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________________ ४०८ लोक-प्रज्ञप्ति दाहिण पच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए८५१. तत्थ णं जे से दाहिण-पच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, तस्स णं चउदिसि सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसोणं जंबूदीपमा माओ जारि राहाणीओ पष्णताओ, तं जहा तिर्वक लोक मंदीश्वरीय वर्णन 1:3 १. भूता, २. भूतवडेंसा, ३. गोथूभा, ४. सुदंसणा । १. अमलाए, २. अच्छराए, २. गमियाए, ४. रोहिणीए । -ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० ३०७ उत्तर- पञ्चत्थिमिले रतिकरगए८५२. तत्थ णं जे से उत्तर-पच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, तस्स णं चदिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं, जंत्रीवपमाना बतारि हामी माओ से नहा रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं १. वसूए, २. वसुगुप्ताए, ३. वाए, १. रयणा, २. रयणुच्चया, ३. सव्वरयणा, ४. रयणसंचया । ४. वसुन्धराए ।" - - ठाणं अ० ३, उ० ४, सु० ३०७ सूत्र ८५१-८५२ दक्षिण-पश्चिम दिशा में रतिकर पर्वत ८५१. उन पर्वतों में से दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) के रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में शक्र देवेन्द्र देवराज की चारों अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी लम्बी पौड़ी चार राजधानियां कही गई हैं। यथा (१) भूता, (२) भूतावतंसा, (३) गोस्तूपा, (४) सुदर्शना । (१) ('अमरा' अग्रमहिषी की राजधानी का नाम ) भुता, (२) (अप्सरा अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) भूतावतंसा, (३) ( ' नवमिला' अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) गोस्तूपा, (४) ('रोहिणी' अग्रमपी की राजधानी का नाम) सुदर्शना, उत्तर-पश्चिम दिशा में रतिकर पर्वत - ८५२. उन पर्वतों में से उत्तर-पश्चिम (वायव्यकोण) के रतिकर पर्वत की चारों दिशाओं में ईशान देवेन्द्र देवराज की चार अग्रमहिषियों की जम्बूद्वीप जितनी लम्बी चोटी बार राजधानियाँ कही गई हैं, यथा - (१) रत्ना, (२) रत्नोच्चया, (३) सर्वरत्ना, (४) रनसंचया । (१) ('वसु' अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) रत्ना, (२) ('वसुगुप्ता' अपमहिषी की राजधानी का नाम) रत्नोच्या (२) ('वसुमित्रा' अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) सर्व रत्ना, (४) ('वसुन्धरा' अग्रमहिषी की राजधानी का नाम ) रत्नसंचया, १ तृतीय उपांग जीवाभिगम के वृत्तिकार श्री मलयगिरि इस सूत्र की वृत्ति में लिखते हैं- "केषु चित्पुस्तकेषु रतिकरपर्वत चतुष्टयवक्तव्यता सर्वथा न दृश्यते" अतः यह स्वतः स्पष्ट है कि उनके सामने एक ऐसी प्रति भी थी, जिसमें रतिकरपर्वत चतुष्टयवाला पाठ था, क्योंकि इस पाठ की वृत्ति भी उन्होंने की है। आगमोदय समिति से प्रकाशित जोवाभिगम की प्रति में "रतिकरपर्वत" चतुष्टयवाला मूलपाठ तो नहीं है किन्तु उस पाठ की श्री मलयगिरिकृत वृत्ति अक्षरश: अंकित है । स्थानाग के चतुर्थ स्थान द्वितीय उद्देशक सूत्र ३०७ में जीवाभिगम के समान नंदीश्वरवरद्वीप की चार दिशाओं में स्थित चार अंजनक पर्वतों का तथा चार विदिशा में स्थित चार रतिकर पर्वतों का वर्णन है । आगमोदय समिति से प्रकाशित स्थानांग की प्रति से ( रतिकरपर्वत चतुष्टय वाला) पाठ यहाँ उद्धृत किया गया है । यदि रतिकर पर्वत चतुष्टयवाला पाठ स्थानांग में नहीं मिलता तो यह पाठ विच्छिन्न हो गया होता। क्योंकि जीवाभिगम की उपलब्ध प्रतियों में यह पाठ मिलता नहीं है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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