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३६६ लाक- प्रज्ञप्ति
घयव रदीवो_
तिर्यक् लोक घृतवरद्वीप वर्णन
घयवरदीवस्स सठाणं
८१७. खीरोदण्ण समुद्द घयवरे णामं दीवे वट्ट े वलयागारसंठाण संठिते सव्वओ समंता संपरिविखत्ता णं चिट्ठति । '
तव समचाणठिए ।
-परिवखज्जाई जोयणसहसा
दारा, दारंतर, पदमबरमेया बगडे, पसा जीवा तब - जीवा. पडि ३, उ. २, सु. १५१
वह उसी प्रकार समचक्राकार संस्थान से स्थित है । उसका विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन के हैं । घृतवर द्वीप के द्वार और द्वारों के अन्तर पद्मवर वेदिका, वनखण्ड द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श, द्वीप और समुद्र के जीवों की एक दूसरे में उत्पति पूर्ववत है ।
घयवरदीवस्स णामहेऊ
घृतवरद्वीप के नाम हेतु -
८१८.५० - सेकेणणं भंते ! एवं बुच्चइ – “घयवरेदीवे घयवरे ८१८. प्र० - भगवन् ! घृतवर द्वीप को घृतवर द्वीप ही क्यों कहा दीवे ?"
जाता है ?
उ०- गोयमा ! घयवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे देसे तह तह बहुओ बुडाबुट्टियाम बावीओ-जाव- सरसरपंतियाओ योगपत्थिाम पासाइयाओ जाव-परिवाओ। तासु बुद्धियासुजाव विलपतिया बहवे पब्बगा-जाव-खडहडगा सथ्वकंचणमया अच्छा-जावपडिलवा |
कण-कणयप्पमा एत्थ दो देवा महिड्डिया - जावपलिओमद्वितिया परिवर्तति ।
से एले गोमा ! एवं पुचर "घरेदीचे घयवरे दीवे ।"
-जीवा. पडि, ३, उ. २, सु. १८१
घयवरदीवरस निय
८१६. अनुत्तरं च णं गोयमा ! घयवरे दीवे सासए- जाव- णिच्चे । —जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८१
१ सूरिय० पा. १६ सु. १०१ ।
घृतवरद्वीप -
सूत्र ८१७- ८१६
घृतवरद्वीप का संस्थान
८१७. वृत्त एवं वलयाकार संस्थान से स्थित घृतवर नाम का द्वीप क्षीरोदसमुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है ।
उ०- गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान स्थान पर अनेक छोटी छोटी वापिकायें है यावत् सरों की पंक्तियाँ है, ये सब लोक से परिपूर्ण हैं, प्रसन्नताजनक हैं- यावत - मनोहर हैं।
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उन वापिकाओं में - यावत - बिलपंक्तियों में अनेक उत्पात पर्णत हैं - यावत - पर्वतगृह हैं, सभी कंचनमय हैं स्वच्छ हैंयावत मनोहर है।
कनक और कनकप्रभ ये दो महधिक - यावत्, पल्योपम स्थिति वाले देव वहाँ रहते हैं ।
गौतम | इस चारण से धूतवरद्वीय तवरद्वीप कहा जाता है।
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घृतवरद्वीप का नित्यत्व
८१६, अथवा हे गौतम! घृतवर द्वीप यह नाम शास्वत यावत्नित्य है ।
口聚口二