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३७० लोक-प्रज्ञप्ति
कालोदसमुद्द वण्णओ
कालोदसमुदस्स संठाणं-
७३८. धायइसंडं णं दीवं कालोदे णामं समुद्द े वट्ट े वलयागार - संठाणसंठित सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ ।
तिर्य] लोक कालोदसमुद्र वर्णन
प० - कालोदे णं भंते ! समुद्दे कि समचक्कवालसंठाणसंठिते ? विसमचक्कवालसंठाणसंठिते ?
३०- गोपमा ! समाणसं
वालसंठाणसंठिते । '
१
३
-जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७५
कालोदसमुदस्स आयाम विक्लभ-परिक्वे
७३.१० कालो भते समूह केवतियं चक्कवालनिभे - णं केवतियं परिक्खवेणं पण्णत्ते ?
उ०- गोपमा ! अद्र जोयणसहस्साई चक्काल
एका उति जोयणसय सहस्साइं सत्तरिसहस्साइं छच्च पंचतरे जण fafe विसेसाहिए परिक्षेवे पण्णत्ते । कालोदसमुदस्स पउमवरवे पाए
- जीवा. पडि ३, उ. २, सु. १७५
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से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते णं चिट्ठइ । दोण्ह वि वण्णओ ।
- जीवा. पडि, उ. २, सु. १७५ कालोदसमुदस्स दारच उक्तं७४०. ५० – कालोदस्स णं भते ! समुद्दस्स कति दारा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - १. विजय, २. वैजयंते, ३. जयंते, ४. अपराजिए ।
प० - कहि णं भंते ! कालोदस्स समुहस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ?
उ०- गोयमा ! कालोदे समुद्द े पुरत्थिमपेरते पुक्खर वरदीव पुरत्थमद्धस्स वस्त्रस्थिमेणं सोतोदाए महानदीए उप्पि - एत्थ णं कालोदस्स समुहस्स विजए णामं दारे पण अट्ट जोयणा ( उ उच्चत्ते ने पाणं वाव राहाणी
प० – कहि णं भंते ! कालोयस्स समुद्दस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते ?
कालोदसमुद्र वर्णन -
कालोदसमुद्र के संस्थान
७३८. वृत्त एवं वलयाकार संस्थान से स्थित कालोद नामक समुद्र धातकीखण्डद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है ।
प्र० - भगवन् ! कालोदसमुद्र क्या समचक्राकार स्थित है। अथवा ) विषम चक्राकार स्थित है ?
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उ०- गौतम ! ( वह समुद्र ) समचक्राकार स्थित है, विषम चक्राकार स्थित नहीं है ।
सूत्र ७३८-७४०
कालोदसमुद्र की आयाम-विष्कम्भ-परिधि
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७३९. प्र० भगवन्! कालोदसमुद्र की चक्राकार पौड़ाई व परिधि कितनी कही गई है ?
उ०- गौतम ! आठ लाख योजन की चक्राकार चौड़ाई है । इकानवें लाख, सतरह हजार छह सौ पचहत्तर योजन से कुछ अधिक की परिधि कही गई है।
कालोदसमुद्र की पद्मवरवेदिका
वह एक पद्मव वेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है । दोनों का वर्णन यहाँ कहना चाहिए।
कालोदसमुद्र के चार द्वार
७४०. प्र० • भगवन् ! कालोदसमुद्र के कितने द्वार कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! चार द्वार कहे गये हैं, यथा - ( १ ) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित ।
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प्र० - भगवन् ! कालोदसमुद्र का विजय नामक द्वार कहाँ कहा गया है ?
उ०- गौतम ! कालोदसमुद्र के पूर्वान्त में, पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध के पश्चिम में और शीतोदा महानदी के ऊपर कालोदसमुद्र का विजय नामक द्वार कहा गया है। प्रमाण आठ योजन ऊँचा पूर्ववत् है- पावत् राजधानी है।
सूरिय. पा. १६, सु. १०० ॥
(क) सम . ६१, सु. २ । (ख) सूरिय. पा. १६ सु. १०० । ४
२ ठाणं ८, ६३ ।
प्र० - भगवन् ! कालोदसमुद्र का वैजयन्त नामक द्वार कहाँ कहा गया है ?
ठाणं २, उ. ३, सु. ६३ ।