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________________ सूत्र ६०४-६०५ तिर्यक् लोक : पृथ्वी प्रकम्पन वर्णन गणितानुयोग ४१६ एवं जहा बाहिरपुक्खरद्ध भणितं तहा-जाव-सयंभूरमणे जिस प्रकार बाह्य पुष्कराध के सम्बन्ध में कहा-उसी समुद्दे-जाव-अद्धासमएणं णो फुडे ।। प्रकार-यावत् –स्वयम्भूरमण समुद्र-यावत्-अद्धा समय से -पण्ण० प० १५, उ० १, सु० १००३(१)(२) स्पृष्ट नहीं है । पुढवीपकंपण-परूवर्ण पृथ्वी-कम्पन का प्ररूपण९०५. तिहि ठाणेहि देसे पुढवीए चलेज्जा, तं जहा ६०५. तीन कारणों से पृथ्वी का एक देस (भाग) चलायमान होता है । यथा१. अहे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उराला (१) इस रत्नप्रभा पृथ्वी के स्थूल पुद्गल अलग हों, उन पोग्गला णिवतेज्जा, तते णं उराला पोग्गला णिवतमाणा स्थूल पुद्गलों के अलग होने पर पृथ्वी का एक देस =भाग देसं पुढवीए चलेज्जा, चलायमान होता है। महोरगे वा महिड्ढीए-जाव-महासोक्खे इमीसे रयणप्पभाए (२) कोई महोरगव्यन्तरदेव जो महधिक-यावत - पुढवीए अहे उम्मज्जण-णिमज्जणं करेमाणे देसं पुढवीए महासुखी हो, वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे उत्पतन या निपतन चलेज्जा , करे तो पृथ्वी का एक भाग चलायमान होता है। णाग-सुवण्णाण वा संगामंसि वट्टमाणंसि देसं पुढवीए (३) नागकुमारों और सुपर्णकुमारों का संग्राम होने पर चलेज्जा। पृथ्वी का एक भाग चलायमान होता है । इच्चएहि तिहि ठाणेहि देसे पुढवीए चलेज्जा, __इन तीन कारणों से पृथ्वी का एक भाग चलायमान होता है। तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा, तीन कारणों से सम्पूर्ण पृथ्वी चलायमान होती है। तं जहा-१. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए गुप्पेज्जा, यथा-(१) इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे धनवात क्षुब्ध हो, तए णं से घणवाए गुविए समाणे घणोदहिमेएज्जा, तए णं क्षुब्ध हुआ धनवात घनोदधि को कम्पित करता है और कम्पित से घणोदही एइए समाणे केवलकप्पं पुढवि चलेज्जा, हुआ घनोदधि सम्पूर्ण पृथ्वी को चलायमान करता है। देवे वा महिड्ढीए-जाव-महासोक्खे तहारूवस्स समणस्स (२) कोई महधिक-यावत -महासुखी देव तथारूप श्रमणमाहणस्स वा इड्ढि जुई, जसं, बलं, वोरियं पुरिसक्कार- माहण को अपनी ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य एवं पुरुषाकार, परक्कम उवदंसेमाणे केवलकप्पं पुढवि चलेज्जा, प्रदर्शित करता हूआ सम्पूर्ण पृथ्वी को चलायमान करता है। देवासुरसंगामंसि वा वट्टमाणंसि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा। (३) देवों और असुरों का संग्राम होने पर सम्पूर्ण पृथ्वी चलायमान होती है। इच्चेएहि तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा, इन तीन कारणों से सम्पूर्ण पृथ्वी चलायमान होती है। -ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० १८६
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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