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सूत्र ८३६-८३७
तिर्यक् लोक : क्षोतोद समुद्र वर्णन
गणितानुयोग
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खोदोदसमुद्दो
क्षोतोद समुद्र
खोदोदसमुदस्स संठाणं
क्षोतोद समुद्र का संस्थान-- ८३६. खोयवरण्णं दीवं खोदोदे णामं समुद्दे वट्ट वलयागारसंठाण- ८३६. वृत्त वलयाकार संस्थान से स्थित क्षोतोद नामक समुद्र
संठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।' क्षोतवरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए है। तहेव समचक्कवालसंठाणसंठिए ।
वह पूर्ववत् समचक्रवाल संस्थान से स्थित है। विक्खंभ-परिक्खेवो संखिज्जाई जोयणसयसहस्साई ।
उसका विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है। दारा, दारंतरं, पउमवरवेइया, वणसंडे, पएसा, जीवा तहेव । क्षोतोद समुद्र के द्वार, द्वारों के अन्तर, पद्मवरवेदिका, वन
खण्ड, द्वीप और समुद्र के प्रवेशों का परस्पर स्पर्श, समुद्र के जीवों -जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १८२ की द्वीप में उत्पत्ति और द्वीप के जीवों की समुद्र में उत्पत्ति
पूर्ववत है। खोदोदसमुदस्स णामहेऊ
क्षोतोदसमुद्र के नाम का हेतु८३७. ५०-से केण? णं भंते ! एवं वुच्चइ-"खोदोदसमुद्दे, ८३६. प्र०-हे भगवन् ! क्षोतोदसमुद्र किस कारण से क्षोतोद खोदोदसमुद्दे ?"
समुद्र कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! खोदोदस्स णं समुदस्स उदए से जहा णामए उ०-हे गौतम ! जिस प्रकार आस्वाद्य, मसल (लाभप्रद)
आसल-मांसल-पसत्थ-वीसंत-निद्ध सुकुमालभूमिभागे प्रशस्त, विश्रान्त, स्निग्ध एवं सुकुमाल भूमिभाग को कोई कशल सुच्छिन्ने सुकट्ठ-लट्ठ विसिट्ठ-निरुवहयाजीयवावीय- कृषिकार सुकाष्ठ के सुन्दर एवं विशिष्ट हल से जोतकर ईख सुकासजपयत्तनिउण-परिकम्म-अणुपालिय-सुवुड्ढि- बोये, निपुण रक्षक उसकी रक्षा करे, निनाण करने पर अच्छी वडढाणं, सुजाताणं, लवणतणदोसवज्जियाणं णयाय- तरह बढ़े, तृण आदि के दोष से रहित कृषि प्रणाली से परिपरिवडिढयाणं, णिम्मातसुन्द राणं, रसेणं परिणयमउ- वधित, मृदु, पुष्ट एवं मधुर रस युक्त पोर, पुष्परज रहित. पीणपोरभंगुरसुजाय-मधुर रस-पुप्फविरिइयाणं, उवद- उपद्रवजित शीतस्पर्श युक्त ताजा तोड़े हए रस से लिप्त ऊपर व-विवज्जियाणं, सीयपरिफासियाणं, अभिणवमग्गाणं. तृतीय भाग और अधोभाग (मूल) रहित, गाँठे साफ कर कुशल अभिलित्ताणं तिभायणिच्छोडियवाडिगाण, अवणित- पुरुष द्वारा काटकर तैयार किए गये--यावत्-पौण्डजनपद के मलाणं गंठिपरिसोहियाणं, कुसलनर कप्पियाणं, उन्वणं ईक्षु बलवान पुरुष द्वारा यंत्र से पीले गये वस्त्र से छाने गये. -जाव-पोंडियाणं, बलवगणरजत्त, जतपरिगालितमेत्ताणं इलायची आदि से सुवासित किये गये, पथ्यकर सुपाच्य वर्णवान खोयरसे होज्जा' बत्थपरिपूए चाउज्जातगसुवासिते, इक्षुरस है, अहियपत्थलहुके वण्णोववेते-जाव-फासेणोववेते। भवे एयारूवे सिया ?
क्या क्षोतोद समुद्र का जल ऐसा है ? णो तिण?' सम?, गोयमा ! खोदोदस्सणं समुदस्स गौतम ! नहीं ऐसा नहीं है, क्षोतोदसमुद्र का जल इससे भी उदए एतो इतरए चेव-जाव-आसाएणं पण्णत्ते । इष्टतर-यावत्-स्वादिष्ट कहा गया है।
१ सूरिय. पा. १६ सु. १०१ । २ रसेणं परिणय-मउ-पीण-पोर-भंगुर-सुजाय-महुररस-पुप्फविरइयाणं उवद्दवविवज्जियाणं, सीयपरिफासियाण, अभिणवतवग्गाणं
अपालिताणं (कुछ प्रतियों में इतना पाठ अधिक है ।) प्र०-खोदोदस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते ? उ०-गोयमा ! से जहा णामए उच्छृणं जच्चपुण्डकाणं वा, हरियालपिंडराणं वा, भेरुण्डछणाणं वा, कालपोराणं बा. तिभाग
निवाडियवाडगाणं वा, बलबगपरजंत-परिगालिय मित्ताणं वा, जे य से रसे होज्जा वत्थपरिपूए चाउज्जातगसूवासिते
अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उबवेए-जाव-फासेणं उववेए। प्र०-भवे एयारूवे सिया । उ०-नो इण? समट्ट, गोयमा ! एत्तो इट्टतराए चेव- अस्साएणं पण्णत्ते । जहा खोतोदो तहा सेसा वि, णवरं सयंभूरमणसमुद्दो-- जहा-पुक्खरोदो।
-जीवा. पडि. ३ उ. २. १८७