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________________ ३६२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक: धातकीखण्डद्वीप वर्णन सूत्र ७०४-७०७ एवं पच्चस्थिमद्धवि। -ठाणं ३, उ० ३, सु० १८३ इसी प्रकार (धातकोखण्ड के) पश्चिमाई में भी (तीन कर्म भूमियाँ) हैं। धायइसंडे दोवे अकम्मभूमीओ धातकीखण्डद्वीप में अकर्मभूमियाँ७०५. धायइसंडदीवे-पुरथिमद्धे गं छ अकम्मभूमिओ पण्णत्ताओ, ७०५. धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में छह अकर्मभूमियाँ कही गई तं जहा-१-६ हेमवए-जाव-उत्तरकुरा।' हैं । यथा-१-६ हैमवत्-यावत्-उत्तरकुरु । एवं पच्चत्थिमद्धे वि। इसी प्रकार (धातकीखण्ड के) पश्चिमार्च में भी (छह अकर्म -ठाणं ६, सू० ५२२ भूमियाँ कही गई) हैं। धायइसंडे दीवे धायइ दुमस्स पमाणं धातकीखण्डद्वीप में धातकी वृक्ष का प्रमाण७०६. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे गं धायइरुक्खे, ७०६. धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में धातकी वृक्ष, अढ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं बहुमज्झदेसमाए, मध्यभाग में आठ योजन ऊँचा है। अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, आठ योजन चौड़ा है, साइरेगाइं अट्ठजोयणाइं सव्वग्गणं पण्णत्ते, आठ योजन से कुछ अधिक उसकी पूरी ऊँचाई कही गई है। एवं धायइरुक्खाओ आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वया धातको वृक्ष से मन्दर चूलिका पर्यन्त जम्बूद्वीप के सम्बन्ध भाणियब्वा-जाव-मंदर चूलियत्ति, में जो कहा गया है उसके समान कहना चाहिए। एवं पच्चत्थिमद्धे वि महाधायइरुक्खाओ आढवेत्ता-जाव- इसी प्रकार पश्चिमार्ध में भी महाधातको वृक्ष से मन्दर मंदर चूलियत्ति। -ठाणं अ०८, सु०६४१ चूलिका पर्यन्त कहना चाहिए । धायइसंडदीवे वासहरपव्वया धातकीखण्ड में वर्षधर पर्वत७०७. धायइसंडदीवे पुरच्छिमद्धे णं सत्त वासहरपव्वया पण्णता, ७०७. धातकी खण्डद्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्षधरपर्वत कहे गये तं जहा-चुल्लहिमवते-जाव-मंदरे । हैं यथा-क्षुद्रहिमवंत पर्वत-यावत्-मन्दर पर्वत । एवं पच्चत्थिम वि। -ठाणं ७, सु० ५५५ इसी प्रकार पश्चिमार्ध में भी (सात वर्षधर पर्वत कहे गये) हैं। १ (क) १. धायइसंडदीव-पुरथिमीणं मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-(१) हेमवए, हरिवासे, (३) देवकुरा। २. धाय इसंडदीव-पुरस्थिमद्धणं मन्दरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-(१) हेरण्णवए, (२) रम्मगवासे, (३) उत्तरकुरा । एवं पच्चत्थिमद्ध वि । -ठाणं ३, उ० ४, सु० १६७ (ख) ठाणं ४, उ० २, सु० ३०२ । (ग) ठाण ६, सु. ५२२, ठाण ३, सु. १६७ और ठाण ४, उ. २, सु. ३०२ में-'एवं जहा जम्बुद्दीवे' -संक्षिप्तवाचना की इस सूचना के अनुसार ऊपर सूत्रों के मूल पाठों की पूर्ति की गई है। १ (क) धायइसंडे णं दीवे दो चुल्लमहाहिमवंता। धाय इसंडे णं दीवे दो महाहिमवंता, धायइसंडे ण दीवे दो णिसहा, धायइसंडे णं दीवे दो णीलवंता, धायइसंडे णं दीवे दो रूप्पी, धायइसंडे णं दीवे दो सिहरी। -ठाणं उ. ३, सु. ६६ (ख) धायइसंडदीवपुरच्छिमद्ध मंदरदाहिणेणं तओ वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-(१) चुल्लहिमवंते, (२) महाहिमवंते, (३) णिसढे । धाय इसंडदीवपुरच्छिमद्ध मंदरदाहिणणं तओ वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-(१) नीलवंते, (२) रुप्पी, (३) सिहरी। एवं पच्छत्थिमद्ध वि, -ठाणं ३, उ. ४, सु. १६७ (ग) धायइसंडदीवपुरच्छिमद्धणंछ वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा चुल्लहिमवंते-जाव-सिहरी, एवं पच्छिमद्ध वि, -ठाणं ६, सु. ५२२
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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