________________
सत्र ८६७-८७४
तिर्यक् लोक : कुण्डलवराविद्वीप समुद्र
गणितानुयोग
४१३
कुण्डलाइ दीव-समुद्दा
कुण्डलवरादि द्वीप समुद
कुण्डलाइ दीव-समुद्दाणं संखित्त परूवणं
कुण्डलादि द्वीप-समुद्रों का संक्षिप्त प्ररूपण८६७. कुण्डले दीवे-कुण्डभई-कुण्डलमहाभद्दा एत्थ दो देवा महि- ८६७. पल्योपम की स्थिति वाले कुण्डलभद्र और कुण्डलमहाभद्र ड्ढीया-जाव-पलिओवमट्टितिया परिबसंति ।'
नाम के दो महधिक देव-यावत्--कुण्डलद्वीप में रहते हैं । ८६८. कुण्डलोदे समुद्दे-चक्खु-सुभचक्खुकंता एत्थ दो देवा महि- ८६८. पल्योपम की स्थिति वाले चक्षु और शुभचक्षुकांत नाम के ड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठितिया परिवसंति।
दो महधिक देव-यावत्--कुण्डलोद समुद्र में रहते हैं। ८६९. कुण्डलवरे दीवे-कुण्डलवरभद्द-कुण्डलवरमहाभद्दा एत्थ दो ८६६. पल्योपम की स्थिति वाले कुण्डलवरभद्र और कुण्डलवरदेवा महिडढीया-जाव-पलिओवमद्वितिया परिवसंति । महाभद्र नाम के दो महधिक देव-यावत्-कुण्डलवरद्वीप में
रहते हैं। ८७०. कुण्डलवरोदे समुद्दे-कुण्डलवर-कुण्डलवरमहावरा एत्थ दो ८७०. पल्योपम की स्थिति वाले कुण्डलवर और कुण्डलवरमहावर
देवा महिड्ढीया जाव-पलिओवमट्टितिया परिवसंति । नाम के दो महधिक देव-यावत्-कुण्डलवरोद समुद्र में रहते हैं। ८७१. कुण्डलवरावभासे दीवे-कुण्डलवरावभासभद्द-कुण्डलवराव- ८७१. पल्योपम की स्थिति वाले कुण्डलबरावभासभद्र और कुण्डल
भासमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्टि- वरावभास महाभद्र नाम के दो महधिक देव-यावत् - कुण्डल. तिया परिवसंति ।५
वरावभास द्वीप में रहते हैं। ८७२. कुण्डलवरोभासोदे समुद्दे-कुण्डलवरोभासवर-कुण्डलवरो- ८७२. पल्योपम की स्थिति वाले कुण्डलवरोभासवर और कुण्डल
भासमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओवमट्ठि- वरोभासमहावर नाम के दो महधिक देव-यावत्-कुण्डलवरतिया परिवसंति ।
भासोद समुद्र में रहते हैं। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८५ रुयगाइ-दीवसमुदाणं संखित्तपरूवणं
रुचकादि द्वीप-समुद्रों का संक्षिप्त प्ररूपणरूयगदीवस्स संठाणं
रुचकवरद्वीप का संस्थान८७३. कुण्डलवरोभासं णं समुई रुचगे णाम दीवे वट्ट वलयागार- ८७३. वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित रुचक नाम का द्वीप
संठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । कुण्डलवरभासोद समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए स्थित है। प० रुचगे गं भंते ! दीवे किं समचक्कवालसंठाणसंठिए प्र.-हे भगवन् ! रुचकवरद्वीप समचक्रवाल संस्थान से विसमचक्कवालसंठाणसंठिए।
स्थित है ? या विषम चक्रवाल संस्थान से स्थित है ? उ०-गोयमा ! समचक्कवालसं ठाणसंठिए, नो विसमचक्क- उ०-हे गौतम ! समचक्रवाल संस्थान से स्थित है; विषम वालसंठाणसंठिए।
चक्रवाल संस्थान से स्थित नहीं है। -जीवा. पडि. ३, उ. २. सु. १८५ ख्यगवरदीवस्स विक्खंभ-परिक्खेवं
रुचकवरद्वीप की चौड़ाई और परिधि८७४. ५०-रुचगे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेमं ८७४. प्र०-हे भगवन् ! रुचकवरद्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ केवतियं परिक्खेवेणं पण्णते ?
और परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसतसहस्साई विक्खंभेणं, उ.-हे गौतम ! संख्यात लाख योजन की चौड़ाई और
संखेज्जाई जोयणसतसहस्साई परिक्खेवेणं पच्चत्ते । संख्यात लाख योजन की परिधि कही गई है। १-६ सम्वेसि विक्खंभ-परिक्खेवो जो इसाई पुक्खरोदसागर सरिसाई ।
-सूरिय० पा० १६, सु० १०१ २ ५०-तारुयए णं दीवे केवइयं समचक्कवालविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं ? उ-ता असंखेज्जाई जोयण सहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयण सहस्साई परिक्खेवेणं आहिए त्ति वएज्जा ।
-सूरिय. पा० १६, सु० १०१ यह आयाम विष्कम्भ की विभिन्नता संशोधन योग्य है।