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________________ सूत्र ७७३-७७५ ३. दो निसढा, ४. दो नीलवंता, ५. दो रुप्पी, ६. दो सिहरी, - ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं १०० एवं पुक्खरवरदी वड्ढे - पुरस्थिम पच्चत्थिम वि दो चुल्ल हिमगंता जाव -दो सिहरी । - ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं १०३ अड्ढा इज्जेसु दीवेसु तुल्ला वट्टवेयड्ढपव्वया ७७४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं हेमवय हेरवा बासे को वेपया पणा, बहसमतुल्ला, अविसेसमणाणत्ता, तिर्यक् लोक अढाईद्वीप वर्णन अण्णमध्य नावन्ति, आयाम-विमोच्यो-ठाण परिणाहेणं, तं जहा १. सद्दावई चेव, २. वियडावई चैव, तत्थ णं दो देवा महिड्डिया - जाव- पलिओवमट्टिइया परिवसंति, तं जहा १. साती चेव, २. पभासे चैव । जंबुवेदीचे मंदर पन्चयस्स उत्तर दाहिणेणं हरिवासरम्मएस वाले दो बहुवे पा बहुसमतुल्ला - जाव तं जहा १. गंधावती चैव, २. मालवंतपरियाए चेव । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया - जाव - पलिओवमट्टिइया परिवसंत तं जहा १. अरुण चेव, २. पउमे चेव, धाडे दीवे पुरत्थिमद्ध पच्चत्थिमद्ध े वि-७७५. दो सद्दावई, दो सद्दावईवासी साई देवा, दो पिडा दो वासी माता देवा, दो गंधावई, दो गंधावईवासी अरुणा देवा गणितानुयोग (३) (दक्षिण में दो निषध पर्वत हैं। (४) (उत्तर में ) दो नीलवन्त पर्वत हैं । (५) (दक्षिण में दो रूक्मि पर्वत हैं । (६) (उत्तर में दो शिखरी पर्वत हैं। ३८१ इसी प्रकार पुष्करवरडीपार्थ के पूर्वाध में और पश्चिमार्थ में भी दो क्षुद्रहिमवान् यावत्-दो शिखरी वर्षधर पर्वत है । अडाद्वीप में तुल्य वृत्तवैताय पर्वत - ७७४. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में हेमवतहैरण्यवत् क्षेत्रों में दो वृत्त वैताढ्यपर्वत कहे गये हैं । वे ( दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं, उनमें न किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है। ये लम्बाई चौड़ाई ऊंचाई गहराई संस्थान और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा (दक्षिण में हैमवतक्षेत्र में शब्दापाति (वृत्तवताइय पर्वत) है। ( उत्तर में हैमवत क्षेत्र में ) विकटापाति ( वृत्तवैताद्य पर्वत ) हैं । उन पर महधिक - यावत् — पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथा - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं ८४ पद्मदेव | (शब्दापाती पर्वत पर ) स्वातिदेव (विकटापाती पर्वत पर ) प्रभास देव । जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में हरिवर्षरम्यवर्ष में दो वृत्तता पर्वत कहे गये हैं। वे ( दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं - यावत्-यथा(दक्षिण में हरिक्षेत्र में गंधापासी (वृत्तपत ( उत्तर में रम्यकूक्षेत्र में ) माल्यवन्तपर्याय ( वृत्तवेताढ्य पर्वत ) है । उन पर महधिक — यावत् - पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथा (गंधापाती पर्वत पर ) अरुणदेव, ( माल्यवन्तपर्याय पर्वत पर ) धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध) में - ७७५. दो शब्दापाती पर्वत हैं, दो शब्दापाती पर्वतवासी दो स्वाती देव हैं । दो विकटापाती पर्वत हैं, दो विकटापाती पर्वतवासी दो प्रभास देव हैं । दो गंधापाती पर्वत हैं दो गंधापाती पर्वतवासी दो अरुण देव हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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