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________________ ४०४ लोक- प्रज्ञप्ति तिर्वक लोक नंदीश्वरद्वीप वर्णन : एक्कतीस जोयणसहस्सा तेवी जोगस परि वेणं पण्णत्ता, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिख्वा । तहा पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवे इया परिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, दोपह वि वण्णओ । तेसि णं दधिमुहपव्वयाणं उर्वार बहुसमरमणिज्जो भूमि - भागो पण्णत्तो, से जहा नामए आलिंगपुक्खरेइ वा जावविहरति । सिद्धायतणं तं चैव पमाणं । अंजणपव्वसु सच्चेव वत्तव्वया णिरवसेसं भाणियव्वं जब उपि अमंग - जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८३ दक्खिहिले अंजणगपग्वए ८४४. तत्थ णं जे से दक्खिणिल्ले अंजणपव्वते तस्स णं चउद्दिस चारि णंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा भद्दा य विसाला या पुण्डरि गिणी', तं चैव पमाण, तं चैव दधिमुहा पव्वया, तं चैव पमाण, - जाव-सिद्धायतणा । जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १८३ पच्चरिथमिल्ले अंजणगपबए ८४५ तत्थ णं जे से पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपव्वए तस्स णं चउदिसि बारि रिओ तं जहा मंदिसेगाव, अमोहा य, गोत्थूमी य सुदंसणा । तं चैव सम्भाव्यं जाव-सिद्धायणा । - -जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १८३ सूत्र ८४३-८४६ उत्तरिल्ले अंजणगपव्वए८४६. तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिस चत्तारि मंदापुषखरिणीओ पण्णत्ताओ, तं महा-विजया बेजयंती, जयंती, अपराजिया | सेसं तहेव जाव-सिद्धायतणा, सव्वा वण्णणा गातव्वा, उसकी परिधि इकतीस हजार छः सौ तेवीस योजन की कही गई है। प्रत्येक पर्वत सर्वरत्नमय है स्वच्छ है - यावत् - मनोहर है । प्रत्येक पर्वत पद्मवरवेदिका से घिरा हुआ है और प्रत्येक पद्मवर वेदिका वनखण्ड से घिरी हुई। उन दधिमुख पर्वतों पर सर्वथा सम रमणीय भूभाग कहा गया है । जिस प्रकार मृदंग तल है - यावत् — उन पर देव देवियाँ विहरण करती हैं। उन पर सिद्धायतन का प्रमाण पूर्ववत् है । अंजनक पर्वतों पर का सम्पूर्ण वर्णन वही है - यावत् उन पर आठ आठ मंगल हैं। दक्षिणी अंजनक पर्वत ८४४. उनमें से दक्षिण दिशा के अंजनक पर्वत पर उसके चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियाँ कही गई हैं, यथा - ( १ ) भद्रा, (२) विसाला, (३) कुमुदा, (४) पुण्डरी किणी । उन सबका प्रमाण पूर्ववत् है । दधिमुख पर्वतों का प्रमाण भी पूर्ववत् है। याय सिद्धानों का वर्णन मी पूर्ववत् है। पश्चिमी अंजनक पर्वत ८४५. उनमें से पश्चिमदिशा के अंजनक पर्वत पर उसके चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करणियां कही गई है, यथा(१) नन्दिसेणा (२) अमीषा (३) गोस्तुपा और (४) दर्शना । सिद्धायतन पर्यन्त सारा वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए । उत्तरी अंजनक पर्वत ८४६. उनमें उत्तरदिशा के अंजनक पर्वत पर उसके चारों दिशाओं में चार नन्दा पुष्करपियां कहीं गई है, क्या(१) विजया (२) जयंती (2) जयंती (३) अपराजिता । शेष सिद्धायतन पर्यन्त सारा वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। १ पाठान्तर नंदुत्तरा य नंदा आनदा नंदिवड्ढणा । २ (भावाला कुमुदा पुण्डरीकणी) ३ गंदीसरवरदीवे चत्तारि अंजणगपव्त्रया : गंदीसरवरस्स ण दीवस्स चक्कवालविक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजणगपव्वया पण्णत्ता, तं जहा १. पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वए, २. दाहिणिल्ले अंजणगपव्वर, ३. पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपव्त्रए, ४. उत्तरिल्ले अंजणगपत्रए । ते णं अंगाचउरासी इजोप्रगसहस्साई उड्ढं उच्चतेणं, एमेजोयणसह उ मूले दस जोपणसहस्वाई विभेणं, (शेष पृ० ४०५ पर)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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