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________________ सूत्र ८८३-८६२ तिर्यक् लोक : कुण्डलवरद्वीप समुद्र गणितानुयोग ४१५ ८८३. हारवरेदीवे-हारवरभद्द-हारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा ८८३. पल्योपम की स्थिति वाले हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परि वसंति । नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-हारवरद्वीप में रहते हैं। ८८४. हारवरोदे समुद्दे-हारवर-हारवरमहावरा एत्थ दो देवा ८८४. पल्योपम की स्थिति वाले हारवर और हारवरमहावर नाम महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परिवसंति । वाले दो महधिक देव-यावत् -हारवरोद समुद्र में रहते हैं । ८८५. हारवरावभासे दीवे-हारवरावभासभद्द-हारवरावभासमहाभद्दा ८८५. पल्योपम की स्थिति वाले हारवरावभासभद्र और हारTथ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिया परिवसंति। वरावभासमहाभद्र नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-हार वरावभासद्वीप में रहते हैं। ८८६. हारवरावभासोदे समुद्दे- हारवराभासवर-हारवरावभास- ८८६. पल्योपम की स्थिति वाले हारवरावभासवर और हार महावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया वरावभासमहावर नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-हार परिवसंति। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ वरावभासोद समुद्र में रहते हैं । ८८७. एवं सब्वे वि तिपडोयारा णेयवा-जाव-सूरवरभामोद समुद्दे, ८८७. इस प्रकार सभी द्वीप-समुद्र सूरवरभासोद समुद्र पर्यन्त -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ तीन तीन पदों के अवतरण वाले जानने चाहिए । देवाइ दीव-समुदाणं संखित्तपरूवणं देवादि द्वीप-समुद्रों की संक्षिप्त प्ररूपणा८८८. ता सरवरो भासोदण्णं समुद्द देवे णामं दीवे वट्ट वलया- ८८८. देव नामक द्वीप वृत्त वलयाकार संस्थान स्थित वह स्य गार संठाणसंठिए, सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ-जाव- वरभासोद समुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है-यावतनो विसमचक्कवालसंठिए। विषम चक्रवाल के आकार वाला नहीं है। 10--तो देवे गं भंते ! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं प्र०-हे भदन्त ! देवद्वीप की चक्रवाल चौड़ाई और परिधि केवइयं परिक्खेवेणं आहिए त्ति वएज्जा? कितनी कही गई है ? उ.-गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई चक्कवाल- उ०-हे गौतम ! असंख्य हजार योजन की चक्रवाल चौड़ाई विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं है और असंख्य हजार योजन की परिधि कही गई है। आहिए त्ति वएज्जा ।-सूरिय० पा० १६, सु० १०१ देवदीवे - देवभट्ट-देवमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव- ८८६. पल्योपम की स्थिति वाले देवभद्र और देवमहाभद्र नाम पलिओवमट्ठिया परिवसंति । वाले दो महधिक देव-यावत्-देवद्वीप में रहते हैं । १०. देवोदे समदेववर देवमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया ८६०. पल्योपम की स्थिति वाले देववर और देवमहावर नाम -जाव-पलिओवमट्ठिया परिवसंति । वाले दो महधिक देव-यावत्-देवोद समुद्र में रहते हैं । ८६१. सयभरमणे दीवे-सयंभूरमणभद्द-सयंभूरमणमहाभद्दा एत्थ ८६१. पल्योपम की स्थिति वाले स्वयम्भूरमणभद्र और स्वयम्भरदो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परिवसंति । मणमहाभद्र नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-स्वयम्भरमण -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ द्वीप में रहते हैं। सव्वदीव-समुदाणं संखित्त वियारणा- सर्व द्वीप-समुद्रों की संक्षिप्त विचारणा८१२. "दीवेस भद्दनामा, वरनामा होंति उदहीसु"-जाव-पच्छिम ८६२. विश्व में जितने शुभ नाम हैं उन सब नाम वाले इस .. भावं च । तिर्यकलोक में द्वीप हैं। उन सब नामों के साथ 'वर' संयुक्त करने पर समुद्रों के नाम होते हैं । खोतवरादीसु सयंभूरमणपज्जतेसु बावीओ खोओदगपडि- क्षोतवर आदि द्वीपों से लेकर स्वयम्भूरमणद्वीप पर्यन्त सब हत्थाओ, द्वीपों में इक्षुरस जैसे जल से भरी हुई वापिकायें हैं। पव्वयगा सव्व वइरामया । उन वापिकाओं में सभी पर्वत बनमय हैं। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ १ १. सूरे दीवे, सूरोदे समु दे, २. सूरवरे दीवे, सूरवरोदे समुद्दे, ३. सूरवर भामे दीवे, सूरवरभासोदे समुद्दे, सवेसि विक्खंभ-परिक्खेव जोइसाइ रूयगवरदीवसरिसाइ। -सूरिय० पा० १६, सु०१०१..
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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