SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : अरुणादिद्वीप समुद्र सूत्र ९५७-८५६ अरुणाइदीवसमुद्दा अरुणादिद्वीप समुद्र कवच अरुणाइ दीव-समुदाणं संखित्त परूवणं अरुणादि दीप-समुद्रों का संक्षिप्त प्ररूपणअरुणदीवस्स संठाणं अरुणद्वीप का संस्थान८५७. गंदीसरोवं समुद्द अरुणे णामं दीवे वट्ट वलयागार संठाण- ८५७. 'अरुण' नामक द्वीप वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित है, संठिए सम्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति, __ वह नन्दीश्वरोद समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए स्थित हैं। प०-अरुणे णं भंते ! दीवे किं समचक्कवाल सठाणसंठिए प्र०-हे भदंत ! अरुणद्वीप क्या समचक्रवाल संस्थान से विसमचक्कवाल संठाणसं ठिए ? स्थित है या विषमचक्रगल संस्थान से स्थित है ? उ०-गोयमा ! समचक्कवालसंठाणसंठिए, नो विसमचक्क- उ-हे गौतम ! (अरुणद्वीप) समचक्रवाल संस्थान से वालसंठाणसंठिए, स्थित हैं किन्तु विषमचक्रवाल संस्थान से स्थित नहीं है। -जीवा. पडि. ३,. उ. २, सू. १८५ अरुणदीवस्स विक्खंभ-परिक्खेवं अरुणद्वीप की चौड़ाई और परिधि८५८. ५०-अरुणे णं भंते ! दीवे केवइयं चक्कवाल-विक्खंभेणं ८५८. प्र०-हे भदंत ! अरुणद्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ और केवइयं चक्कवाल-परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? चक्रवाल परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवाल- उ-हे गौतम ! संख्यात लाख योजन की चक्रवाल चौड़ाई विक्खंभेणं, पण्णत्ते, संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई और संख्यात लाख योजन की परिधि कही गई है। परिक्खेवेणं पण्णते,' 'पउमवर वेइया' वणखंडो, दारा, दारंतरं य तहेव, अरुणद्वीप की पद्मवरवेविका, वनखण्ड, द्वार, द्वारों के अन्तर पूर्ववत् हैं। संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई दारंतरं-जाव-अट्ठो, द्वारों का संख्यात लाख योजन का अन्तर है यावत्-नाम का हेतु पूर्ववत् है। वावीओ खोदोदगपडिहत्था, वापिकायें इक्षुरस से भरी हुई हैं। उपायपव्वया सव्ववइरामया अच्छा-जाव-पडिरूवा, उत्पात पर्वत सर्ववनमय हैं, स्वच्छ हैं-यावत्-मनोहर हैं। असोग-वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया-जाव- अशोक और वीतशोक नाम वाले महधिक-यावत्-पल्योपलिओवमट्ठिइया परिवसंति, पम की स्थिति वाले दो देव वहाँ रहते हैं। से तेणणं गोयमा ! एवं वुच्चइ अरुण णामं दीवे, हे गौतम ! इस कारण से अरुण नामक द्वीप 'अरुण नामक अरुणे णामं दीवे', द्वीप' कहा जाता है। -जीवा पडि. ३, उ. २, सु. १८५ ८५६. अरुणे णं दीव अरुणोद णामं समुद्दे बट्ट वलयागार-संठाण- ८५६. अरुणोद समुद्र वृत्त, वलयाकार संस्थान से स्थित है, वह संठिए सत्रओ समंता संपरिखित्ताणं चिट्ठइ', अरुणद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है। तस्स वि तहेव चक्कवालविक्खंभो पक्खेिवो, य, उसकी चक्रवाल चौड़ाई और परिधि, पूर्ववत् है। अट्ठो, खोतोदगं तहेव उसके नाम का हेतु और इक्षरस जैसा जल, पूर्ववत् है। णवरं-सुभद्द-सुमणभद्दा, रत्थ दो देवा महि ड्ढीया-जाव- विशेष -सुभद्र और सुमनभद्र नाम वाले महधिक-यावत्पलिओवमट्ठिइया परिवसंति, सेसं तहेव ।। पल्योपम की स्थिति वाले दो देव वहां रहते हैं। शेष पूर्ववत् है । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८५ १ सूरिय० पाठ १६, सु० १०१ । २ स च देवप्रभया, पर्वतादिगत बज्ररत्नप्रभया चारुण इति अरुणनामा । ३ सूरिय० पाठ १६. सु० १०१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy