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________________ सूत्र ७७०-७७३ बहुसमतुल्ला, अबिसेसमणाणत्ता, अण्णमण्णं नाइवट्टन्ति आयाम-विषखंभ-संठाण परिणाहेणं तं जहा - १. भरहे चेव, २. एरवए चैव । एवमेषमभिसा १. ए १. हरिवासे चे २. 3 एव २ रम्मएवासे व खेत्ता पण्णत्ता, तिर्यक् लोक : अढाईद्वीप वर्णन - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं ८० २. एवं धाय पुरथिमी, पन्चमि वि - ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं ६६ ३. एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्ध े, पच्चत्थिमद्ध े वि - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं १०३ इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्थ में भी दो दो तुल्य क्षेत्र हैं । इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्थ के पूर्वार्ध और पश्चिमार्थ में भी दो दो तुल्य क्षेत्र हैं । अढाई द्वीप में तुल्य क्षेत्र अढाइ दीवेतुल्ला देता७७१.१.[वेदी मंदरस्स पण्ययस्स पुरत्यिमपत्विमे दो ७०१ जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से पूर्व पश्चिम में दो क्षेत्र कहे गये हैं । वे ( दोनों क्षेत्र ) सर्वथा सदृश हैं, न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है । बहुसमतुल्ला, अविसेससमणाणसा, अगमणं नाइवन्ति, आयाम-विच-संधान परिमाणं पणता जा १.२. अवरविदेहे चेब, तं 1 - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं ८१ २. एवं धामपुरथिमढ, पन्चत्यिमई वि — ठाणं अ० २, उ० ३, सुत्तं ६६ ३. एवं पुरवरदीपुरस्थिम पच्यत्थिम वि , ― - ठाणं अ० २, उ०३, सुत्तं १०३ गणितानुयोग ३७६ अणमण्णं नाइवट्टन्ति, आयाम विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा - १. देवकुरा चैव २. उत्तरकुर चेव । वे ( दोनों क्षेत्र) सर्वथा सदृश हैं, न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है । तत्थ णं दो महइमहालया महादुमा पण्णत्ता, बहुसमतुल्ला, अविसेसमणाणत्ता, वे लम्बाई, चौड़ाई, संस्थान और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं । यथा - ( १ ) भरत, ( २ ) ऐरवत । इसी प्रकार ऐसे ही अभिलाप से (१) (दक्षिण में हेम (२) (उत्तर में) हेरभ्यवत । (१) (दक्षिण में हरिववं, (२) (उत्तर में ) रम्यवर्ष क्षेत्र तुल्य हैं। वे लम्बाई, चौड़ाई, आकार और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं, यथा-१. पूर्वविदेह, (२) पश्चिम विदेह | इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी तुल्य क्षेत्र हैं । अटाइज्जे दीवेसु तुल्ला कुरा ७७२. १. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो ७७२ जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से उत्तर-दक्षिण में दो कुरा कहे कुराओ पण्णत्ताओ, गये हैं । बहुसमतुल्लाओ, अविसेसमणाणताओ, इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वाचं और पश्चिमार्थ में भी क्षेत्र है । तुल्य अढाई द्वीप में तुल्य कुरा वे ( दोनों क्षेत्र) सर्वथा सदृश हैं, न उनमें किसी प्रकार की विशेषता है और न नानापन है । लम्बाई, चौड़ाई, आकार और परिधि से एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं । यथा - ( दक्षिण में ) देवकुरा, (२) (उत्तर में) उत्तरकुरा । वहाँ दो अतिविशाल महावृक्ष कहे गये हैं जो सर्वथा समान है, उनमें किसी प्रकार की कोई विशेषता नहीं है और न नानापन है । १ (क) स्था० अ० ७, सु० ५५५ में जम्बूद्वीप में सात वर्ष कहे गये हैं किन्तु यहाँ समान प्रमाण की विवक्षा होने के कारण छ वर्ष कहे गये हैं। (ख) ठाणं० अ० ३ उ० ४, सुत्तं १६६ (ग) ठाणं अ० ६, सुत्तं ५२२ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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