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________________ ४०० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : नंदीश्वरद्वीप वर्णन सूत्र ८३७-८४१ पुण्णभद्द-माणिभद्दा य इत्थ दुवे देवा महिड्ढीया यहाँ पल्योपम की स्थिति वाले महधिक-यावत्-महासुखी -जाव-पलिओवमद्धितिया परिवसंति । पूर्णभद्र, माणिभद्र नाम वाले दो देव रहते हैं । से एएण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ--"खोदोदसमुद्दे, हे गौतम ! इस कारण से 'खोतोदसमुद्र' खोतोदसमुद्र कहा खोदोदसमुद्दे । जाता है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८२ खोदोदसमुदस्स निच्चत्त खोदोद समुद्र की नित्यता८३८. अदुत्तरं च णं गोयमा ! खोदोदसमुद्दे सासए-जाव-णिच्चे । ८३८. अथवा है गौतम ! खोदोदसमुद्र शास्वत है-यावत् . -जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १८२ नित्य है। गंदीसरदीवो नंदीश्वरद्वीप गंदीसरवरदीवस्स संठाणं नन्दीश्वर द्वीप का संस्थान८३६. खोदोदण्णं समुदं गंदिसरवरे णाम दीवे वट्ट वलयागार• ८३६. नन्दीश्वर नामक द्वीप वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित सठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।' क्षोतोदसमुद्र को चारों ओर से घेरे हुए स्थित है। तहेव समचक्कवालसंठाणसंठिए । वह पूर्ववत् समचक्रवाल संस्थान से स्थित है। विक्खंभ-परिक्खेवो संखिज्जाइं जोयणसयसहस्साई । उसकी चौड़ाई और परिधि संख्येय लाख योजन की कही दारा, दारंतरं, पउमवरवेइया, वणसंडे, पएसा जीवा तहेव । नदीश्वर द्वीप के द्वार, द्वारों के अन्तर, पदमवरवेदिका वनखण्ड, द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श द्वीप और -जीवा. पडि. ३, उ. २ सु. १८३ समुद्र के जीवों को एक दूसरे में उत्पत्ति, ये सब पूर्ववत हैं। गंदीसरवरदीवस्स णामहेऊ नन्दीश्वर द्वीप के नाम का हेतु८४०. प०-से केण? गं भंते ! एवं बुच्चइ--"णवीसरदीवे, ८४०. हे भगवन् ! किस कारण से 'नन्दीश्वर द्वीप' नन्दीश्वर गंदीसरदीवे ?" ___ द्वीप कहा जाता है ? उ०--गोयमा ! गंदीसरवरे गं दीवे तत्य तत्थ देसे देसे तहिं उ०-हे गौतम ! नन्दीश्वरद्वीप के सब विभागों में जगह तहि बहओ खडाखुड्डियाओ बावीओ-जाव-सरसरपंति- जगह अनेक छोटी छोटी बावड़ियाँ हैं-यावत्-सरोवरों की याओ खोदोदगपडिहत्थाओ पासाइयाओ-जाव-पडि- पंक्तियाँ हैं, वे सब ईक्षुरस से भरी हुई हैं, प्रसन्नता देने वाली है रूवाओ। यावत्-मनोहर है। तासु ण खुड्डियासु-जाव-बिलपंतियासु बहवे उप्पाय- उन छोटी छोटी बावड़ियों पर-यावत्-बिलपंक्तियों पर पन्वगा-जाव-खडहडगा सव्ववइरामया अच्छा-जाव- अनेक पर्वत -यावत् -पर्वतगर्त (खडहडगा) हैं, सभी वज्रमय हैं पडिरूवा। --जीवा. पडि. ३ उ २ सु. १८३ स्वच्छ हैं -यावत्-मनोहर हैं। गंदीसरवरदीवे चत्तारि अंजणगपव्वया-- नन्दीश्वरवरद्वीप में चार अंजनक पर्वत८४१. अदुत्तरं च णं गोयमा ! णंदिरसरदीवचक्कवालविक्खंभबहु- ८४१. अथवा हे गौतम ! नन्दीश्वरवरद्वीप के चक्रवाल विष्कम्भ मज्झदेसभागे एत्थ ण चउदिसि चत्तारि अंजणगपव्वता के मध्य भाग की चारों दिशाओं में चार अंजकनक पर्वत कहे पण्णत्ता। गये हैं। १ सूरिय पाठ १६, सु० १०१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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