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________________ सूत्र ६१७ ६१८ ५. दि ७. कुड, ६. महाकंदिया, ८. पययदेवा य इमे इंदा ॥ १. सणिहिया सामागा, २. धाय ४. विधाए ५. इसी य, ६. इसिपाले । ७. ईसर, ८. महेसरे य, हवइ, ६. सुवच्छे, १०. विसाले य ॥ तिर्यक लोक बाणव्यंतरदेव वर्णन : ११. हासे १२. हासरई विप , १३. सेते य तहा भवे, १४. महासेते । १५. पयते, १६. पययपई वि य, नेव्या पुथ्वी ॥ -पण्ण. प. २, सु. १६४ वाणमंत दाणं अग्गमहिसीओ ६१८. कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. कमला, २. कमलप्पभा, ३. उप्पला, ४. सुदंसणा । एवं महाकालस्स वि । मुरुवरस में सूदस्त भूधरग्गो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. रूववई, २. बहुरुवा, ३. सुरूवा, ४. सुभगा । एवं पडिरूवस्स वि । पुण्णमद्दस्स णं जक्खिं दस्स जक्खरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. पुत्ता, २. बहुपुत्तिया उत्तमा, ४. तारगा । एवं मणिभद्दस्स वि । ३. भीमस्स णं रक्खसदस्स रक्खसरण्णो चत्तारि अग्गमहि सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. पउमा २ वसुमई, ३. कणगा, ४. रयणप्पभा । एवं महाभीमस्स वि । किनरस्त में निश्विरस किरणो चत्तारि अयमहिसीओ पाओ जहा १. वडसा, २. केतुमई, ३. रति तं सेना, ४. रतिप्यमा एवं किपुरिसस वि सप्पुरिसस पं किपुरिसिटरस किपुरिसरण्यो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. रोहिणी, २. नवमिया, ३. हिरी, ४. पुप्फबई एवं महापुरिसस्स वि । अकायस्तणं महोरगिवरस महोरगरम्यो चलारिय महिसीओ पण्णलाओ, १, २. भूपगवाई " गणितानुयोग ४२५ (२) पणपनिक, १ दक्षिण के इन्द्र धाता १६, २ उत्तर के इन्द्र विधाता २० । (३) ऋषीवादी १ दक्षिण के इन्द्र ऋषि २१, २ उत्तर के इन्द्र ऋषिपाल २२ । (४) भूतवादी, १ दक्षिण के इन्द्र ईश्वर २३, २ उत्तर के इन्द्र महेश्वर २४ । (५) कंदित, १ दक्षिण के इन्द्र सुवत्स २५ २ उत्तर के इन्द्र विशाल २६ । (६) महाकंदित, १ दक्षिण के इन्द्र हास २७, २ उत्तर के इन्द्रहासरति २८ । (७) कोहंड, १ दक्षिण के इन्द्र श्वेत २६, २ उत्तर के इन्द्र महाश्वेत ३० । (८) पतंगदेव, दक्षिण के इन्द्र पतंग ३१, २ उत्तर के इन्द्र पतंगपति ३२ । इस प्रकार क्रम से जानना चाहिए । वाणव्यन्तरों के इन्द्रों की अग्रमहिषियाँ ६१८. काल पिशाचराज पिशाचेन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा - ( १ ) कमला, (२) कमलप्रभा (३) उत्पला, (४) सुदर्शना । इसी प्रकार महाकाल पिशाचेन्द्र की चार अग्रमहिषियां हैं। सुरूप भूतराज भूतेन्द्र की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं, यथा - ( १ ) रूपवती, (२) बहुरूपा, (३) सुरूपा, (४) सुभगा । इसी प्रकार प्रतिरूप भूतेन्द्र की चार अग्रमहिषियों के नाम हैं। पूर्णभद्र यक्षराज यक्षेन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा -- (१) पुत्रा, (२) बहुपुत्रिका, (३) उत्तमा, (४) तारका । इसीप्रकार मणिभद्र यक्षेन्द्र की चार अग्रमहिषियों के नाम हैं। - भीम राक्षसराज राक्षसेन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा - ( १ ) पद्मा, (२) वसुमती, (३) कनका, (४) रत्नप्रभा । इसी प्रकार महाभीम राक्षसेन्द्र की चार अग्रमहिषियों के नाम हैं। किरकिरराज निरेन्द्र की चार अग्रमहिषियां कही गई है यथा- (१) अयतंसिका (२) केतुमति, (३) रतिसेना, (४) रतिप्रभा इसी प्रकार किपुरुष की चार अयमहिषियों के नाम हैं । 1 सत्पुरुष किंपुरुषराज किंपुरुषेन्द्र की चार अग्रमहिषियों कही गई हैं, यथा - ( १ ) रोहिणी, ( २ ) नवमिका, (३) ह्री, (४) पुष्पवती । इसी प्रकार महापुरुष की चार अग्रमहिषियों के नाम हैं। अतिकाय महोरगराज महोरगेन्द्र की चार अप्रमहिषियों कही गई है, पवा - (१) भुजना, (२) भुजगवती (३) महाकण्डा,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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