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________________ सूत्र ७६४-७६७ तिर्यह लोक समयक्षेत्र वर्णन 00 समयलेलं भरहाईणं पवर्ण ७२४. समय पंच भरहाई, पंथ एश्ववाई एवं जहा चट्टा feature से तहा एत्थ वि भाणियध्वं जाव-पंच मंदरा, पंच मंदर चूलियाओ, नवरं उसुधारा नत्थि । समयक्षेत्र में भरतादि का प्ररूपण 7 ७१४. जिस प्रकार ठाणांत चतुर्थस्थान के द्वितीय उद्देशक में (चार भरत, चार ऐरवत - यावत् - चार मन्दर-पर्वत, चार मंदर चूलिकायें) कही हैं उसी प्रकार यहाँ भी समयक्षेत्र में भी - ठाणं ५, ०२, ० ४३४ पाँच भरत, पाँच ऐरवत यावत् पाँच मंदर पर्वत, पाँच मंदरचूलिकायें कहनी चाहिए। विशेष यह है कि इषुकार पर्वत (पाँच) नहीं है। ', तत्थ णं दस महइमहालया महादुमा पण्णत्ता, तं जहा - १. जबसुदंसणा २. धायइरुक्खे, २. महाप्रायस्वचे ४५. महान ६. पंचकूडसालीओ तत्य णं दस देवा महिड्डीया जाय-पलिओयमद्वितिया परिवसंति, तं जहा - १. अणाढिए जंबुद्दीवाहिवई, २. सुदंसणे, ३. पियदसणे, ४. पोंडरीए, ५. महापोंडरीए । ६-१० पंच गावेणुदेवा । मणुस्खेत्ते वो समुद्दा ७६६. अंतोनं मणुस्स खेत्तस्स दो समुद्दा पण्णत्ता, १. लवणे चेव, २. कालोदे चेव । समय कुरा दुमाणं तहा देवानं मिरवणं समयक्षेत्र के कुराओं में वृक्ष और देवों का निरूपण ७६५. समयखे ते णं दस कुराओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पंच देव- ७९५. समयक्षेत्र में दस कुरा कहे गये हैं, यथा- पाँच देवकुरा कुराओ, पंच उत्तरकुराओ । और पाँच उत्तरकुरा । तं जहा - ठाणं १०, सु० ७६४ (६-१०) पांच गरुड वेणुदेव । - ठाणं अ० २, उ० ४, सु० १२२ wwwwww उ०- गोयमा ! माणुसखेत्ते णं तिविधा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा गणितानुयोग १. कम्मभूमगा, २. अकम्मभूमगा, ३. अंतरदीबगा । सेट्टणं गोयमा ! एवं बुच्चति - " माणुसखेते, माणुस।" - जीवा० पडि० ३, उ०२, सु० १७७ ३८६ उनमें दस महाविशाल महावृक्ष कहे गये हैं, यथा - ( १ ) जम्बु सुदर्शन, (२) धातकीवृक्ष (३) महापातकीवृक्ष (४) पद्मवृक्ष, (५) महापद्म ६-१० पाँचकूटशाल्मलीवृक्ष । उन पर दस महधिक - यावत् - पत्योपमस्थिति वाले देव रहते हैं, यथा - ( १ ) अनाधृत- जम्बूद्वीपाधिपति, (२) सुदर्शन, (३) प्रियदर्शन, (४) पौडरिक, (५) महापौहरिक । मनुष्यक्षेत्र में दो समुद्र - ७६६. मनुष्य क्षेत्र के अन्दर दो समुद्र कहे गये हैं, यथा(१) लवणसमुद्र, और (२) कालोदसमुद्र । माणुसवेत्तरस नाम हेउ मनुष्य क्षेत्र के नाम का हेतु ७६७. १० सेकेण णं भंते ! एवं बुच्चति - "माणुसखेत्ते, माणुस ७६७. प्र० - भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र मनुष्यक्षेत्र ही क्यों कहा खेते ?" जाता है ? उ०- गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में तीन प्रकार के मनुष्य रहते हैं, यथा (१) कर्मभूमिज, (२) अकर्मभूमिज, (३) अंतरद्वीपज । गौतम ! इस कारण से मनुष्यक्षेत्र मनुष्यक्षेत्र कहा जाता है ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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