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सूत्र ७७८ ७८०
बसमतुल्ला अविसेसमणाणला
अम नायट्टति आयाम-विलोलो-ठाणपरिमाणं तं जहा
१. बारह व दीवे २. एराए
तिर्यक लोक : अढाईद्वीप वर्णन
दी।
- ठाणं० २, उ० ३, सुत्तं ८६
एवं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध े, पच्चत्थिमद्ध े, वि -- ठाणं अ० २, उ० ३ सुत्तं ६६
एवं पुक्खवरदीवड्ढ पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि । - ठाणं अ० २, उ. ३, सुत्तं १०३ अड्ढाइज्जेसु दीगेसु तुल्लाओ गुहाओ७७. भारए दी दो गुहाओ पाओ,
णं
बसमतुलाओ, अविसेसमानताओ
अष्णमणं नाइवदृग्ति आयाम-विवखंत संठाणपरिणाहेणं, त जहा - १. तिमिसगुहा चेव, २. खंडप्पवाय गुहा चेव ।
तस्य णं दो देवा महिडिया जावयलिओ वमहिया परिवसंति, तं जहा - १. कयमालए चेव, २. णट्टमालए चैव । एवं एरवए वि दीहवेयड्ढे दो गुहाओ,
- ठाणं अ० २ उ० ३, सुत्तं ८६ एवं धायसंडे दीवे पुरस्थिमद्ध े, पच्चत्थिमो वि, -- ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं ६६ एवं पुखरवरदीपुरस्थिमदं पञ्चत्थिमव - ठाणं अ० २, उ० ३, सु० १०३
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अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति
आयाम-विवखंभुच्चत्त-संठाणपरिमाणं तं जहा - १. हिचे २. सम कुठे जेव
गणितानुयोग
२. जंवेदी मंदरस्स व्वयस्स वाहिणे महाहिमवते खासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता,
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वे ( दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं, न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है।
वे लम्बाई, चौड़ाई; ऊँचाई, गहराई, संस्थान और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा
(१) (दक्षिण में) भरतक्षेत्र में दीर्घताय पर्वत । (२) (उत्तर में ऐरवत क्षेत्र में दीर्घवेतादय पर्वत ।
इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध एवं पश्चिमार्ध में भी दीर्घवेताढ्य पर्वत हैं ।
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपा के पूर्वार्ध-पश्चिम में भी दीर्घवैताढ्य पर्वत हैं । अढाई द्वीप में तुल्य गुफाएँ
७७. भरतक्षेत्र के ताप पर दो गुफाएँ कही गई है।
वे ( दोनों गुफाएँ) सर्वथा सदृश हैं । न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है।
वे सम्बाई चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करती है, यथा - ( १ ) तमिस्र गुफा, ( २ ) खण्डप्रपात गुफा |
इसी प्रकार ऐश्वत क्षेत्र के दीर्घवंताय पर्वत पर ये गुफायें हैं ।
इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध-पश्चिमार्थ में भी है।
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध - पश्चिमार्ध में भी हैं ।
अड्ढाइज्जेसु दीवेसु तुल्ला कूडा
अढाई द्वीप में तुल्य कूट
७८०.१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंते ७८० जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में क्षुद्र हिमवन्त वासहरपब्वए दो कूडा पण्णत्ता ।
वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं ।
बहुमतुला अयिसेसमणागला,
उनमें महधिक - यावत् - पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं यथा - (१) कृतमालदेव, (२) नृत्यमालकदेव ।
ये दोनों कूट) सर्वधा हैं, उनमें न किसी प्रकार की विशेषता है, और न नानापन है ।
वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, संस्थान और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते है यथा- (१) मन्त कूट (२) वैभ्रमण कूट ।
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जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गये हैं ।