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________________ सूत्र ७२४-७२८ तिर्यक् लोक : धातकीखण्डद्वीप वर्णन गणितानुयोग ३६७ (२७) ३. धायइसंडेणं दीवे दो जयंतीओ, (२७) ३. जयन्ति नाम वाली दो राजधानियाँ हैं । (२८) ४, धायइसंडेणं दीवे दो अपराजियाओ, (२८) ४. अपराजिता नाम वाली दो राजधानियाँ हैं। (२६) ५. धायइसंडेणं दीवे दो चक्कपुराओ, (२६) ५. चक्रपुरा नाम वाली दो राजधानियाँ हैं। (३०) ६. धायइसंडेणं दीवे दो खग्गपुराओ, (३०) ६. खड्गपुरा नाम वाली दो राजधानियां हैं। (३१) ७. धायइसंडेणं दीवे दो अवज्झाओ, (३१) ७. अवध्या नाम वाली दो राजधानियाँ हैं। (३२) ८. धायइसंडेणं दीवे दो अउज्झाओ। (३२) ८. अयोध्या नाम वाली दो राजधानियां हैं। -ठाणं २, उ० ३, सु० १०० धायइसंडदीवे चोद्दस महाणईओ धातकीखण्डद्वीप में चौदह महानदियाँ७२५. धायइसंडदीवे पुरथिमद्धे णं सत्तमहाणईओ पुरत्थिाभिमुहीओ ७२५. धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में सात महानदियाँ हैं जो पूर्व कालोयसमुई समप्पेंति, तं जहा-गंगा-जाव-रत्ता, दिशा में बहती हुई कालोदसमुद्र में मिलती हैं यथा-गंगा - यावत्-रक्ता। धायइसंडदीवे पुरथिमद्धणं सत्तमहाणईओ पच्चत्थाभि- धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में सात महान दियाँ हैं जो पश्चिम मुहीओ लवणसमु समप्पेंति, तं जहा-सिंधु-जाव-रत्तवई। दिशा में बहती हुई लवणसमुद्र में मिलती हैं; यथा-सिंधु -यावत-रक्तवती। धायइसंडदीवे पच्चस्थिम णं सत्तमहाणईओ पुरत्थाभि- धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में सात महानदियाँ है जो मुहीओ लवणसमुद्दसमप्पेंति, तं जहा-गंगा-जाव-रत्ता, पूर्व दिशा में बहती हुई लवणसमुद्र में मिलती हैं, यथा-गंगा यावत-रक्ता। धायइसंडदीवे पच्चस्थिमद्धे णं सत्तमहाणईओ पच्चस्थाभि- धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में सात महानदियाँ हैं जो मुहीओ कालोयसमुद्द समप्पेंति, तं जहा-सिंधु-जाब-रत्तवई, पश्चिम दिशा में बहती हुई कालोदसमुद्र में मिलती हैं; यथा ठाणं अ०७, सु० ५५५ सिन्धु-यावत्-रक्तवती। धायइसंडे दीवे अन्तर नईओ धातकीखण्डद्वीप में अन्तर नदियाँ७२६. दो गाहावईओ, दो दहवईओ, दो पंकवईओ, ७२६. दो ग्राहावती, दो द्रहवती, दो पंकवती, दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्तजलाओ, दो तप्तजला, दो मत्तजला, दो उन्मत्तजला, दो खीरोयाओ, दो सीयसोयाओ, दो अंतोवाहिणीओ, दो क्षीरोदका, दो शीतश्रोता, दो अन्तर्वाहिनी, दो उम्मिमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ, दो गंभीरमालिणीओ, दो उर्मिमालिनी, दो फेनमालिनी, दो गंभीरमालिनी । -ठाणं अ० २, उ० ३, सु० १०० धायइसंडे चउत्तरदुसया तित्था धातकीखण्डद्वीप में दो सौ चार तीर्थ७२७. एवं धायइसंडदीवे पुरथिमद्ध वि, पच्चत्थिमद्ध' वि, ७२७. इस प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में -ठाणं ३, उ० १, सु० १४२ तीर्थ हैं। धायइसंडदीवे दव्वसरूवं धातकीखण्डद्वीप में द्रव्यों का स्वरूप'७२८. ५०-अत्थि णं भंते ! धायइसंडे दीवे दवाइं ७२८. प्र०-हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप में द्रव्य सवण्णाई पि, अवण्णाई पि-जाव वर्ण सहित भी हैं, वर्गरहित भी हैं-यावत्सफासाइं पि, अफासाइं पि, स्पर्श सहित भी हैं स्पर्शरहित भी है। अण्णमण्णबद्धाई, अण्णमण्णपुट्ठाई, परस्पर बद्ध हैं, परस्पर स्पृष्ट हैं । अण्णमण्ण बद्धपुट्ठाई, अण्णमण्णधडत्ताए चिट्ठन्ति ? परस्पर बद्ध-स्पृष्ट हैं, परस्पर सम्बद्ध हैं ? उ०—हंता गोयमा ! अस्थि, उ०-हाँ गौतम ! है। जम्बूद्वीप के समान धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में १०२ तीर्थ हैं और पश्चिमार्ध में भी १०२ तीर्थ हैं, इस प्रकार २०४ तीर्थ धातकीखण्डद्वीप में हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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