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________________ ३८२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : अढाईद्वीप वर्णन सूत्र ७७५-७७८ देवा, दो मालवंतपरियागा, दो मालवंतपरियागवासी पउमा- दो माल्यवन्तपर्याय पर्वत हैं, दो माल्यवन्तपर्याय पर्वतवासी -ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं १०० दो पद्मदेव हैं। एवं पुक्खरवरदीवड्ढे, पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपा के पूर्वार्ध और पश्चिमार्च में -ठाणं० अ० २, उ० ३, सुत्तं १०३ भी वृत्तवैतादय पर्वत हैं । अड्ढाइज्जेसु दीवेसु तुल्ला वक्खारपव्वया- अढाईद्वीप में तुल्य वक्षस्कार पर्वत७७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं देवकुराए कुराए ७७६. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण में देवकुरा कुरा के पुष्वावरे पासे एत्थ णं आसखंधगसरिसा अद्धचंदसंठाणसंठिया पूर्व-पश्चिम पार्श्व में अश्वस्कन्ध के सदृश अर्धचन्द्र के आकार से दो वक्खारपव्वया पण्णता, स्थित दो वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला, अविसेसमणाणत्ता, वे (दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है। अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति आयाम-विक्खंभोच्चत्तोम्बेह-संठाण- बे लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, संस्थान और परिधि से परिणाहेणं, तं जहा एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं यथा१. सोमणसे चेव, २. विज्जुप्पभे चेव, (१) सौमनस, (२) विद्युत्प्रभ । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर में । उत्तरकुराए कुराए पुव्वावरे पासे, एत्थ णं आसखंधग- उत्तरकुरा कुरा के पूर्व-पश्चिम पार्श्व में अश्वस्कन्ध के सदृश. सरिसा अद्धचंबसंठाणसंठिया दो वक्खारपब्वया पण्णत्ता, अर्धचन्द्र के आकार से स्थित दो वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। . बहुसमतुल्ला-जाव-तं जहा वे (दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं-यावत्-यथा१. गंधमायणे वेव, २. मालवते चेव । (१) गंधमादन पर्वत, (२) मालवन्त पर्वत । -ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं ८५ धायईसंडे दीवे पुरथिमद्ध धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में७७७. दो मालवंता, दो चित्तकूडा, ७७७. दो माल्यवन्त पर्वत, दो चित्रकूट पर्वत दो पम्हकूडा, दो नलिनकूडा, दो पक्ष्मकूट पर्वत, दो नलिनकूट पर्वत दो एगसेला, दो तिकूडा, दो एकशैल पर्वत, दो त्रिकूट पर्वत दो वेसमणकूडा, दो अंजणा, दो वैश्रमणकूट पर्वत, दो अंजन पर्वत दो मातंजणा, दो सोमणसा, दो मातंजन पर्वत, दो सौमनस पर्वत दो विज्जुष्पभा, दो अंकावती, दो विद्युत्प्रभ पर्वत, दो अंकावती पर्वत दो पम्हावती, दो आसीविसा, दो पक्ष्मावती पर्वत, दो आशीविष पर्वत दो सुहावहा, दो चंदपव्वया, दो सुखावह पर्वत, दो चन्द्र पर्वत दो सूरपव्वया, दो णागपन्वया, दो सूर्य पर्वत, दो नाग पर्वत दो देवपव्वया, दो गंधमायणा, दो देव पर्वत, दो गंधमादन पर्वत दो उसुगारपव्वया, दो इषुकार पर्वत । एवं पच्चत्थिमद्ध वि। इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में भी वक्षस्कार -ठाणं अ० २, उ० ३, सु० १०० पर्वत एवं इषुकार पर्वत हैं। एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरथिमद्ध, पच्चत्थिमद्ध वि। इसी इकार पुष्करवरद्वीपाधं के पूर्वार्ध में तथा पश्चिमार्ध में -ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं १०३ भी हैं। अड्ढाइज्जेसु दीनेस तुल्ला दोहोयड्ढा अढाईद्वीप में तुल्य दीर्घ वैताढ्य पर्वत७७८, जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणणं दो दोह- ७७८. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में दो दीर्घवेयड्ढा पण्णत्ता, वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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