SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र८९८-९०३ तिर्यक् लोक : द्वीपसमुद्र प्रमाण गणितानुयोग ४१७ पत्तेगरसाणं उदगरसाणं च समुद्दाणं संखा- प्रत्येकरस और उदकरस समुद्रों की संख्या८९८.५०-कति णं भंते ! समुद्दा पत्तेगरसा पण्णता? ८६८. प्र०-हे भगवन् ! प्रत्येकरस समुद्र कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! चत्तारि समुद्दा पत्तैगरसा' पण्णत्ता, उ०-हे गौतम ! चार समुद्र प्रत्येकरस वाले कहे गये हैं तं जहा-लवणे, वरुणोदे, खीरोदे, घयोदे । ___ यथा-(१) लवणसमुद्र, (२) वरुणोदसमुद्र, (३) क्षीरोदसमुद्र, (४) घृतोदसमुद्र। ८६६. ५०-कति णं भंते ! समुद्दा पगतीए उदगरसे णं पण्णत्ता? ८६६. प्र०-हे भगवन् ! स्वाभाविक जल जैसे जल वाले समुद्र कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! तओ समुद्दा पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ता, उ०-हे गौतम ! तीन समुद्र स्वाभाविक जल जैसे जल तं जहा-कालोए, पुक्ख रोए, सयंभूरमणे । वाले कहे गये हैं यथा-(१) कालोद समुद्र, (२) पुष्करोद समुद्र, (३) स्वयम्भूरमण समुद्र । अवसेसा समुद्दा उस्सण्णं खोतरसा पण्णत्ता समणाउसो! हे आयुष्मन् श्रमण ! शेष सभी समुद्र प्रायः क्षोतोदरस -जीवा० पडि० ३ उ० २, सु० १८७ (ईक्ष रस) जैसे जल वाले कहे गये हैं । दीव-समुद्दाणं पमाणं द्वीप-समुद्रों का प्रमाण९००. ५०- केवतिया णं भंते ! दीव-समुद्दा नामधेजेहिं पण्णत्ता? ६००. प्र०-हे भगवन् ! नाम वाले द्वीप-समुद्र कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! जावतिया लोगे सुभा णामा, सुभा वण्णा, उ०-हे गौतम ! इस लोक में जितने शुभ नाम हैं, शुभवर्ण - सुभा गंधा, सुभा रसा, सुभा फासा, एवतियाणं दीव- हैं, शुभ गंध हैं, शुभ रस हैं, और शुभ स्पर्श हैं, इतने नाम वाले समुद्दा णामधेजेंहिं पण्णत्ता । द्वीप-समुद्र कहे गये हैं। ६०१. प०-केवतिया णं भंते ! दीव-समुद्दा उद्धार-समएणं पण्णत्ता? ६०१. प्र०-हे भगवन् ! उद्धार समय की अपेक्षा से कितने द्वीप ___समुद्र कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! जावतिया अडढाइज्जाण सागरोवमाणं उ०-हे गौतम ! अढाई द्वीप सागर के जितने उद्धार समय उद्धारसमया, एवतिया दीव-समुद्दा उद्धार-समएणं होते हैं, उतने द्वीप-समुद्र उद्धार समय की अपेक्षा से कहे गये हैं। पण्णत्ता', -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८६ दीव-समुद्दाणं परिणमनपरूवणं द्वीप-समुद्रों का परिणमन प्ररूपण६०२. ५०-दीव-समुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा, आउपरि- ९०२. प्र०-हे भगवन् ! द्वीप-समुद्र क्या पृथ्वी के परिणाम हैं, णामा, जीवपरिणामा, पुग्गलपरिणामा ? जल के परिणाम हैं. जीव के परिणाम हैं, या पुद्गल के परि णाम हैं ? उ०-गोयमा ! पुढविपरिणामा वि, आउपरिणामा वि, उ०-हे गौतम ! पृथ्वी, जल, जीव और पुद्गल के परिजीवपरिणामा वि, पुग्गलपरिणामा वि, णाम हैं। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १६०१ दीवोदहीण फुसणा द्वीप और समुद्रों का स्पर्श६०३. ५०-जंबुद्दीवे णं भते ! दीव किण्णा फुडे ? ६०३. प्र०--हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप किससे स्पृष्ट है ? १ यहाँ 'प्रत्येकरस' का अर्थ है असाधारण रस अर्थात् विशिष्ट रस । २ यावन्तोऽद्ध तृतीयानामुद्धारसागराणां उद्धारसमया-एककेन सूक्ष्मबालाग्रापहारसमया एतावन्तो द्वीप-समुद्रा उद्धारेण प्रज्ञप्ताः । उक्तं च गाहाउद्धारसागराणं, अड्ढा इज्जाण जत्तिया समया । दुगुणा दुगुण पवित्थर दीवोदहि रज्जु एवइया । ३ द्वीपों और समुद्रों की रचना पृथ्वी, जल, जीव और पुद्गलों से हुई है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy