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________________ २४ गणितानुयोग : प्रस्तावना सूत्र ६३१, पृ० ४३३ सूत्र ६४३, पृ० ४४१-- ___जम्बूद्वीप में ताराओं की संख्या [१३३६५०] (१०)14 दी मन्दर पर्वत से ११२१ योजन के अन्तर पर ज्योतिष्क गति गई है। यही संख्या ति० प० भाग १/७ गाथा ४६४ में उल्लिखित बतलायी गई है। यह महत्वपूर्ण तथ्य है। यहां से ज्योतिषियों है । यह दाशमिक संकेतना में है। का गमन प्रारम्भ होता है। सूत्र ६३२, पृ० ४३४ यह शोध का विषय है। लवण समुद्र में (२६७६००) (१०)" ताराओं की संख्या सूत्र ६४४, पृ० ४४२दी गयी है जो ति० प० भाग १/७ गाथा ५६६ में इसी रूप में लोकान्त से ११११ योजन के अन्तर पर ज्योतिष्क कहे गये दी गई है। यहाँ भी दाशमिक संकेतना है। ग्रह ३५२ दोनों में हैं। यह भी शोध का विषय है। समान हैं। नक्षत्र ११२ हैं जो दोनों में समान हैं। (अनुवाद सूत्र ६४५, पृ० ४४२-- पुनः देखें) ज्योतिषियों का भूभाग से ऊंचाई का प्रमाण निम्नलिखित सूत्र ६३३-६३६ पृ० ४३५-४३८-- रूप में दिया गया है जो महत्वपूर्ण है। इस ऊँचाई का अर्थ रहस्यद्वीप समुद्र ताराओं की संख्या मय है क्योंकि योजन भिन्न योजनाओं के अनुसार विभिन्न प्रकार धातकोखण्डद्वीप (८०३७००) (१०)14 के अंगुलों पर आधारित, भूगोल, ज्योतिष तथा खगोल प्रमाणों कालोद समुद्र (२८१२६५०) (१०)14 के लिए योजनाबद्ध रूप में बांधे गये होंगे । अतएव यह गहन शोध पुष्करवरद्वीप (९६४४४००) (१०)" का विषय है। फिर भी इस पर शर्मा, त्रिश्क और जैन ने शोध पुष्करार्ध द्वीप (आभ्यन्तर) (४८२२२००) (१०)" लेखादि लिखे हैं जो रहस्य के एक अंश को प्रकाशित करते हैं । उपरोक्त प्रमाण ति० प० भाग १/७ गाथा ६००, ६०१, ज्योतिषी का नाम रत्नप्रभा पृथ्वी के अतिसम भूभाग से ६०२ में (पुष्करबरद्वीप छोड़ कर) इसी रूप में वर्णित हैं। ऊँचाई सूत्र ६३७, पृ० ४३८ तारा (नीचे का) ७६० योजन __ पुष्करोद समुद्र में संख्येय चंद्र, संख्येय सूर्य, संख्येय ग्रह, ८८० योजन संख्येय नक्षत्र, संख्येय कोटाकोटि तारागण रूप में संख्याएँ वणित ८०० योजन हैं । दाशमिक संकेतना का उपयोग तारागण की संख्या के साथ तारा (ऊपर का) ६०० योजन किया गया है । यह ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है । ति० प०, भाग १/७, के अनुसार ज्योतिषी निम्नलिखित सूत्र ६३८, पृ० ४३६ रूप में दिये गये हैं। ___ मनुष्य क्षेत्र में १३२ चन्द्र, १३२ सूर्य, ११६१६ महाग्रह, ज्योतिषी का नाम चित्रा पृथ्वी से ऊपर माप गाथा ३६९६ नक्षत्र, (८८४०७००) (१०)14 तारागण बतलाये गये चन्द्र ८८० योजन हैं । ति० प० भाग १/७, गाथा ६०६, ६०७ एवं ६०८ में ये ही ८०० योजन संख्याएँ दी गयी हैं । ये सभी दाशमिक संकेतना में दी गयी हैं। ८८८ योजन सूत्र ६४०, पृ० ४४० (बारह योजन मात्र बाहल्य) यहाँ रुचक द्वीप में असंख्य चन्द्र बतलाये गये हैं। असंख्य ८८८ योजन कोटाकोटि तारागण बतलाये गये हैं। यहाँ भी दाशमिक संकेतना ८६१ योजन में साथ-साथ असंख्य का उपयोग इतिहास की दृष्टि से महत्व ८६४ योजन पूर्ण है। मंगल ८६७ योजन सूत्र ६४२, पृ० ४४१ - १०० योजन ___ ज्योतिष्कों का अल्पबहुत्व (Comparability) इतिहास की अवशिष्ट ग्रह (बुध और शनि के अन्तराल १०१ दृष्टि से महत्वपूर्ण है । यहाँ तुल्य, अल्प, संख्येय गणितीय शब्द ८८८ से १०० योजन के बीच में) हैं । यथा चन्द्र और सूर्य तुल्य हैं। सबसे अल्प नक्षत्र हैं । ग्रह नक्षत्र ८८४ योजन संख्येय गुण हैं और तारा संख्येयगुण हैं । ये क्रमानुसार अल्पबहुत्व ७६० योजन की शैली है। (११० योजन मात्र बाहल्य में) सूर्य शनि १०४
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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