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________________ सूत्र ७३३-७३७ तिर्यक् लोक : धातकोखण्डद्वीप वर्णन गणितानुयोग ३६६ उ०-गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा- उ०-गौतम ! चार द्वार कहे गये हैं, यथा-(१) विजय, १. विजए, २. वेजयंते, ३. जयंते, ४. अपराजिए। (२) वैजयन्त, (३) जयन्त और (४) अपराजित । ५०-कहि णं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे प्र०- भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का विजय नामक द्वार पण्णते? कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! धायइसंडपुरथिमपेरते, कालोयसमुद्दपुरत्थि- उ०-गौतम ! धातकीखण्डद्वीप के पूर्वान्त में, कालोदसमुद्र मद्धस्स पच्चत्थिमेणं, सीयाए महाणदीए उप्पि-एत्थ के पूर्वार्ध के पश्चिम में एवं शीतामहानन्दी के ऊपर धातकीखण्ड णं धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते। द्वीप का विजय नामक द्वार कहा गया है। दीवस्स वत्तव्वया भाणियब्वा । एवं चत्तारि वि दारा द्वीप का वर्णन कहना चाहिए । इसी प्रकार चारों द्वारों का भाणियब्वा। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ वर्णन कहना चाहिए। धायइसंडस्स दीवस्स दारस्स दारस्स य अंतरं- धातकीखण्डद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर७३४. ५०-धायइसंडस्स णं भंते ! दोवस्स दारस्स य दारस्स य ७३४. प्र०-भगवन् ! धातकीखण्ड के एक द्वार से दूसरे द्वार का एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? अव्यवहित अन्तर कितना कहा गया है ? उ०-गोयमा ! दस जोयणसयसहस्साई, सत्तावीसं च जोयण- उ०—गौतम ! एक द्वार से दूसरे द्वार का अव्यवहित अन्तर सहस्साई, सत्तपणतीसे जोयणसए, तिन्नि य कोसे दस लाख सत्तावीस हजार सात सौ पैतीस योजन और तीन कोश दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ जंबददीववेइयंताओ धायइसंडचरिमंतमंतर- जम्बूद्वीप की वेदिका के अन्त से धातकीखण्ड के अन्त का अन्तर७३५. जंबद्दीवस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ धायइसंड- ७३५. जम्बूद्वीप द्वीप की पूर्वी वेदिका के अन्त से धातकीखण्ड के चक्कवालस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते सत्तजोयणसयसहस्साइं पश्चिमान्त का व्यवहित अन्तर सात लाख योजन का कहा अबाहाए अंतरे पण्णते, -सम. सु. १३० गया है। धायइसंडदीवस्स णामहेऊ धातकीखण्डद्वीप के नाम का हेतु७३६. प०-से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति -"धायइसंडे दीवे ७३६. प्र.-भगवन् ! किस कारण से धातकीखण्डद्वीप धातकीधायइसंडे दीवे ? खण्डद्वीप कहा जाता है ? उ०-गोयमा ! धायइसंडे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहिं तहि उ०-गौतम ! धातकीखण्डद्वीप में जगह जगह धातकी वृक्ष पएसे धायइरुक्खा धायइवणा धायइसंडा णिच्चं हैं, धातकी वन हैं, और धातकीखण्ड हैं जो नित्य कुसुमित होते कुसुमिया-जाव-उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठन्ति । हैं--यावत्-(बहुत बहुत) सुशोभित होते हुए स्थित हैं। धायइ--महाधायइरुक्खेसु सुदंसण-पियदसणा दुवे देवा धातकी और महाधातकी वृक्षों पर महधिक-यावत्महिड्ड्यिा -जाव-पलिओवमट्टितीया परिवसंति । पल्योपम की स्थिति वाले सुदर्शन और प्रियदर्शन (नाम के) दो देव रहते हैं। से एएण?णं गोयमा! एवं वच्चइ-"धायइसंडे दीवे, गौतम ! इस कारण से धातकीखण्डद्वीप धातकीखण्डद्वीप धायइसंडे दीवे । कहा जाता है। अदुत्तरं च णं गोयमा !-जाव-णिच्चे। अथवा गौतम ! (यह नाम) शाश्वत -यावत्-नित्य है । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ देवेसु धायइसंडदीवाणुपरियट्टणसामत्थ-निरूवणं- देवों में धातकीखण्डद्वीप की परिक्रमा करने के सामर्थ्य का निरूपण७३७. ५०-देवे णं भंते ! महिड्ढीए-जाव-महेसक्खे पभू धायइसंडं ७३७. प्र-हे भगवन् ! महधिक-यावत् -महासुखी देव अणुपरिट्टित्ताणं हव्वमागच्छित्तए? धातकीखण्डद्वीप की परिक्रमा करके शीघ्र आने में समर्थ है ? उ०-हता गोयमा ! पभू ।-भग. स. १८, उ. ७, सु. ४६ उ०-हाँ गौतम ! समर्थ हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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