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________________ २६ गणितानुयोग : प्रस्तावना सूत्र ६५०, पृ० ४५६ सूत्र ६५७, पृ० ४५८-- चन्द्रमा एक मुहूर्त में मण्डल के १०६८०० भाग में से परिधि यहाँ मनुष्य क्षेत्र में चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तक्षत्र, तारे अनवस्थित के १८३० भाग गति करता है। तथा मनुष्य क्षेत्र के बाहर वे अवस्थित (गति-संचरण हीन) बताये सूर्य एक मुहूर्त में मण्डल के १०६८०० भागों में से परिधि में मण्डल के १०१३०० भागों में से परिधि गये हैं। यह शोध का विषय है तथा आधुनिक संदर्भ में उपयुक्त के १८३५ भाग गति करता है। ति०प० भाग १/७ में इन भागों को गयणखंड (गगनखंड) सूत्र ६५८, पृ० ४५८-४५६-- कहा गया है। द्वीप समुद्रों के ज्योतिष्कों की संख्या निकालने हेतु यहाँ सूत्र ६५१, पृ० ४५६-४५७ प्रारम्भिक विधि दी गई है । ति० प० भाग १/७ पृ०७६४ आदि गति अल्पबहुत्व में शीघ्र, अल्प का उपयोग हुआ है। में सपरिवार चन्द्रों को लाने का विधान दृष्टव्य है । वहाँ रज्जु के अर्द्धच्छेद एवं अन्य गणना का अवलम्बन लिया गया है। सूत्र ६५२, पृ० ४५७-- ऋद्धि अल्पबहुत्व में महा और अल्प का उपयोग हुआ है। सूत्र ६६०, पृ० ४५६सूत्र ६५३, पृ० ४५७ चन्द्र, सूर्य, ग्रह और नक्षत्रों के योग के सम्बन्ध में नियम यहाँ चन्द्र सूर्यादि के समूह अलग-अलग समूहों के बतलाये गये हैं। इस सम्बन्ध में चन्द्र सूर्य का ग्रह-नक्षत्रों से लिए पिटक शब्द का भी प्रयोग हुआ है। प्राकृत में इसे पिडय अथवा विलोमरूपेण पूर्व-पश्चिम से या दक्षिण-उत्तर से योगयुक्ति या पिडग कहा है। पिटक का शब्दार्थ सन्दूक, पिटारी आदि हो होती है । नक्षत्र मण्डल के कुल विभागों की संख्या १०६८०० है । सकता है। प्रत्येक पिटक में दो चन्द्र, दो सूर्य, १७६ ग्रह, ५६ सूत्र ६६१, पृ० ४६०नक्षत्र हैं। इस प्रकार के ६६ पिटक ग्रहों तथा नक्षत्रों के मनुष्य एक मुहूर्त में नक्षत्र सूर्य की अपेक्षा ५ भाग मण्डल अधिक, लोक में हैं। पिटक शब्द महत्वपूर्ण है। तथा चन्द्रमा से ६७ भाग अधिक गमन करते हैं। सूत्र ६५४, पृ० ४५७ - नक्षत्र–१८३५ भाग मण्डल के यहाँ पंक्तियाँ शब्द महत्वपूर्ण हैं । प्रत्येक पंक्ति में ६६ चन्द्र सूर्य-१८३० " " सूर्य हैं । ऐसी ४ पंक्तियाँ मनुष्य लोक में हैं। चन्द्र-१७६८ " प्रत्येक पंक्ति में ६६ ग्रह हैं। ग्रहों की १७६ पंक्तियाँ मनुष्य लोक में हैं। सूत्र ६६२, पृ० ४६०प्रत्येक पंक्ति में ६६ नक्षत्र हैं। नक्षत्रों की ५६ पंक्तियाँ हैं । सूर्यप्रज्ञप्ति का दसवाँ पाहुड़ का दूसरा अन्तर पाहुड़ देखिये। सूत्र ६५५, पृ० ४५८ - चन्द्र एवं नक्षत्र योग में यहाँ अभिजित नक्षत्र से चन्द्रमा का चन्द्र, सूर्य, ग्रहों के सभी मण्डल (बीथियाँ) अनवस्थित हैं योगकाल निकालने हेतु जात है कि अभिजित नक्षत्र गगनमण्डल के ६३० भागों में व्याप्त है। चन्द्र से नक्षत्र गति ६७ मण्डल 'वे मेरु की प्रदक्षिणा करते हैं । यह “अनवस्थित" अत्यन्त महत्व भाग अधिक होने से इस सापेक्ष राशि द्वारा ६३० को भाजित पूर्ण है। ____ नक्षत्र और ताराओं के सभी मण्डल अवस्थित हैं और वे भी करने पर ६३० अथवा ६ मुहूर्त एवं मुहूर्त योग काल प्राप्त मेरु की प्रदक्षिणा करते हैं। हो जाता है। इसको विलोम रूपेण भी सिद्ध किया जा सकता सूत्र ६५६, पृ० ४५८यहाँ महत्वपूर्ण तथ्य है कि चन्द्र सूर्य केवल अपने-अपने इसी प्रकार श्रवण नक्षत्र का गगन मण्डल फैलाव २०१० मण्डलों-आभ्यन्तर, बाह्य तथा तिर्यक् क्षेत्र में मण्डल संक्रमण करते हैं, किन्तु मण्डलों से उर्ध्व और अधो क्षेत्र में संक्रमण नहीं भाग में है। अतएव चन्द्र से इस नक्षत्र का योगकाल -अथवा करते हैं। इनके इस प्रकार Orbital planes हैं। आधुनिक सन्दर्भ में तुलनीय हैं। ३० मुहूर्त पर्यन्त रहेगा। ६७
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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