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________________ ४१२ लोक- प्रज्ञप्ति ww www. अरुणवरदीवस्स निच्चत्तं - ८६३ अनुसरणं गोपमा ! अरुणवरे बीचे सासरजाव-विच्चे। - जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८५ ८६४. अरुणवरं णं दीवं अरुणवरोदे णामं समुदे वट्ट े जाव चिट्ठति । तिर्यक्लोक: अरुणादिद्वीप वर्णन अरुणवर-अरुणवरमहावरा व एस्य दो देवा महिडीया -जाब-पलिसोयमहिया परिवसति सेसं सव्वं तहेव । अरुणवरावभासभद्दे - अरुणवराभासमहाभदा य एत्थ दो देवा महिया-जाय पतिओवमट्टिया परिवर्तति, से तहेव । अरुणवरावभास - अरुणवरावभासमहावरा एत्थ दो देवा महिदीया जाय- पलिशोषमट्टिया परिवति, सेर्स सम्यं तव । ८६५. अरुणवरोदं समुदं अरुणवरावभासे णामं दीवे वट्ट े -जाव- ८६५. वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित अरुणवरावभासद्वीप अरुणवरोदसमुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है । चिति । -जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १८५ -- १ सूरिय० पा० १६, सु० १०१ । २ सूरिय० पा० १९, ०१०१। २ सुरिय० पा० ११. ०१०१ । सूत्र ८६३-८६६ अरुणवरद्वीप की नित्यता ८६३. अथवा हे गौतम! अरुणवरद्वीप शाश्वत है-यावत्नित्य है । ८६४. वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित अरुणवरोद समुद्र अरुणवरद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है । ८६६. अरुणवरावभासे णं दीवं अरुणवरावभासे णामं समुद्दे वट्ट ८६६. वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित अरुणवरावभास समुद्र जा-चिति । अरुणवरावभासद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है । पत्योपम की स्थिति वाले अरुणवर और अरुणवरमहावर नाम के दो महधिक देव - यावत्-वहाँ रहते हैं । शेष सब वर्णन पूर्ववत् है । पत्योपम की स्थिति वाले अरुणवरावभासभद्र और अरुणवरावभासमहाभद्र नाम के दो महधिक देव-यावत्-वहाँ रहते हैं, शेष सब वर्णन पूर्ववत् है। पल्योपम की स्थिति वाले अरुणवरावभास और अरुणवरावभासमहावर नाम के दो महधिक देव - यावत् - वहाँ रहते हैं । शेष सब वर्णन पूर्ववत् है। **
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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