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________________ सूत्र ७३४, पृ० ३६६ यहाँ सख्या दाशमिक संकेतना में है। सहस्स का उपयोग हुआ है। इसी प्रकार सूत्र सूत्र ७३६, पृ० ३७० कालोद समुद्र का विष्कम्भ ८००००० योजना चक्रवाल रूप में है । अतः एवं सूची व्यास २६००००० योजन होता है। यदि V १० को का मान ३१६२२७ रूप लिया जाये तो परिधि -६१,७०,५८३ योजन प्राप्त होती है। किंतु ग्रन्थ में ε१,७०, ६७५ योजन से कुछ अधिक बताई गई है। यह शोध का विषय है । लाख की जगह सय ७३५ में भी है ? सूत्र ७४५, पृ० ३७२- पुष्करवरद्वीप की चक्राकार चौड़ाई १६००००० योजन दी गई है । अतएव बनने वाला कुल व्यास ६१००००० योजन प्राप्त होगा । अतएव इसकी परिधि का माप = १०३.१६२२७ लेने पर परिधि - ६१००००० X ३ १६२२७ १६२८६८४७ योजन होती है। किन्तु ग्रन्थ में इसका मान १६२८६८६४ बतालायी गयी है । यह शोध का विषय है कि यह मान किस भांति निकाला गया । सूत्र ७४८ पृ० ३७३ यहाँ ४८२२४६६ को दाशमिक संकेतना में उल्लिखित किया हैं । सूत्र ७५१ पृ० ३७४ यहाँ पत्योपम स्थिति का उल्लेख है । सूत्र ७५२ पृ० ३७४– यहां मानुषोसर पर्वत के विभिन्न मान दाशमिक संकेतना में दिये ये हैं । ति० प०, भाग १ / ४, गाथा २७६० में इसकी आभ्यन्तर सूची ४५००००० योजन दी गई है। तदनुसार उसकी परिधि १४२३०२४६ योजन दी गई है जो इस ग्रन्थ में भी इतने प्रमाण गई है । किन्तु ४५००००० X ३१६२२७ १४२३०३१५ योजन प्राप्त होती है । तदनुसार यह शोध का विषय है । इसी प्रकार बाह्य सूची ति० प० भाग १/४, गाथा २७५७ में ४५०२०४४ योजन है तथा परिधि १४२३६७१३ किन्तु इस ग्रन्थ में १४२३६७१४ योजन दी गई है। इस प्रकार यहाँ शोध का विषय प्रस्तुत है । शेष माप की तुलना भी दृष्टव्य है । सूत्र ७६८, पृ० ३७५-३७६ इस गाथा में भी दाशमिक संकेतना में पुष्करवरद्वीपार्ध का विष्कम्भ एवं परिधि दी गई है। सूत्र ७६१, पृ० ३८८ गणितानुयोग प्रस्तावना २३ यहाँ परिधि दाशमिक संकेतना में उल्लिखित है । सूत्र ७६६ पृ० ३६० यहाँ पुष्करोद समुद्र का विष्कम्भ संख्यात सहस्र योजनों में किन्तु परिधि को संख्यात शत सहस्र योजनों में व्यक्त किया गया गया है । यहाँ संख्यात शब्द का उपयोग महत्वपूर्ण और बीजीय रूप की ओर प्रवृत्ति का द्योतक है । ऐसे शब्दों का उपयोग सूत्र ८०१, पृ० ३६०, तथा सूत्र ८०५ पृ० ३६१ में भी हुआ है। किंतु सूत्र ८०५ में चौड़ाई तथा परिधि दोनों को ही संख्यात शतसहस्र बतलाया गया है। इसी प्रकार सूत्र ८०८, पृ० ३६२, सूत्र ८१७, पृ० ३९६ सूत्र ८३०, पृ० ३६७, सूत्र ८३४, पृ० ३६८; सूत्र ८३६, पृ० ३६६ पर है । सूत्र ८३-८४१, पृ० ४००-४०३ यहाँ भी नंदीश्वर द्वीप की चौड़ाई और परिधि संख्येय लाख योजन बतलाई गई है। शेष संख्याएँ दाशमिक संकेतना में हैं । सूत्र ८४८, ४०७पृ० यहाँ १०००० योजन चौड़ाई तदनुसार परिधि १००००X ३-१६२२७ लेने पर ३१६२२७ योजन प्राप्त होती है । इस में यह ३१६२३ योजन ली है । ग्रन्थ इसी प्रकार संख्या शत सहस्र योजन की परिधि सूत्र ८६०, पृ० ४११, तथा सूत्र ८७४ पृ० ४१३ में भी बतलाई गई है । सूत्र ६२८, पृ० ४२६ रत्नप्रभा पृथ्वी के अति सम भूमिभाग से ७६० योजन की ऊँचाई पर ऊपर की ओर ११० योजन के विस्तृत क्षेत्र में असंख्य ज्योतिषी स्थान तथा तिरछे ज्योतिषी देवों के असंख्य शत सहस्र विमान आवास हैं । ति० प० भाग १ / ७ गाथा १०८ में, योजन उपर जाकर आकाशतल में ११० ताराओं के नगर हैं" ऐसा कथन है । "चित्रा पृथ्वी से ७१० योजन मात्र बाहल्य में इस सम्बन्ध में निम्नलिखित लेख दृष्टव्य है— एस० डी० शर्मा एवं एस० एस० त्रिश्क, "लेटिट्यूड ऑफ दीमून एज डिटरमिन्ड इन जैन एस्ट्रानामी, श्रमण, भा० २७, क्र०२, १६७५, पृ०२८-३५ । इस लेख में सूर्य की ऊँचाई ८०० योजन तथा चंद्र की ऊँचाई ८८० योजन पर विस्तृत विवेचन कर उस रहस्य का संकेत दिया है जो संभवतः इस गणना का अभिप्रेत था ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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