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________________ ४१६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कुण्डलवरद्वीप समुद्र सूत्र ८६३-८९७ सयंभूरमण समुदरस संठाणं-- स्वयम्भूरमण समुद्र का संस्थान८६३. सयंभूरमणण्णं दीवं सयंभूरमणोदे णामं समुद्दे वट्ट वलया- ८६३. बृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित स्वयम्भूरमणोद नाम का गारसंठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति। समुद्र स्वयंभूरमणद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए स्थित है । तहेव समचक्कवालसं ठाणसंठिए । वह समचक्रवाल संस्थान से पूर्ववत् स्थित है। विक्खंभ-परिक्खेवो असंखेज्जाई जोयणसतसहस्साई, उसकी चौड़ाई और परिधि असंख्यात लाख योजन की है। दारा, दारंतरं, पउमवरवेइया, वणसंडे, पएसा जीवा, स्वयंभूरमण समुद्र के द्वार, द्वारों का अन्तर, पद्मवरवेदिका वनखण्ड, द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श, द्वीप और समुद्र के जीवों को एक दूसरे में उत्पत्ति । सव्वं तहेव। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ शेष सब पूर्ववत् है। सयंभूरमणसमुदस्स णामहेऊ स्वयम्भूरमणसमुद्र के नाम का हेतु८६४. ५०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-सयंभूरमणोदे समुद्दे, ८६४. हे भगवन् ! किस कारण से 'स्वयम्भूरमणोद समुद्र' स्वयसयंभूरमणोदे समुद्दे ? म्भूरमणोद समुद्र कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! सयंभूरमणोदए उदए अच्छे पत्थे जच्चे तणुए हे गौतम ! स्वयम्भूरमणोद समुद्र का उदक स्वच्छ, पथ्य, फलिहवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते । पिण्णत्त। शुद्ध, लघु, स्फटिकवर्ण सदृश, स्वाभाविक उदक रस जैसा कहा गया है। सयंभूरमणवर-सयंभूरमणमहावरा एत्थ दो महिढीया पल्योपम की स्थिति वाले स्वयम्भूरमणवर और स्वयम्भूर-जाव-पलिओवमट्टिइया परिवसंति, मणमहावर नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-वहाँ रहते हैं। सेस सव्वं तहेव । शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। -जीवा० पडि० ३, उ०२, सु०१८५ दीव-समुदाणं संखा द्वीप-समुद्रों की संख्या८६५. ५०-केवइया णं भंते ! जंबुद्दीवा दीवा णामधेज्जेहि ८६५. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नाम वाले द्वीप (मध्यलोक पण्णत्ता? में) कितने कहे गए हैं ? उ०-गोयमा ! असंज्जा जंबुद्दीवा दीवा गामधेज्जेहिं उ०-हे गौतम ! जम्बूद्वीप नाम वाले द्वीप असंख्य कहे पण्णत्ता। गये हैं। ८६६. ५०-केवइया णं भते ! लवणसमुद्दा समुद्दा नामधेज्जेहिं ८६६. प्र०-हे गौतम ! लवणसमुद्र नाम वाले समुद्र (मध्यलोक पण्णता? में) कितने कहे गये हैं ? उ०-गोयमा ! असंखेज्जा लवणसमुद्दा समुद्दा णामधेज्जेहि उ०-हे गौतम ! लवणसमुद्र नाम वाले समुद्र असंख्य कहे पण्णत्ता। गये हैं। एवं धाय इसडा वि-जाव-असंखेज्जा सूरदीवा णाम- इसी प्रकार धातकीखण्ड-यावत्-सूर्यद्वीप नाम वाले द्वीप धेज्जेहिं य । असंख्य कहे गये हैं। एए दीवा समुदा एगेगा ये द्वीप-समुद्र एक एक हैं८६७. १. एगे देवे दीवे, २. एगे देवोदे समुद्दे, ८६७. (१) एक देव द्वीप, (२) एक देवोद समुद्र, ३. एगे नागे दीवे, ४. एगे नागोदे समुद्दे, (३) एक नाग द्वीप, (४) एक नागोद समुद्र, ५. एगे जक्खे दीवे, ६. एगे जक्खोदे समुद्दे, (५) एक यक्ष द्वीप, (६) एक यक्षोद समुद्र, ७. एगे भूते दोवे, ८. एगे भूतोदे समुद्दे, (७) एक भूत द्वीप, (८) एक भूतोद समुद्र, ६. एगे सयंभूरमणे दीवे, १०. एगे सयंभूरमणेसमुद्दे,' (९) एक स्वयम्भूरमण द्वीप, (१०) एक स्वयम्भूरमण समुद्र नामधेज्जेणं पण्णत्ते । नाम वाला कहा गया है। - जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८६ १ सव्वेसि विक्खंभ परिक्खेव जोइसाई देवदीव सरिसाइ। -सूरिय० पा० १६, सु० १०१ २. एवं दशाप्येते एकाकारा वक्तव्याः ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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