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________________ ३६८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : क्षोदवरद्वीप वर्णन सूत्र ८३२-८३५ W we घयोदसमुदस्स निच्चत्तं घृतोद समुद्र की नित्यता८३२. अदुत्तरं च णं गोयमा ! घतोदे समुद्दे सासए-जाव-णिच्चे । ८३२. अथवा है गौतम ! घृतोद समुद्र शास्वत है-यावत् -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८२ नित्य है। INDIAN खोदवरदीवो क्षोदवरद्वीप खोदवरदीवस्स संठाणं क्षोदवरद्वीप का संस्थान८३४. घतोदण्णं समुद्द खोदवरे णाम दीवे वट्ट वलयागारसंठाण- ८३३. वृत्त एवं वलयाकार संस्थान से स्थित क्षोदवरद्वीप घृतोद संठिए सव्वओ समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।' समुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है। तहेव समचक्कवालसंठाणसंठिए। पूर्ववत समचक्रवाल संस्थान से स्थित है। विक्खंभ-परिक्खेवो संखिज्जाइं जोयणसयसहस्साई । विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है । दारा, दारंतरं, पउमवरवेइया, वणसंडे, पएसा, जीवा तहेव। क्षोदवर द्वीप के द्वार, द्वारों के अन्तर, पद्मवरवेदिका, --जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १८२ वनखण्ड, समुद्र और द्वीप के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श, समुद्र और द्वीप के जीवों को एक दूसरे में उत्पत्ति पूर्ववत् कहें । खोदवरदीवस्स णामहेऊ क्षोदवरद्वीप के नाम का हेतु८३४. ५०-से केण? णं भंते ! एवं वुच्चइ-"खोदवरे दोवे, ८३४. प्र० - हे भगवन् ! खोदवरद्वीप को 'खोदवरद्वीप' किस खोदवरे दीवे ?" कारण के कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! खोतबरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं उ०-हे गौतम ! खोदवरद्वीप के प्रत्येक विभाग में और तहिं बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ बावीओ-जावसरसरपंति- उन विभागों के छोटे छोटे विभागों में अनेक छोटी छोटी बावड़ियां याओ खोदोदगपडिहत्थाओ पासाइयाओ-जाव- पडि- क्षोदोदक (ईक्षुरस जैसे जल) से परिपूर्ण हैं वे दर्शनीय हैं-यावत रूवाओ। -मनोहर हैं । तासु णं खुड्डियासु-जाव-बिलपंतियासु बहवे उप्पाय- उन बावड़ियों पर-यावत्-बिलों की पंक्तियों पर अनेक पन्वगा-जाव-खडहडगा सव्व वेरुलियामया अच्छा-जाव- उत्पात पर्वत हैं—यावत्-पर्वत गृह हैं, वे सभी वैडूर्यरत्नमय हैं पडिरूवा। स्वच्छ हैं-यावत्-मनोहर हैं । सुप्पभ-महप्पभा य दो देवा महिड्ढीया-जाव-पलिओव- वहाँ पर महधिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले, मद्वितिया परिवसंति । 'सप्रभ, महाप्रभ नाम के दो देव रहते हैं । से एतेणट्टणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"खोदवरे दीवे हे गौतम ! इस कारण से 'खोदवरद्वीप' खोदवरद्वीप कहा खोदवरे दीवे। --जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १८२ जाता है । खोदवरदीवस्स निच्चत्त क्षोदवरद्वीप की नित्यता८३५. अदुत्तरं च णं गोयमा ! खोदवरे दीवे सासए-जाव-णिच्चे । ८३५. अथवा हे गौतम ! खोदवरद्वीप यह नाम शास्वत है -जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १८२ यावत्-नित्य है। १ सूरियः पा. १६ सू १०१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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