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________________ ३७६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : पुष्करवरद्वीप वर्णन सूत्र ७५६-७६० उ०-गोयमा ! अट्ठ जोयणसहस्साई चक्कवालविश्खंभेण' उ-गौतम ! आठ लाख योजन की चक्राकार चौड़ाई पण्णत्ते। ____ कही गई है। गाहा-एक्काजोयणकोडी, पातालीसं च सतसहस्साई च। गाथार्थ-एक करोड़, पेतालीस लाख तीस हजार दो सौ तीसं च सहस्साई, दोणि य अउणापण्णे जोयणसते ॥ उनपचास (१,४५,३०,२४६) योजन से कुछ अधिक की परिधि किंचिबिसेसाहिया परिक्खेवेणं पण्णते। कही गई है। पुक्खरवरदीवड्ढे कम्मभूमीओ पुष्करवरद्वीपार्ध में कर्मभूमियाँ७५७. पुक्खरवरदीवड्ढ पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे य तओ तओ ७५७. पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वाद्ध और पश्चिमार्ध में तीन तीन कम्मभूमीओ पप्णत्ताओ; तं जहा कर्मभूमियाँ कही गई है, यथा१. भरहे, २. एरवए, ३. महाविदेहे । (१) भरत, (२) ऐरवत, (३) महाविदेह । -ठाणं अ० ३, उ० ३, सु० १८६ पुक्खरवरदीवड्ढे अकम्मभूमीओ पुष्करवरद्वीपार्ध में अकर्मभूमियाँ७५८. पुक्खरवरदीवड्ढ पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे य छ छ अकम्म- ७५८. पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में छः छः भूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा अकर्मभुमियाँ कही गई हैं, यथा१. हेमवए, २. हेरण्णवए, ३. हरिवस्से, ४. रम्मगवस्से, (१) हैमवत, (२) हैरण्यवत, (३) हरिवर्ष, (४) रम्यक्वर्ष, ५. देवकुरा, ६. उत्तरकुरा। -ठाणं अ० ६, सु० ५२२ (५) देवकुरा, (६) उत्तरकुरा । पुक्खरवरदीवड्ढे वासहरपव्वया पुष्करवरद्वीपार्ध में वर्षधर पर्वत७५६. पुक्खरवरदीवड्ढ पुरच्छिमद्धेणं सत्तवासहरपव्वया पण्णत्ता, ७५६. पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में सात वर्षधर पर्वत कहे गये . तं जहा-चुल्लहिमवंते-जाव-मंदरे। हैं, यथा-क्षुद्रहिमवंत पर्वत-यावत्-मन्दर पर्वत। एवं पच्चत्थिमद्ध वि, -ठाणं ७, सु० ५५५ इसी प्रकार पश्चिमाई में भी हैं। ७६०. पुक्खरवरदीवड्ढपुरच्छिमद्धे गं छ वासहरपब्वया पण्णत्ता, ७६०. पुष्करवरद्वीपार्ध में छ वर्षधर पर्वत कहे गये हैं, यथा-- तं जहा-चुल्लहिमवंते जाव-सिहरी। क्षुद्रहिमवंत पर्वत--यावत्-शिखरी पर्वन । एवं पच्छद्धिमद्धे वि', -ठाणं ६, सु० ५२२ इसी प्रकार पश्चिमार्च में भी हैं। १ (क) अब्भंतर पुक्खरद्धणं अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते । एवं बाहिरपुक्खरद्ध वि । -ठाणं ८, स० ६३२ (ख) सुरिय० पा० १६ सु० १००। २ कोडी बायालीसा, तीसं दोण्णि य सया अगुणवण्णा । पुक्वरअद्ध परिरओ, एवं च मणुसखेत्तस्स ॥ -जीवा. पडि. ३ उ०२ सु०१७६ ३ पूक्ख रबर दीवड्ढपुरथिमद्ध मदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा (१) हेमवए, (२) हरिवासे, (३) देवकुरा । पुक्खरवरदीवड्ढपुरस्थिमद्धे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तओ कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा(१) उत्तरकुरा, (२) रम्मगवासे, (३) एरण्णवए। -ठाणं अ०३, उ०४, सु० १६६ ४ (क) पूक्खरवरदीवड्ढपुरच्छिमद्धेमंदरदाहिणेणं तओ वासहर पव्वया पण्णत्ता, तं जहा (१) चुल्ल हिमवंते, (२) महाहिमवंते, (३) णिस । पुखरवरदीवड्ढपुरच्छिमद्धे मंदरउत्तरेणं तओ वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-(१) नीलवंते, (२) रूप्पी, (३) सिहरी । एवं पच्छद्धिमद्ध वि। ___-ठाणं ३, उ० ४, सु० १६७ (ख) पुक्खरवरदीवड्ढ पुरच्छिमद्ध दो चुल्लहिमवंता--जाव-दो सिहरी । एवं पुक्खरवरदीवड्ढ पच्चत्थिमद्ध वि। ... -ठाणं २, उ० ३, सु०६३
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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