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________________ ४४६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन सूत्र ६४६ केवइयं परिक्खेवे गं, परिधि कितनी है ? केवइयं बाहल्ले पण्णत्ते ? बाहल्य कितना है ? कहें, उ०–ता छप्पण्णं एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभे गं, उ०-एक योजन के इगसठ भागों में से छप्पन भाग जितना है। तं तिगुण सविसेस परिक्खेवे णं, इससे तिगुणी परिधि है। अट्ठावीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्ले णं पण्णत्ते', एक योजन के इगसठ भागों में से अट्ठावीस भाग जितना है। ५०-ता सूरविमाणे णं केवइयं आयाम-विक्खभे ण? प्र०-सूर्य विमान का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? केवइयं परिक्खेवेणं? परिधि कितनी है ? केवइयं बाहल्ले णं पण्णते? बाहल्य कितना है ? उ०–ता अडयालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-वियखभे उ.-एक योजन के इगसठ भागों में से अड़तालीस भाग जितना है। तं तिगुणं सबिसेस परिक्खेवे ण इससे तिगुणी परिधि है। चउब्वीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्ले ण पण्णत्त', एक योजन के इगसठ भागों में से चौबीस भाग जितना है। १०–ता गहविमाणे णं केवइयं आयाम-विक्खंभे गं? प्र०-ग्रहविमान का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? केवइयं परिक्खेवे णं? परिधि कितनी है ? केवइयं बाहल्ले ण पण्णत्ते ? वाहल्य कितना है? उ०-ता अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभे णं, उ०- आधे योजन का आयाम-विष्कम्भ है। तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवे णं, इससे तिगुनी परिधि है। कोसं बाहल्ले ण पण्णत्ते, एक कोस का बाहल्य है। प०–ता णक्खत्तविमाणे णं केवइयं आयाम-विक्खभे थे? प्र०-नक्षत्र विमान का आयाम-विष्कम्भ कितना है? केवइयं परिक्खेवेणं? परिधि कितनी है ? केवइयं बाहल्लेणं? बाहल्य कितना है? उ०—ता कोसं आयाम-विक्खभे णं, उ०-एक कोस का आयाम-विष्कम्भ है । तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवे णं, इससे तिगुनी परिधि है। अद्धकोसं बाहल्ले णं पण्णत्ते. आधे कोस का बाहल्य है। ५०–ता ताराविमाणे णं केवइयं आयाम-विक्खंभेणं? प्र०–तारा विमान का आयाम-विष्कम्भ कितना है ? केवइयं परिक्खेवे गं? परिधि कितनी है ? केवइयं बाहल्ले गं? वाहल्य कितना है? उ०–ता अद्धकोस आयाम-विक्खंभेणं उ० --आवे कोस का आयाम-विष्कम्भ है । तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवेणं, इससे तिगुनी परिधि है। पंचधणुसयाइ बाहल्ले णं पण्णत्ते ।। पाँच सौ धनुष का बाहल्य है। -सूरिय० पा० १८, सु० ६४ -सम. ६१, सु.३ १ (क) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १४७ । (ख) चंदमंडले णं एगसद्धिविभाग-विभाइए समंसे पण्णत्ते, इस सूत्र से यह स्पष्ट है कि चंद्र विमान और चंद्र मण्डल एक ही है। २ (क)-सम. ६१, सु. ४ । (ख) सम. १३, सु. ८ । ३ (क) प०-चंदविमाणे ण भंते ! केवइयं आयाम-विक्खभणं ? केवइयं बाहल्ले ? (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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