SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 570
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ८६०-८६२ तिर्यक लोक अरुणादिद्वीय वर्णन : अरुणवरवीवस्स संठाणं ८६०. नंदीसरवरोदं समुद्द े अरुणवरे णामं दीवे वट्ट े वलयागारसंठाण संठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । " प० - अरुणवरे णं भंते! दीवे कि समचक्कवालसं ठाणसंठिते, विसमचक्कवालसंठाणसंठिते ? उ०- गोधमा ! समवालसंडासंडिले, नो सिम वालठाणसंठिते । - जीवा पडि ३, उ. २, सु. १८५ अरुणवरदीवरस विसंभ-परिषखेवं ८६१. ५० – अरुणवरे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई चक्कवालबिक्मेणं, संजाई जोपणसमसहस्सा परि पण्णत्ते । दारा, दातरा व सहेब संजाई जोवनसतसहस्साई सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते चिटुइ, दोहवि वण्णओ । पदेसा दोण्डव (परोपरं पदा उ०- गोयमा ! अरुणवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे देसे तह तहि बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ-जाव- बिलपंतियाओ अच्छाओ-गाव-महूरसरणाहयाओ लोबोपहित्याओ पासावा जाव पवा तालु पंखुड़िया-जाय-विलपतिया बहवे उपायपव्वया जाव सव्ववइरामया अच्छा-जाव पडिरूवा । अरुणवरभद्द- अरुणवरमहाभद्रा एत्थ दो देवा महिढिया जाव - पलिओवर्माद्वितिय परिवसंति । से एएणटुणं गोयमा ! एवं बुच्चइ – अरुणवरे दीवे, अरुणवरे दीवे ।" - - जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १८५ १ सूरिय० पाठ १६, सु० १०१ । गणितानुयोग ४११ अरुणद्वीप का संस्थान - ८६०. अरुणवर नामक द्वीप वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित है, वह नन्दीश्वरोद समुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है । प्र० - हे भदन्त ! अरुणवरद्वीप क्या समचक्रवाल - संस्थान से स्थित है ? उ०- हे गौतम! अरुणवरद्वीप समचक्रवाल - संस्थान से स्थित है, विषम चक्रवाल संस्थान से स्थित नहीं है । अरुणवरद्वीप और नन्दीश्वरोद समुद्र के प्रदेश परस्पर स्पृष्ट हैं । जीवा दोसु (दीवेसु वि- समुद्देसु) वि पच्चायति । अरुगद्वीप के जीव और नन्दीश्वरोद समुद्र के जीव एक दूसरे में उत्पन्न होते हैं । — जीवा० पडि०३, उ० २, सु० १८५ अरुणव रवीवरस णामहेऊ अरुणवरद्वीप के नाम का हेतु ८६२. ५०—–से केणट्टे णं भंते ! एवं वुच्चइ - " अरुणवरे दीवे ८६२. प्र० - हे भगवन् ! किस कारण से 'अरुणवरद्वीप' अरुण -- , अरुणवरे दीवे ? वरद्वीप कहा जाता है ? अरुणवरद्वीप की चौड़ाई एवं परिधि ८६१. प्र० - हे भदन्त ! अरुणवरद्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ और उसकी परिधि कितनी कही गई है ? उ०- हे गौतम! संख्यात लाख योजन की चक्रवाल चोड़ाई है और संख्या लाख योजन की परिधि कही गई है। उसके द्वार और द्वारों का अन्तर संख्यात लाख योजन के है। यहां पद्मवरवेदिका और वनखण्ड का वर्णन है । उ०- हे गौतम! अरुणवरद्वीप के सभी विभागों में सर्वत्र छोटी बावड़ियाँ है- यावत्- बिलपंक्तियाँ है, वे सब स्वच्छ हैं— यावत्-मधुर स्वर से गूंजने वाली हैं और ओतोद ( इ रस जैसे जल) से भरी हुई है, प्रसन्नता प्रदान करने वाली है - यावत्मनोहर है। उन बावड़ियों में यावत् बिलपंक्तियों में अनेक उत्पात पर्वत हैं - यावत् - वे सब वज्रमय हैं, स्वच्छ हैं- यावत्--- मनोहर है। वहाँ महधिक - यावत् - पल्योपम की स्थिति वाले अरुणवर भद्र और अरुणवरमहाभद्र नाम वाले दो देव रहते हैं । हे गौतम! इस कारण से 'अरुणवरद्वीप' अरुणवरद्वीप कहा जाता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy