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________________ सूत्र ८५३-८५६ तिर्यक् लोक : नंदीश्वरोद समुद्र गणितानुयोग ४०६ नंदीसरोदसमुद्दो नंदीश्वरोद समुद्र तहेव, नंदीसरोदसमुहस्स संठाणं नन्दीश्वरोद समुद्र का संस्थान८५३. णंदोस्सरवरण्णं दीवं गंदीसरोदे णामं समुद्दे वट्ट वलयागार- ८५३. नन्दीश्वरोद नामक समुद्र वृत्त वलयाकार संस्थान से संठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्टइ,' स्थित नन्दीश्वरवरद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है। तहेव समचक्कवालसंठाणसंठिए । वह समचक्रवाल संस्थान से पूर्ववत् स्थित है। विक्खंभ-परिक्खेवो संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई। उसकी चौड़ाई और परिधि संख्यात लाख योजन की है। दारा, दारंतरं, पउमवरवेइया, वणसंडे, पएसा, जीवा, नन्दीश्वरोदसमुद्र के द्वार, द्वारों के अन्तर, पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श, समुद्र और द्वीप के जीवों को एक दूसरे में उत्पत्ति पूर्ववत है। अट्ठो जो खोदोदगस्स,-जाव नन्दीश्वरोद नामक समुद्र के नाम का हेतु क्षोतोदसमुद्र के नाम के हेतु के समान है-यावत्सुमण-सोमणस भद्दा, एत्थ दो देवा महिड्ढिया-जाव- पल्योपम की स्थिति वाले सुमन और सोमनसभद्र नाम वाले पलिओवमट्टिईया परिवसंति, दो महधिक-यावत्-देव वहाँ रहते हैं । से एएणढणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-“णंदीसरोदे समुद्दे, हे गौतम ! इस कारण से 'नन्दीश्वरोद समुद्र' नन्दीश्वरोद गंदीसरोदे समुद्दे, समुद्र कहा जाता है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८४ नंदीसरोदसमद्दस्स निच्चत्तं नन्दीश्वरोद समुद्र की नित्यता८५४. अदुत्तरं च णं गोयमा ! गंदीसरोदे समुद्दे सासए-जाव- ८५४. अथवा हे गौतम ! नन्दीश्वरोदसमुद्र शाश्वत हैं यावत्णिच्चे। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८४ नित्य हैं । णंदीसरदीवे सत्तदोवा नन्दीश्वरद्वीप में सात द्वीप८५५. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्तदीवा पण्णता, हे जहा- ८५५. नन्दीश्वरद्वीप में सात द्वीप कहे गये हैं, यथा-(१) जम्बू १. जंबुद्दीबे, २. धायइसंडे, ३. पोक्खरवरे, ४. वरुणवरे, द्वीप, (२) धातकीखण्डद्वीप, (३) पुष्करवरद्वीप, (४) वरुणवरद्वीप, ५. खीरवरे, ६. घयवरे, ७. खोयवरे। (५) क्षीरवरद्वीप, (६) घृतवरद्वीप । -ठाणं ७, सु० ५८० गंदीसरदीवे सत्त समुद्दा नन्द्वीश्वरद्वीप में सात समुद्र८५६. गंदीसरवरस्स गं दीवस्स अंतो सत्तसमुद्दा पण्णता, तं जहा- ८५६. नन्दीश्वरद्वीप में सात समुद्र कहे गये हैं, यथा-(१) १. लवणे, २. कालोए, ३. पुक्खरोदे, ४. वरुणोदे, लवणसमुद्र, (२) कालोदसमुद्र, (३) पुष्करोदसमुद्र, (४) वरुणोद५. खोरोदे, ६. घओदे, ७. खोओदे। समुद्र. (५) क्षीरोदसमुद्र, (६) घृतोदसमुद्र, (७) क्षोदोदसमुद्र । -ठाणं ७, सु०५८० १ सूरिय० पाठ १६, सु० १०१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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