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________________ ४१४ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : कुण्डलवरादिद्वीप समुद्र सूत्र ८७४-८८२ दारा, दारंतरं पि सव्वं संखेज्जं भाणियव्वं । रुचकवरद्वीप के द्वार, द्वारों के अन्तर आदि का प्रमाण सभी संख्यात योजन के कहने चाहिए। सम्वट्ठ-मणोरमा एत्थ दो देवा महिड्ढिया-जाव-पलिओ- पल्योपम की स्थिति वाले सर्वार्थ और मनोरमा नाम के दो वमट्टिइया परिवसंति, महधिक देव-यावत्-वहाँ रहते हैं । सेसं सव्वं तहेवं । शेष सब पूर्ववत् है। -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ देवेसु रूयगवरदीवाणुपरियणसामत्थनिरूवणं- देवों में रुचकवरद्वीप की परिक्रमा करने के सामर्थ्य का निरूपण८७५. ५०-देवे णं भंते ! महिड्ढोए-जाव-महासोक्खे पभू स्यगवरं ८७५. प्र०-हे भगवन् ! महधिक-यावत्-महासुखी देव दीवं अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छित्तए? रुचकवरद्वीप की परिक्रमा करके शीघ्र आने में समर्थ है ? उ०-हंता गोयमा ! पभू। उ०-हाँ गौतम ! आने में समर्थ नहीं हैं। ते गं परं बीईवएज्जा नो चेव णं अणुपरियोज्जा। उससे आगे वह देव जा तो सकता है किन्तु परिक्रमा करके -भग० स० १८, उ०७, सु० ४७ शीघ्र आने में समर्थ नहीं है । ८७६. रूयगोदेणामं समुद्दे जहा खोदोदे समुद्दे', ८७६ रुचकोदसमुद्र क्षोतोदसमुद्र के समान है। अट्टो वि जहेव । उसके नाम का हेतु भी उसी प्रकार है। सुमण-सोमणसा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओव- पल्योपम की स्थिति वाले सुमन और सोमनस नाम के दो मट्ठिइया परिवसंति। महधिक देव-यावत्-वहाँ रहते हैं। रूयगाओ आढत्तं सव्वं असंखेज भाणियव्वं । रुचकवरद्वीप और उससे आगे के सभी द्वीप समुद्र असंख्य योजन के प्रमाण वाले कहने चाहिए। ८७७. रुयगोदण्णं समुद्द रुयगवरे णं दीवे वट्ट वलयागारसंठाण- ८७७. वृत्त और वलयाकार संस्थान से स्थित रुचकवरद्वीप रुचसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति', कोदसमुद्र को चारों ओर से घेरे हुए स्थित है। रुयगवरभद्द-रुयगवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया पल्योपम की स्थिति वाले रुचकवरभद्र और रुचकवरमहा-जाव-पलिओवमट्ठिइया परिवसंति । भद्र नाम के दो महधिक देव-यावत्-वहाँ रहते हैं। ८७८. रुयगवरोदे समुद्द-रुयगवर-रुयगवरमहावरा एत्य दो देवा ८७८. पल्पोपम की स्थिति वाले रुचकवर और रुचकवर महावर महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिइया परिवसंति, ___नाम के दो महधिक देव-यावत्-रुचकवरोद समुद्र में रहते हैं। ८७६. रुयगवरावभासे दीबे-रुयगवरावभासई-रुयगवरावभासमहा- ८७६. पल्योपम की स्थिति वाले रुचकवरावभासभद्र और रुचक भद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीयाजाव-पलिओवमट्ठिइया परि- वरावभासमहाभद्र नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-रुचकवसंति, वरावभासद्वीप में रहते हैं। ८८०. रुयगवरावभासे समुद्दे-रुयगवरावभासवर-रुयगवरावभास- ८८०. पल्योपम की स्थिति वाले रुचकवरावभासवर और रुचक महावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठिया वरावभास महावर नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-रुचकपरिवसंति५, -जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १८५ वरावभास समुद्र में रहते हैं। हाराइदीव-समुद्दाणं संखित्त-परूवणं हारादि द्वीप-समुद्रों का संक्षिप्त प्ररूपण८५१. हारद्दीवे-हारभद्द-हारमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया ८८१. पल्पोपम की स्थिति वाले हारभद्र और हारमहाभद्र नाम -जाव-पलिओवमट्ठिया परिवसंति । वाले दो महधिक देव-यावत्-हारद्वीप में रहते हैं। ८८२. हारसमुद्दे--हारवर-हारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया ८८२. पल्योपम को स्थिति वाले हारवर और हारवरमहावर ' -जाव-पलिओवमट्टिइया परिवसंति । नाम वाले दो महधिक देव-यावत्-हारसमुद्र में रहते हैं। १ सूरिय० पा० १६, सु० १०१ । २-५ सूरिय० पा० १६, सु. १०१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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