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________________ १ ४३२ लोक- प्रज्ञप्ति उ० मणुस्सखेले चंद-सूर-गह-णक्लस-ताराणं परिमाणं ३०. प्र०—ता कइ णं चंदिम-सूरिया सव्वलोयं ओभासंति उम्नोति सर्वोत, पमासेति ? आहिए लि एक्जा तिर्यक लोक क्योतिषिकदेव वर्णन 1. - तत्थ खलु इमाओ दुवालस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ तं जहा तत्येगे एवमाहंसु : १. ता एगे चंदे एगे सम्बलोयं ओमसद उम्जोएड सवे, मासे, एगे एवमाहं । २. एगे पुण एवमाहंसु : ता तिष्णि चंदा, तिष्णि सूरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति, तवेंति, पभासेंति, एगे एवमाहंसु । २. एणे पुण एवमाहं : ता अद्भुट्ठ चंदा, अट्ठ सूरा, सध्यलोयं ओभासेंति -जाय पभाति एगे एवमाहं एएवं अभिलावेगं य ४. सत्त चंदा, सत्त सूरा, ५. दस चंदा, दस सूरा, ६. बारस चंदा, बारस सूरा, ७. बायालीसं चंदा, बायालीसं सूरा, ८. बावत्तरी चंदा, बावत्तरी सूरा, ९. बालचंद बापाली सुरस १०. बायत दस बावतरं सुरस, ११.सं बापालीसं सूरसहसं १२. बावत्तरं चंदसहस्सं, बावत्तरं सूरसहस्सं, सव्वलोयं ओमासंति-नाय-मासेति एगे एवमाहंगु । 1 वयं पुण एवं वयामो : ता अयणं बुरी दोवे सत्वदीयसमुद्दाणं सम्यन्त राए सवा एवं जोयससह आयामविक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साई, सोलस सहस्सा, दो व सत्तावीसे जोयणसए, तिमि व कोसे, अट्ठावीस च धनुस तेरस अंगुलाई, अहं विवाह परिवलेवेणं पण्णसं'। सुरिय० पा० १६, सु० १०० चन्द्र. पा. १६, सु. १०० । यथा मनुष्य क्षेत्र में चन्द्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र और ताराओं का परिमाण -- ६३० प्र० - कितने चन्द्र-सूर्य तारे (मनुष्य) लोक को अवभासित करते हैं, उपोतित करते हैं, तपाते हैं और प्रकाशित करते हैं ? कहें। उ०- इस सम्बन्ध में बारह प्रतिपत्तियाँ (मान्यता) कही गई हैं। सूत्र ६३० इनमें से एक मान्यता वाले इस प्रकार कहते हैं ( १ ) एक चन्द्र और एक सूर्य सारे लोक को अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है, प्रकाशित करता है । (२) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैंतीन चन्द्र और तीन सूर्य सारे लोक को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, उपाते हैं, प्रकाशित करते हैं। (३) एक मान्यता वाले फिर इस प्रकार कहते हैंसाढ़े तीन चन्द्र और साढ़े तीन सूर्य सारे लोक को अवभासित करते हैं- यावत् प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार के अभिलाप (आगे) जानने चाहिए (४) सात चन्द्र सात सूर्य, (५) दस चन्द्र, दस सूर्य, (६) बारह चन्द्र, बारह सूर्य, (७) बयालीस चन्द्र, बयालीस सूर्य, ( - ) बहत्तर चन्द्र, बहत्तर सूर्य, (६) एक सौ बियालीस चन्द्र, एक सौ बियालीस सूर्य, (१०) एक सौ बहत्तर चन्द्र, एक सौ बहत्तर सूर्य, (११) बयालीस हजार चन्द्र, बयालीस हजार सूर्य, (१२) बहत्तर हजार चन्द्र, बहत्तर हजार सूर्य, सारे लोक को अवभासित करते हैं- यावत् - प्रकाशित करते हैं। हम फिर इस प्रकार करते हैं यह जम्बूद्वीप द्वीप सर्व द्वीप समुद्रों के मध्य में सबसे छोटा - यावत् — एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा, तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तवीस योजन तीन कोश अट्ठावीस धनुष तेरह अंगुल आये अंगुल से कुछ विशेष अधिक की परिधि वाला कहा गया है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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