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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : समयक्षेत्र वर्णन
सूत्र ७६०-७६३
समयखेत्तो
समयक्षेत्र
समयखित्त-सरूव निद्देसो
समयक्षेत्र के स्वरूप का निर्देश७६०. ५०-किमिदं भंते ! समयखेत्ते ति पवुच्चइ ? ७६०. प्र०-हे भगवन् ! समयक्षेत्र का स्वरूप क्या है ? उ०-गोयमा ! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं उ०-हे गौतम ! अढाईद्वीप और दो समुद्र यह इतना एवतिए, समयखेत्ते त्ति पवुच्चइ ।
समयक्षेत्र कहा जाता है। -भग० स०२, उ०६, सु०१ समयखेत्तस्स आयामाईणं पमाणं
समयक्षेत्र क आयामादि का प्रमाण७६१. ५०-समयखेत्ते णं भंते ! केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केव- ७६१. हे भगवन् ! समयक्षेत्र की लम्बाई चौड़ाई और परिधि तियं परिक्खेवेणं पण्णते ?
कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयाम- उ०-हे गौतम ! पैंतालीस लाख योजन की लम्बाई चौड़ाई विक्खंभेणं'
कही गई है। एगा जोयणकोडी-जाव-अभितरपुक्ख द्धपरिरओ सो एक करोड़ (बियालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास भाणियब्वो-जाव-अउणपणे ।'
योजन को) आभ्यन्तर पुष्कराध की परिधि कही गई है। यही -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १७७ परिधि समयक्षेत्र की है। समयखेत्ते कुलपव्वया
समयक्षेत्र में कुलपर्वत७६२. समयखेत्ते णं एकूणचत्तालीसं कुलपत्वया पण्णत्ता, तं जहा- ७६२. समयक्षेत्र में एगुनचालीस कुलपर्वत कहे गये हैं, यथातीसं वासहरा, पंच मंदरा चत्तारि उसुकारा ।
तीस वर्षधर पर्वत, पाँच मेरु पर्वत और चार इषुकार पर्वत ।
-सम० ३६, सु०२ समयखेत्ते वासा पव्वया य
समयक्षेत्र में क्षेत्र पर्वतादि का प्ररूपण७६३. समयखेत्ते णं मंदरवज्जा एकूणसरि वासा, वासहरपब्वया, ७६३. समयक्षेत्र में (पाँच) मेरु को छोड़कर एगुनसित्तर वर्ष,
उसुयारपव्वया य पण्णत्ता, तं जहा-पणतीसं वासा, तीसं वर्षधर पर्वत और इषुकार कहे गये हैं, यथा-पैंतीस वर्ष, तीस वासहरा, चत्तारि उसुयारा य पण्णत्ता,
वर्षधरपर्वत और चार इषुकार (पर्वत) कहे गये हैं । -सम० ६६, सु०१
१ सम. ४५ सु. १। २ (क) गाथा-एक्का जोयणकोडी, वातालीसं च सतसहस्साई। तीसं च सहस्साई, दोणि य अउणापण्णजोयणसते ॥
-जीवा. पडि. ३. उ. २ सु. १७७ (ख) समयखेत्ते पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च जोयणसयसहस्साइं तीसं च जोयणसहस्साई दोन्नि य अउणापन्ने जोयणसए किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णते, -भग. स. ११, उ. १०, सुत्तं २७
-भग. स. २, उ. १, सुत्तं २४/३ (ग) सूरिय. पा. १६ सु. १००।
आभ्यन्तर पुष्कराध की परिधि और समयक्षेत्र की परिधि समान है। ___ मनुष्यक्षेत्र और समयक्षेत्र ये दोनों नाम यद्यपि पर्यायवाची हैं किन्तु दोनों की व्याख्या भिन्न भिन्न हैं - (अ) मनुष्यक्षेत्र में कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज मनुष्य रहते हैं । मनुष्यों का जन्म-मरण भी मनुष्यक्षेत्र में ही होता
है । बाहर नहीं इसलिए यह मनुष्यक्षेत्र कहा जाता है। (ब) समयक्षेत्र में ही घड़ी, मुहर्त, दिन-रात आदि सभी समय विभागों का सर्वदा व्यवहार होता है अन्यत्र नहीं । वह पैतालीस
लाख योजन का लम्बा चौड़ा है। ठाणं, समवायंग, भगवती आदि आगमों में मनुष्यक्षेत्र एवं सम पक्षेत्र-इन दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है।