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लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : धातकीखण्डद्वीप वर्णन
लवणसमुदस्स धायइडस् य पदेसाणं फासो
७२२. लवण एसा धावइड दीयं पुट्ठा तहेब जहाचे णं धायइसंडं जंबुदीवे वि. सोवेव गम',
-जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १५४
घायइडस कालोयसमुदस्स व पदेसाणं फासाइ ७३० प० - धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा कालोयगं समुद्द पुट्ठा ?
उ०- हंता पुट्ठा !
० ते मंकि धाडसंडे दीये कालोए समुद्र ?
"
उ०- ते धायइसंडे, नो खलु ते कालोयसमुद्दे ।
एवं कालोस्स वि ।
-
लवणसमुद्दस्स परूवणं
७३१. १० - लवणे णं भंते ! समुद्द े जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइता धामसंडे दी पचायति ?
उ०- गोयमा ! अत्येगइया पच्चायंति, अत्थेगइया नो पच्चायति ।
लवणसमुद्र और धातकीखण्डद्वीप के प्रदेशों का स्पर्ण७२९. लवणसमुद्र के प्रदेशाद्वीप का स्पर्श करते हैं। जिस प्रकार लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप का स्पर्श करते हैं उसी प्रकार धातकीखण्ड का भी स्पर्श करते हैं । पूरा वर्णन उसी प्रकार है।
सूत्र ७२६-७३३
धातकीखण्ड और कालोदसमुद्र के प्रदेशों का स्पर्श७३०. प्र० - भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के प्रदेश कालोदक समुद्र से स्पृष्ट हैं ?
उहाँ स्पृष्ट हैं।
प्र० क्या वे (प्रदेश) धातकीखण्डदीप के है (अथवा कालोदसमुद्र के हैं ?
-जीवा० प्रति ३, उ० २, सु० १७४ धायइडस्स व जीवाणं उत्पत्ति लवणसमुद्र और धातकीखण्डद्वीप के जीवों की उत्पत्ति का
प्ररूपण
उ०- वे ( प्रदेश ) धातकीखण्डद्वीप के हैं, कालोदसमुद्र के नहीं हैं ।
इसी प्रकार कालोदसमुद्र के ( प्रदेशों के प्रश्नोत्तर) भी हैं।
७३१. प्र० - भगवन् ! लवणसमुद्र के जीव मर-मरकर धातकीखण्डद्वीप में उत्पन्न होते हैं ?
उ०- गौतम ! कुछ उत्पन्न होते हैं और कुछ उत्पन्न नहीं होते हैं।
इसी प्रकार धातकीखण्डद्वीप के जीव भी उत्पन्न होते हैं ।
एवं व
-जीवा० पडि० ३ ० २ ० १५४ धायइडदीवे - कालोयस मुद्दजीवाणं उप्पत्तिपरूवणं- धातकीखण्डद्वीप और कालोदसमुद्र के जीवों की उत्पत्ति
का प्ररूपण
७३२. १० - धायइसंडदीवे जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइसा कालोए समुद्दे ७३२. प्र० - भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के जीव मर-मरकर क्या पञ्चायंति ? कालोदसमुद्र में उत्पन्न होते हैं ?
उ०- गोयमा ! अस्थेगतिया पच्चायति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ।
- गौतम ! कोई कोई उत्पन्न होते हैं और कोई कोई उत्पन्न नहीं होते हैं ।
उ०
इसी प्रकार कालोदसमुद्र के (जीव ) भी कोई कोई ( धातकी खण्डद्वीप में उत्पन्न होते हैं और कोई कोई उत्पन्न नहीं होते हैं। धातकीखण्डद्वीप के चार द्वार
१ (क) पाठपूर्ति के लिए देखें— जीवा पडि ३.२, सु. १४६ । (ख) जंबु. वक्ख. ६, सु. १२४ ।
एवं कालोए वि, अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया तो पचायति । जीवा पडि० २,३०२, सु० १७४ धायइसंडस्स दारचउक्कं ७३३. प० - धायइडस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? ७३३. प्र० - भगवन ! धातकीखण्डद्वीप के कितने द्वार कहे.
गये हैं?