वाले, गांड मधु पिण्ड के सह-पीली आंखों वाले, स्थूल एवं विशाल जंपा वाले प्रतिपूर्ण विशाल वाले वज्रमय नखों वाले, वज्रमय दाढाओं वाले, वज्रमय दाँतों वाले, तप्त स्वर्ण सदृश जिह्वा वाले, तप्त स्वर्ण सदृश तालु वाले, तप्त स्वर्ण जोत वाले, कोमल लम्बे पतले प्रशस्त लक्षणयुक्त केशर वर्ण वाले स्कन्ध पर फैले हुए सुशोभित केशों वाले । इच्छानुसार गमन करने वाले समान वेगवती गति वाले, मनोरम ऊपर उठी हुई कुछ झुकी हुई एवं भूमि पर उछलती हुई सुशोभित पूँछ वाले, "वृत्त वस्तुनः सद्दशायाम - विष्कम्भात्" परिक्षेपस्तु स्वयमभ्यूः वृत्तस्य स्त्रिगुणः परिधिरिति प्रसिद्धः । यह स्पष्टीकरण जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के वृत्तिकार ने ऊपर लिखित सूत्र का दिया है। (ग) चंद० पा० १८, सु०६४ | उपरणं खलु भारवि बंद हो । अट्ठावीस भाए बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ १ ॥ अयाली भए, विवरण, सूरमंद होइ चवीसं खलु भाए, बाल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ २ ॥ दो कोसे अगहाणं, णक्खत्ताण तवई तस्सद्ध । तस्सद्ध ताराणं, तसद्ध चेव बाहल्ले || ३ | -जम्बु० वक्ख० ७ सु० १६५. " एकस्य प्रमाणागुलं योजनस्यैकपष्टी भागीकृतस्य षट्पंचाशता भागैः समुदिते यावत्प्रमाणं भवति तावत्प्रमाणोऽस्य विस्तार:" प्रीतिकर गति वाले, मन के मनहर अमित गति वाले,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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