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________________ ४३४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र में ज्योतिषिदेव सूत्र ६३२ लवणसमुद्दे जोइसिया देवा लवणसमुद्र में ज्योतिष्क देव९३२. (१) प०-ता लवणसमुद्दे ६३२. (१) लवणसमुद्र मेंकेवइया चंदा पभासिसु वा, पभासिति वा, कितने चन्द्र प्रभासित हुए थे, प्रभासित होते हैं और प्रभापभासिस्संति वा? ___सित होंगे? (२) ५०-केवइयं सूरा विसु वा विति वा, तविस्संति वा? (२) प्र०-कितने सूर्य तपाते थे, तपाते हैं और तपाएँगे? (३) प०-केवइया गहा चारं चरिंसु वा, चरंति वा, चरि- (३) प्र०—कितने ग्रह गति करते थे, गति करते हैं और स्संति वा? गति करेंगे? (४) ५०-केवइया णक्खत्ता जोगं जोइंसु वा, जोएंति वा, (४) प्र०-कितने नक्षत्र योग करते थे, योग करते हैं और जोइस्संति वा? योग करेंगे? (५) प०- केवइया तारागण कोडाकोडीओ सोभं सोभेसु वा (५) प्र०—कितने कोटाकोटी तारागण सुशोभित होते थे, सोभंति वा सोभिस्संति वा? सुशोभित होते हैं और सुशोभित होंगे? (१) उ०-ता लवणसमुद्दे (१) उ०-लवणसमुद्र मेंचत्तारि चन्दा पभासिसु वा, पभासिति वा, पभा- चार चन्द्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं और प्रभासित सिस्संति वा, होंगे। (२) उ०-चत्तारि सूरिया तविसु वा, तविति वा, तवि- (२) उ०-चार सूर्य तपाते थे, तपाते हैं और तपाएँगे । स्संति वा, (३) ७०-तिण्णि वावण्णा महग्गहसया चारं रिसुवा, (३) उ०-तीन सौ बावन महाग्रह गति करते थे, गति चरंति वा, चरिस्संति वा, करते हैं और गति करेंगे। (४) उ०-बारस णक्खत्तसयं जोगं जोएंसु वा जोएंति वा, (४) उ०-बारह सौ नक्षत्र योग करते थे, योग करते हैं जोइस्संति वा, और योग करेंगे। (५) उ०-दो सयसहस्सा सटुिं च सहस्सा णव य सया (५) उ०-दो लाख सडसठ हजार नौ सौ कोटाकोटी तारागण कोडाकोडीणं सोभं सोभेसु बा, सोभंति तारागण सुशोभित होते थे; सुशोभित होते हैं और सुशोभित वा, सोभिस्संति वा, होंगे। गाहाओ गाथार्थचत्तारि चेव चंदा, चत्तारि य सुरिया लवणेताए। लवणसमुद्र में चार चन्द्र, चार सूर्य, बारह सौ नक्षत्र, तीन बारस णक्खत्तसयं गहाण तिण्णेव बावण्णा ॥ सौ बावन ग्रह और दो लाख सडसठ हजार नौ सौ कोटाकोटी दो च्चेव सयसहस्सा, सट्टि खलु भवे सहस्साई। तारागण हैं। णव य सया लवणजले, तारागण कोडिकोडी णं ।' —सूरिय० पा० १६, सु० १०० -(क्रमशः ४३३ का) उ-ता एगमेगस्स णं चंदस्स देवस्स अट्ठासीति गहा परिवारो पण्णत्तो, अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तोगाहा छावट्टिसहस्साई णव चेव सताइं पंचुत्तराई (पंचसयराई) । एगमसीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं परिवारो पण्णत्तो ।।* -सूर. पा. १८, सु. ६१ * तुलना-(क) जम्बु. वक्ख. ७, सु. १६३ । (ख) जीवा. प. ३, उ. २, सु. १६४ । १ (क) चंद. पा. १६, सु. १००। (ख) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १५५ । (य) भग. स. ६, उ. २, सु.३ । (घ) ठाणं अ. ४, उ. २, सु. ३०५ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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