________________
सत्र ७८२-७८४
तिर्यक् लोक अपवर्तन
२. जंबुद्दी मंदरसपरस उत्तर दाहिनेणं महाहिमवंत पीवासहरपयए दो महापा बहुसमतुल्ला - जाव तं जहा
१. महाप मद्दहे चेव, २. महापोंडरीयद्दहे चेब, सत्य णं दो देवयाओ महिया-जाय महासोक्खाओ पतिओमइयाओ परिवति तं जहा १. हिरि वेब २. बुद्धि व
३. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं निसह-नीलवंते वासहरपत्वए दो महदहा पष्णता
बहुसमतुल्ला - जाव-तं जहा
१. तिगछि चेव, २. केसरिद्दहे चेव ।
तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ - जाव महासोक्खाओ पलिओयमयाओ परिवति तं जहा १. घिती चैव २. कित्ती चेव । - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं०८८ ७८३. धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे य,
o
१. दो पउमद्दहा, बो पउमद्दहवासिणीओ सिरीदेवीओ । २. दो महामा से महापमवासिणीओ हिरीओ देवीओ ।
३. दो तिमि दो तिगिटिहवासिनीओपिओ देवीओ |
४. दो केसरिहा, दो केसरिद्दहवासिणीओ कित्तीओ देवीओ । ५. दो महायोंडरीया, दो महापौरीबहावासिनीओ बुद्धीओ देवीओ ।
६. दो पोंडरीयद्दहा, दो पोंडरीयद्दहवासिणोओ लच्छीओ देवीओ | - ठाणं अ० २, उ० ३, सुतं १०० एवं पुक्खरवर दीवड्ढपुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि ।
-
- ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं १०३ अड्डाइज्जेसु दीवेसु तुला पायद्दहा७८४. १. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं भरहे वासे दो पायद्दहा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला । अविसेसमणाणत्ता, अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम-विवखंभ उव्वेह संठाण- परिणाहेणं, तं जहा १. गाय २. सिपुष्पवायचेव ।
२. वे दो मंदररसपव्ययस्स दाहिणं हेमवए वासे दो पायद्दहा पण्णत्ता । बहुसमतुल्ला - जाव-तं जहा- -१. रोपवायचे २. रोहिसवाय चैव।
,
३. जंबूद्दीने दी मंदरस्स पञ्चस्स वाहिणं हरिवासे दो पवायद्दहा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला - जाव तं जहा - १. हरिप्पबाय २. हरि
गणितानुयोग
३८५
जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं ।
वे ( दोनों महाद्रह ) सर्वथा सदृश हैं - यावत्-यथा(१) महापद्मद्रह, (२) महापौंडरीकड
उन ग्रहों पर महधिक - यावत् - महासुखी पल्योपम की स्थिति बाली दो देवियां रहती हैं, यथा- (१) ह्रीदेवी, (२) बुद्धिदेवी।
जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं ।
वे ( दोनों महाद्रह ) सर्वथा सदृश हैं - यावत् यथा(१) तिच्छिद्रह, (२) केसरी द्रह |
उन ग्रहों पर महधिक यावत् — महासुखी पत्योपम की स्थिति वाली दो देवियां रहती है, यथा- (१) धूति देवी, (२) कीर्ति देवी ।
७८३. धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध, पश्चिमार्ध में
(१) दो पद्मद्रह दो पद्मद्रहवासिनी श्रीदेवियाँ हैं। (२) दो महापद्मद्रह, दो महापद्मद्रहवासिनी ह्रीदेवियाँ हैं ।
(३) दो तिछिद्र दो तिछिद्रवासिनी घुति देवियाँ हैं।
(४) दो केसरीद्रह, दो केसरीद्रहवासिनी कीर्तिदेवियाँ हैं । (५) दो महापौंडरीकद्रह दो महापौहरीकद्रवासिनी वृद्धि देवियों हैं।
(६) दो पौंडरीकद्रह, दो पौंडरीकद्रहवासिनी लक्ष्मी देवियाँ ।
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपा के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी महाद्रह हैं।
अढाई द्वीप में तुल्य प्रपात ग्रह
७८४. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में भरत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं जो सर्वथा समान है, न उनमें किसी प्रकार की कोई विशेषता है और न उनमें नानापन है, लम्बाई चौड़ाई, गहराई, आकार और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते है, यथा-(१) गंगा (२) ।
जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में हेमवत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह कहे गये हैं, जो सर्वथा समान हैं- यावत्-यथा(१) रोहित प्रपातग्रह, (२) रोहितांस प्रपातद्रह् ।
जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में हरिक्षेत्र मे 41 प्रपातद्रह कहे गये हैं, जो सर्वथा समान हैं- यावत्-यथा(१) हरिप्रपातद्रह, (२) हरिकान्तप्रपातद्रह |