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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : अढाईद्वीप वर्णन
सूत्र ७८०-७८२
बहुसमतुल्ला-जाव-तौं जहा–१. महाहिमवंतकूडे चैव, वे (दोनों कूट) सर्वथा सदृश हैं-यावत्-यथा-(१) महा२. वेरुलिएकूडे चेव ।
हिमवन्त कूट, (२) गैडूर्य कूट । ३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं निसढे जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में महाहिमवन्त वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता,
___ वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-तौं जहा-१. निसधकूडे चव, २. वे (दोनों कूट) सर्वथा सदृश हैं-यावत् –यथा-(१) रुयगकडे चेव ।
निषधकूट, (२) रूचककूट । ४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरेणं नीलवंते जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर में नीलवन्त वर्षधर वासहरपव्वए दो कूडा पण्णता,
पर्वत दो कूट कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला-जाब-तौं जहा–१. नीलवंतकूडे चैव, २. वे (दोनों कूट) सर्वथा सदृश हैं—यावत्-यथा-नीलवन्त उवदसणकूडे चेव ।
कूट, (२) उपदर्शन कूट । ५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं रुप्पिमि जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर में रुक्मि वर्षधर वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता,
पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला-जाव-त जहा-१. रुप्पिकूडे चेव, २. मणि- वे (दोनों कूट) सर्वथा सदृश हैं-यावत्-यथा-(१) रुक्मिकंचणकूडे चेव ।
कूट, (२) मणिकंचनकूट । ६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिम्मि जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर में शिखरी वर्षधर वासहरपब्वए दो कूडा पण्णत्ता,
__ पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं । बहुसमतुल्ला-जाव-तं जहा–१. सिहरीकूडे चेव, २. वे (दोनों कूट) सर्वथा सदृश हैं-यावत्-यथा-(१) तिगिछिकूडे चेव। -ठाणं २, उ० ३, सुत्तं ८७ शिखरीकूट, (२) तिकित्सकूट ।
एवं धायइसंडे दीने पुरथिमद्ध पच्चत्थिमद्ध वि- इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में७८१. दो चुल्ल हिमवन्त कूडा दो वेसमण कूडा
७८१.दो क्षुद्र हिमवन्तकूट, दो वैश्रमणकूट, दो महाहिमवन्त कूडा दो वेरूलिय कूडा
दो महाहिमवन्तकूट, दो वैडूर्यकूट, दो निसध कूडा दो ख्यग कूडा
दो निषधकूट, दो रुचककूट, दो नीलवंत कूडा दो उवदंसण कूडा
दो नीलवन्तकूट, दो उपदर्शनकूट हैं । -ठाणं अ० २, उ० ३, सु० १०० एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि, इसी प्रकार पुष्करबरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध और पश्चिमा में भी
-ठाणं अ० २, उ० ३, सु० १०३ कूट हैं। अड्ढाइज्जेसु दीनेसु तुल्ला महद्दहा
अढाई द्वीप में तुल्य महाद्रह७८२. १. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं चुल्ल- ७८२. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में क्षुद्र हिमवंत-सिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पण्णत्ता, हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला, अविसेसमणाणत्ता,
___ वे (दोनों महाद्रह) सर्वथा सदृश हैं, उनमें न किसी प्रकार
की विशेषता है और न नानापन है । अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम-विक्खंभ-उब्वेह-संठाण- वे लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, संस्थान और परिधि से एक दूसरे परिणाहेणं, त जहा-१. पउमद्दहे चेव, २. पुण्डरीयद्दहे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) पद्मद्रह, (२) पुण्ड
रोकद्रह । तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ-जाव-महासोक्खाओ उन द्रहों पर महधिक-यावत्-महासुखी पल्योपम की पलिओवमट्टिइयाओ परिवसंति, त जहा-१. सिरि चेव, स्थिति वाली दो देवियाँ रहती हैं, यथा-(१) श्रीदेवी, (२) २. लच्छी चेव ।
लक्ष्मीदेवी।
चेव ।