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________________ सूत्र ८४८.८५० तिर्यक् लोक : नंदीश्वरद्वीप वर्णन गणितानुयोग ४०७ गंदीसरवरे दीवे चत्तारि रतिकरगपव्वया- नन्दीश्वर में चार रतिकर पर्वत८४८. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवालविक्खंभस्स बहुमज्झ- ८४८. नन्दीश्वरद्वीप के चक्रवाल विष्कम्भ के मध्यभाग की चार देसभागे चउसु विदिसासु चत्तारि रतिकरगपव्वया पण्णत्ता, विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत कहे गये हैं । यथातं जहा१. उत्तर-पुरथिमिल्ले, रतिकरगपवए, (१) उत्तर-पूर्व (ईशानकोण) में रतिकर पर्वत । २. दाहिण-पुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, (२) दक्षिण-पूर्व (आग्नेयकोण) में रतिकर पर्वत । ३. दाहिण-पचत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, (३) दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यककोण) में रतिकर पर्वत । ४. उत्तर-पच्चथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, (४) उत्तर-पश्चिम (वायव्यकोण) में रतिकर पर्वत । ते णं रतिकरगपव्वया दसजोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं, वे रतिकर पर्वत एक हजार योजन ऊंचे हैं। दस गाउयसयाई उब्वे हेणं, एक हजार गाउ भूमि में गहरे हैं। सव्वत्थसमा, झल्लरिसंठाणसंठिया, ये पर्वत झालर के आकार से स्थित हैं अतएब सर्वत्र समान है। दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दम हजार योजन चौड़े हैं। एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसए इन पर्वतों की परिधि इकतीस हजार छः सौ तेवीस योजन परिक्खेवेणं, की है। सव्वरयणामया, अच्छा-जाव-पडिरूवा। ये पर्वत सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं-यावत्-मनोहर है। -ठाणं अ० ३, उ०४, सु० ३०७ उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए उत्तरपूर्व दिशा में रतिकर पर्वत८४६. तत्थ णं जे से उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपब्बए तस्स णं ८४६. उन पर्वतों से उत्तर-पूर्व (ईशानकोण) के रतिकर पर्वत चउदिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरणो चउण्हमग्गमहिसीणं की चारों दिशाओं में ईशान देवेन्द्र देवराज की चारों अग्रमहिषियों जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, की जम्बूद्वीप जितनी लम्बी चौड़ी चार राजधानियाँ कही गई हैं, तं जहा यथा१. णंदुत्तरा, २. गंदा, ३. देवकुरा. ४. उत्तरकुरा । (१) नन्दुत्तर, (२) नन्दा, (३) कुरा, (४) उत्तरकुरा । १. कण्हाए, (कृष्णा अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) नन्दुत्तरा, २. कण्हराईए, (कृष्णराजी अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) नन्दा, ३. रामाए, (रामा अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) देवकुरा, ४. रामरक्खियाए। (रामरक्षिता अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) उत्तरकुरा, -ठाणं अ० ३, उ०४, सु० ३०७ दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए- दक्षिण-पूर्व दिशा में रतिकर पर्वत८५०. तत्थ णं जे से दाहिण-पुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, तस्स णं ८५०. उन पर्वतों में से दक्षिण-पूर्व (आग्नेयकोण) के रतिकर चउदिसि सक्कस्स देविवस्स देवरणो, चउण्हमग्गमहिसीणं पर्वत को चारो दिशाओं में शक देवेन्द्र देवराज की चारों अग्रजंबुदीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- महिषियों की जम्बूद्वीप जितनी लम्बी चौड़ी चार राजधानियाँ कही गई हैं, यथा१. समणा, २. सोमणसा, ३. अच्चिमाली, ४. मणोरमा। (१) समणा, (२) सोमणसा, (३) अचिमाली, (४) मनोरमा, १. पउमाए, १. (पद्मा अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) समणा, २. सिवाए, २. (शिवा अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) सोमणसा, ३. सईए, ३. (शची अग्रमहिषो की राजधानी का नाम) अचिमाली, ४. अंजूए। -ठाणं अ०३, उ०४, सु० ३०७ ४. (अंजू अग्रमहिषी की राजधानी का नाम) मनोरमा,
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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