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________________ ३६० लोक- प्रज्ञप्ति पुखरोदसमुद्द वण्णओ पुक्खरोदसमुदरस संठाणं ७६८. पुक्खरवरणं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वओ समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । - जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १५० - तिर्यक् लोक पुष्करोद समुद्र वर्णन उ०- गोयमा ! संखेज्जाइं जोयणसहस्साई चक्कवाल- विक्खभेणं संखेन्जाई जोयणसयस हस्लाई परिषख वेगं पण्णसे" - जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १८० पुक्खरोदसमुहस्स चत्तारि दारा८०० प० - पुक्खरोदस्स णं भंते ! समुद्दस्स कतिदारा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता । सबस खरोदसमुहस्स विक्संभ-परिक्वेवं पुष्करोदसमुद्र का विष्कम्भ और परिधि ७६६. ० - पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवाल- विक्खं- ७६६. भगवन् ! पुष्करोद समुद्र कितना चौड़ा कहा गया है ? भेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? और उसकी परिधि कितनी कही गई है ? नवरं पुषखरोदसमुद्दपुरस्थिमपेरते वरणवरदीयपुर रियमद्धस्स पच्चत्थिमेण एव पं पुरखरोदस्स विजए नामं दारे पण्णत्ते । एवं सेसाण वि भाणिअव्वोत्ति । - जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १५० एवं सेसाण वि । पदेला जीवाप तहेव । - सूत्र ७६८-८०२ पुष्करोद समुद्र वर्णन__ पुष्करोदसमुद्र का संस्थान ७६८. वृत्त एवं वलयाकार संस्थान में स्थित पुष्करोद नामक समुद्र पुष्करवरद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है। चउण्हदाराणमंतरं चारों द्वारों का अन्तर ८०१. दारंतरंभि संखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे ८०१ द्वारों का अव्यवहित अन्तर संख्यात लाख योजन का कहा पण्णत्ते । गया है । शेष तीनों द्वारों का अन्तर भी इसी प्रकार है । प्रदेशों का परस्पर स्पर्श और जीवों की उत्पत्ति पूर्ववत् है । पुक्खरोदसमुदस्स णामहेउ पुष्करोद समुद्र के नाम का हेतु ८०२. १० सेकेण्डपं मते ! एवं बुवइ "पुक्खरोदे समुद्र ८०२. प्र० भगवन्! पुष्करोद समुद्र को पुष्करोव समुद्र ही , पुक्खरोदे समुद्दे ? क्यों कहा जाता है ? उ०- गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुद्दस्त उदगे अच्छे पत्थे जज्बे त फलिहवा पणती उगरसे।" उ०- गौतम ! वह संख्यात लाख योजन का चक्रकार चोड़ा कहा गया है और संस्थात लाख योजन की ही परिधि कही गई है। पुष्करोवसमुद्र के चार द्वार ८००. प्र० - भगवन् ! पुष्करोद समुद्र के कितने द्वार कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! चार द्वार कहे गये हैं । जम्बूद्वीप के चार द्वारों के समान इन चार द्वारों का सम्पूर्ण वर्णन है। विशेष यह है कि पुष्करोद समुद्र के पूर्वान्त में और बरु बरद्वीप के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्करोद समुद्र का विजय नामक द्वार कहा गया है। इसी प्रकार शेष तीन द्वारों का वर्णन कहना चाहिए। उ०- गौतम! पुष्करोव समुद्र का पानी स्वच्छ है पच्य है, स्वजातीय है, हल्का है, स्फटिक वर्ण वाला है, स्वाभाविक स्वाद वाला है । १ सूरिय. पा. १६ सु० १०१ । २० पुसणं भत! समुहस्स केरिसए मस्सारणं पणसे ? उ०- गोयमा ! अच्छे- जाव - फालियवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते । - जीवा पडि ३, उ. २, सु. १८७.
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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