SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना २५ इस प्रकार पूर्वोक्त प्रमाण ऐतिहासिक दृष्टि से रहस्य उद्घाटन होने पर अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही आधुनिक रूप में उन्हें स्थिति के सम्बन्ध में तथा गतिशीलता के सम्बन्ध में स्वरूप सहित स्पष्ट किया जा सकता है। सूत्र १४६, पृ० ४४५-४४६-- ज्योतिषियों का आयाम-विष्कम्भ, परिधि एवं बाहल्य नाम आयाम विष्कम्भ परिधि बाहल्य ५६ योजन २५४३ योजन २८ योजन ४८ योजन ६४ ३ योजन २४ योजन ग्रह योजन नक्षत्र १ कोस तारा कोस तिलोयपत्रि भाग १/७ में उपलब्ध मान इस प्रकार हैंनाम आकार उपरितल का विस्तार 1X३ योजन १४३ कोस X३ कोस १ कोस } कोस ५०० धनुष बाहल्य गाथाएँ चन्द्र अर्द्धगोलक १६ योजन परिधि दो योजन से कुछ अधिक दो योजन से अधिक योजन ३७, ३६, ४० अर्द्धगोलक ४८ योजन २४ योजन १०० नक्षत्र १०६ अर्द्धगोलक 1 कोस ११ कोस से अधिक कोस ८४, ८५ अर्द्धगोलक १ कोस ३ कोस से अधिक कोस ६०,६१,६२. गुरु अद्धंगोलक कोस का बहुभाग ६४, ६५ मंगल अर्द्धगोलक 1 कोस 1 कोस ६७,६८ शनि 1 कोस अवशिष्ट ग्रह अर्द्धगोलक १०२ अर्द्धगोलक १ कोस 1 कोस १०५, १०६. तारा अर्द्धगोलक उत्कृष्ट २००० धनुष जघन्य ५०० धनुष ११० मध्यम १५०० धनुष सूत्र ६४७, पृ० ४४७– शिक्षा-गति-लंघन (लांघना), वल्गन (कूदना), धावन" इस सूत्र में विभिन्न प्रकार की गतियों तथा बल का विवरण (दौड़ना), धोरण (गति चातुर्य), त्रिपदी (भूमि पर तीन पैर टिकाना), जविनी (वेगवती)। दाशमिक संकेतना में संख्याएँ १६०००, ८००० तथा २००० ___ गमन-गति- इच्छानुसार, प्रीतिकर, मन समान वेगवती, अमित । सूत्र ६४८, पृ० ४५३गति-कुटिल गति, ललित गति, आकाश गति, चक्रवाल यहाँ अल्पबहुत्व अनन्तगुणा रूप में दिया गया है। गति, चपलगति, गर्वित गति, पुलित (आकाश) गति, चंचल गति। सूत्र ६४६, पृ० ४५४बल–अमित । यहाँ दाशमिक संकेतना का उपयोग है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy