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________________ ४३० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक्लोक : ज्योतिषिकदेव वर्णन सूत्र ६२८ उ०-गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणि- उ०-हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अतिसम एवं ज्जाओ भूमिभागाओ सत्ताणउए जोयणसए उड्डं उप्प- रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्वे योजन की ऊँचाई पर ऊपर इत्ता दसुत्तरे जोयणसय बाहल्ले तिरियमसंखेज्जे की ओर एक सौ दस योजन के विस्तृत क्षेत्र में ज्योतिषी देवों के जोइसविसये; एत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियम- असंख्य स्थान हैं । यहाँ तिरछे ज्योतिषी देवों के असंख्य लाख संखेज्जा जोइसियाविमाणाबाससयसहस्सा भवतीति- विमानावास हैं, ऐसा कहा गया है। मक्खायं ।' ते ण विमाणा अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिया सव्व- ये विमान अर्धकपित्थक (आधे कपित्थफल) के आकार के फालियामया अन्भुग्गयमूसियपहसिया इव विविहमणि- हैं, सभी स्फटिक रत्नमय हैं, ऊंचे उन्नत अपनी प्रभा से हंसते हुए कणग-रयणभित्तिचित्ता बाउद्धृयविजयवेजयंतीपडाग- से प्रतीत होते हैं, विविधमणी, कनक-रत्नों की रचना से चित्रछत्ताइछत्तकलिया तुगा गगणतलमणुलिहमाणसिहरा विचित्र हैं, वायु से उड़ती हुई विजय-वैजयन्ती पताकाओं से तथा जालंतररयण-पंजरुम्मिलियब्व - मणि-कणग)भियागा छत्रातिछत्रों से सुशोभित हैं, ऊँचे गगनचुम्बी शिखरों वाले हैं, वियसियसयवत्तपुण्डरीया तिलयरयणद्धचंदचित्ता णाणा- जालियों में लगे हुए रत्नों वाले हैं, मणिजटित कनकमय मणिमय दामालंकिया अंतो बहिं च सहा तवणिज्ज- स्तूपिकाओं से युक्त हैं, विकसित शतपत्र एवं पुण्डरीक कमलों रूइल-वालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सुरुवा पासा- वाले हैं, तिलक एवं रत्नमय अर्धचन्द्रों से विचित्र हैं, नाना मणिईया-जाव-पडिरूवा= मयमालाओं से अलंकृत हैं. अन्दर और बाहर चिकने हैं, मुलायम तपनीय (लाल-स्वर्ण) की वालुका वाले हैं, सुखद स्पर्श वाले हैं, शोभायुक्त हैं सुरूप हैं प्रासादिक हैं-यावत -प्रतिरूप-रमणीय हैं। एस्थ जोइसियाणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं यहाँ (इन विमानों में) पर्याप्त और अपर्याप्त ज्योतिषी देवों ठाणा पण्णत्ता। के स्थान कहे गये हैं। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे = (उत्पत्ति, समुद्घात और स्वस्थान) इन तीन की अपेक्षा से ये (ज्योतिष्क देवों के विमान) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। तत्थ णं बहवे जोइसिया देवा परिवसंति, तं जहा- इन विमानों में अनेक ज्योतिषी देव रहते हैं, यथा१. बहस्सई, २. चंदा, ३. सूरा, ४. सुक्का, ५. सणि- (१) बृहस्पती, (२) चन्द्र, (३) सूर्य, (४) शुक्र, (५) शनैश्चर च्छरा, ६. राहू, ७. धूमकेऊ, ८. बुहा, ६. अंगारगा, (६) राहु, (७) धूमकेतु, (८) बुध, (६) अंगारक (मंगल) ये तत्ततवणिज्जकणगवण्णा। तप्तस्वर्ण वर्ण जैसे वर्ण वाले हैं। जे य गहा जोइसम्मि चार चरंति केतू य गइरइया (इन उक्त ग्रहों से) ज्योतिष क्षेत्र में गति करने वाले अन्य अट्ठावीसइविहा य नक्खत्तदेवयगणा, णाणासंठाण- ग्रह, गतिरतकेतु, अठावीस प्रकार के नक्षत्र देवों के गण, और संठियाओ य पंचवण्णाओ तारयाओ, ठितलेस्सा- नाना प्रकार के पांच वर्ण वाले तारे-ये सदा समान तेज वाले १ प्र-कहि णं भंते ! जोइसियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता? कहिणं भंते ! जोइसिया देवा परिवसंति ? उ०-गोयमा ! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तणउए उड्ढं उप्पइत्ता दसुत्तरसया जोयणबाहल्लेणं तत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोइसियविमाणावासयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं । -जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. १२२ २ (क) जीवा. प. ३, सु. १६७ । (ख) सूरिय. पा. १८, सु. ६४ । (ग) चंद. पा. १८ सु. ६४ । ३ गगणतलमहिलंघमाणसिहरा-पाठांतर ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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