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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : अढाईद्वीप वर्णन
सूत्र ७७२-७७३
अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण- लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, आकार और परिधि से वे परिणाहेणं, तं जहा–१. कूडसामली चेव, २. जंबू चैव एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(१) कूटशाल्मली, सुदंसणा,
(२) जम्बू-सुदर्शना । तत्थ णं दो देवा महिड्ढिया, महज्जुइया, महाणुभागा, वहाँ पल्योपम की स्थिति वाले, महाऋद्धि वाले, महाद्युति महायसा, महाबला, महासोक्खा, पलिओवमद्वितीया परि- वाले, महासामर्थ्य वाले, महायश वाले, महाबल वाले, महासुख वसंति, तं जहा
भोगने वाले दो देव रहते हैं यथा१. गरुले चव वेणुदेवे,२. अणाढिए चैव जंबुद्दीवाहिवइ, (१) गरुडवेणुदेव, (२) जम्बूद्वीपाधिपति अनाधृत देव ।
-ठाणं अ०२, उ० ३, सुत्तं ८२ एवं धाय इसंडे दीवे पुरथिमद्ध,
इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में हैणवरं-दुमा १. कूडसामली चेव, २. धाय इरुक्खे चेव, विशेष-वृक्ष (१) कूटशाल्मली वृक्ष, (२) धातको वृक्ष । देवा, १. गरुले चेव वेणुदेवे, २. सुदंसणे चेव ।
देव (१) गरुड वेणुदेव, (२) सुदर्शन देव । एवं धाय इसंडे दीवे पच्चत्थिमद्ध,
इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में हैणवरं-दुमा, १. कूडसामली चेव, २. महाधाय इरुक्खे, विशेष-वृक्ष (१) कूटशाल्मलीवृक्ष (२) महाधातकीवृक्ष । देवा, १. गरुले चेव वेणुदेवे, २. पियदंसणे चेव ।
देव (१) गरुडवेणुदेव, (२) प्रियदर्शनदेव । -ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं० ६६ एवं पुक्खरवरदीवड्ड पुरथिमी,
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपा के पूर्वार्ध में हैणवरं-महददुमा, १. कूडसामली चेव, २. पउमरुक्खे चेव, विशेष-वृक्ष (१) कूटशाल्मली वृक्ष, (२) पद्मवृक्ष । देवा-१. गरुले चेव वेणुदेवे, २. पउमे चेव,
देव (१) गरुडवेणुदेव, (२) पद्मदेव । __ एवं पुक्खरवरदीवड्ढ पच्चत्थिमद्ध,
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्क में हैणवर-महद्दुमा, १. कूडसामली चेव, २. महापउमरुक्खे चेव, विशेष-वृक्ष (१) कूटशाल्मलीवृक्ष (२) महापद्मवृक्ष । देवा-१. गरुले चेव वेणुदेवे, २. पुण्डरीए चेव,
देव (१) गरुडवेणुदेव, (२) पुण्डरीकदेव । -ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं १०३ अड्ढाइज्जेसु दीवेसु तुल्ला वासहरपव्वया
अढाईद्वीप में तुल्य वर्षधर पर्वत७७३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं दो वासहर- ७७३. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में दो वर्षपव्वया पण्णत्ता,
धर पर्वत कहे गये हैं। बहुसमतुल्ला, अविमेसमणाणता,
__ वे (दोनों पर्वत) सर्वथा सदृश हैं, न उनमें किसी प्रकार की
विशेषता है और न नानापन है। अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम-विक्खंभुच्चत्तोन्वेह-संठाण- वे लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, संस्थान और परिधि से परिणाहेणं, तं जहा-१. चुल्लहिमवंते चेव, २. सिहरी चेव, एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-(दक्षिण में) क्षुद्र
हिमवन्त पर्वत (२) (उत्तर में) शिखरी पर्वत । एवं १. महाहिमवते चेव, २. रुप्पि चेव,
(दक्षिण में) महाहिमवान् पर्वत (उत्तर में) रुक्मिपर्वत । एवं १. निसढे चेव, २. नीलबंते चेव' ।
(दक्षिण में) निषधपर्वत, (उत्तर में) नीलवंत पर्वत । ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं ८३ एवं धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि, धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में वर्षधर
पर्वत हैं। १. दो चुल्लहिमगता,
(१) (दक्षिण में) दो क्षुद्र हिमवन्त पर्वत हैं । २. दो महाहिमनंता,
(२) (उत्तर में) दो महाहिमवन्त पर्वत हैं ।
स्था० अ० ७, सूत्र ५५५ में जम्बूद्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं किन्तु यहाँ समान प्रमाण की विवक्षा होने के कारण मंदरपर्वत को छोड़कर छ: वर्षधर पर्वत कहे गये हैं।