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________________ सूत्र ७६१-७६७ तिर्यक् लोक : पुष्करवरद्वीप वर्णन गणितानुयोग ३७७ पुक्खरवरदीवड्ढे वक्खारपब्वया-- पुष्करवरद्वीपार्ध में वक्षस्कार पर्वत७६१. पुक्खरवरदीवड्ढ पुरच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थि- ७६१. पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में मन्दर पर्वत से पूर्व में शीता मेणं सीयाए महाणईए उभओ कूले दस वक्खारपब्वया पण्णत्ता, महानदी के दोनों किनारों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, तं जहा-मालवंते-जाव-सोमणसे । यथा-मालवंत पर्वत-यावत्-सौमनस पर्वत । पुक्खरवरदीवड्ढ पुरच्छिमद्धे णं मंदरस्स पध्वयस्स पच्च- पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में मन्दर पर्वत से पश्चिम में त्थिमेणं सीतोदाए महाणईए उभओ कूले दस वक्खारपब्वया शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे पण्णत्ता, तं जहा--विजुप्पभे-जाव-गंधमावणे, गये हैं, यथा-विद्युत्प्रभ पर्वत-यावत्-गंधमादन पर्वत । एवं पुक्खरवरदीवड्ढ पच्चत्थिमद्ध वि । इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी वक्षस्कार -ठाणं १०, सु० ७६८ पर्वत हैं। पुक्खरवरदीवड्ढे मंदरपव्वया पुष्करवरद्वीपार्ध में मन्दर पर्वत७६२. पुक्खरवरदीवड्ढे गं दो मंदरा पव्वया पण्णत्ता, ७६२. पुष्करवरद्वीपार्ध में दो मन्दर पर्वत कहे गये हैं। -ठाणं २, उ० ३, सु०६२ ७६३. पूक्खरवरदीवड्ढगाणं मंदरा दसजोयणसयाई उव्वेहेणं ७६३. पुष्करवरद्वीपार्ध के मन्दर एक हजार योजन भूमि में गहरे . -जाव-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । हैं-यावत्-दस योजन चौड़े कहे गये हैं। -ठाणं १०, सु० ७२१ ७६४. पुक्खरवरदीवड्ढेणं दो मंदरचूलिया पण्णत्ता, ७६४. पुष्करवरद्वीपार्ध में दो मंदरचूलिकायें कही गई हैं। -ठाणं २, उ० ३, सु० ६२ पुक्खरवरदीवड्ढ उसुयारपब्वया पुष्करवरद्वीपार्ध में इषुकार पर्वत७६५. पुक्खरवरदीवड्ढे दो उसुयारपव्वया पण्णत्ता । ७६५. पुष्करवरद्वीपार्ध में दो इषुकार पर्वत कहे गये हैं। -ठाणं २, उ० ३, सु० ६३ पुक्खरवरदीवड्ढे चक्कवट्टि विजया रायहाणीओय- पुष्करवरद्वीपार्ध में चक्रवति विजय और उनकी राज धानियाँ७६६. पुक्खरवरदीवड्ढे णं अट्ठट्टि विजया अट्ठसट्टि रायहाणीओ ७६६. पुष्करवरद्वीपार्ध में अड़सठ (६८) चक्रवति विजय हैं और पण्णत्ताओ। -सम० ६८, सु०२ उनकी अड़सठ (६८) राजधानियाँ कही गई हैं। पुक्खरवरदीवड्ढे चउत्तर दुसया तित्था पुष्करवरद्वीपार्ध में दो सौ चार तीर्थ७६७. एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरथिमद्धे वि, पच्चत्थिमद्धे वि। ७६७. इस प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में भी और पश्चिमार्ध -ठाणं अ० ३, उ० १, सु० १४२ में भी तीर्थ हैं । ....एवं धायइसंडपूरस्थिम वि वक्खारा भाणियव्वा-जाव-पुक्खरवरदीवड्ढपचत्थिमद्ध -ठाण १०, सु० ७६८ में संक्षिप्त पाठ है, ऊपर विस्तृत पाठ दिया है। एवं-जाव-पुक्खरवरदीवड्ढपचत्थिमद्ध-जाव-मंदरचलियत्ति । -ठाण, ४, उ०२, सु० २६६ जहा जबुद्दीवे तहा-जाव-पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्ध बक्खारा बक्खार पब्बयाणं उच्चत्तं भाणियब्वं ।। -ठाणं ५, उ० २, सु० ४३४ इन दो संक्षिप्त सूत्रों के आधार से तथा स्थानांग ८ सूत्र ६३७ के आधार से वक्षस्कार पर्वतों की गणना समझना चाहिए । १ पूरा पाठ धातकीखण्ड के मन्दरपर्वतों के वर्णन में देखें। २ मन्दरचूलिकाओं के मध्य का विष्कम्भ और ऊपर का विष्कम्भ धातकीखण्ड की मन्दर चूलिकाओं के समान है। ३ धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध-पश्चिमाधं के समान पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध में भी २०४ तीर्थ हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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