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________________ सूत्र ७००-७०४ तिर्यक् लोक : धातकोखण्डद्वीप वर्णन गणितानुयोग ३६१ . . . . धायइसंडो दीवो धातकीखण्ड द्वीप धायइसंडदीवस्स संठाणं धातकीखण्डद्वीप का संस्थान७००. लवणसमुद्दधायइसंडे णामं दीवे वट्ट वलयागारसंठाणसंठिते ७००. वृत्त एवं वलयाकार संस्थान से स्थित धातकीखण्ड नामक सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति । द्वीप लवणससुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है। प०-धायइसंडे णं भंते ! कि समचक्कवालसंठिते, विसम- प्र०-भगवन् ! धातकीखण्ड द्वीप समचक्राकार है या विषम चक्कवालसंठिते? चक्राकार है ? उ०-गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवाल- उ०-गौतम ! समचक्राकार है, विषमचक्राकार नहीं है। संठिते। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ धायइसंडस्स विक्खंभ-परिक्खेवं धातकीखण्डद्वीप की चौडाई और परिधि७०१.५०-धायइसंडे गं भंते! दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं, ७०१. प्र०-भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप की चक्राकार चौड़ाई एवं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? परिधि कितनी कही गई है ? उ०-गोयमा ! चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खं- उ०-गौतम ! चार लाख योजन की चक्राकार चौड़ाई एवं भेणं, एगयालीसं जोयणसतसहस्साई दसजोयणसह- इकतालीस लाख, दस हजार, नो सौ इकसठ योजन से कुछ कम स्साइं णवएगट्ठ जोयणसते किचिविसेसणे परिक्खेवेणं की परिधि कही गई है। पण्णत्ते । -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १७४ धायइसंडस्स पउमवरवेइया ___ धातकीखण्डद्वीप की पद्मवरवेदिका७०२. से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वतो समंता ७०२. वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर संपरिक्खित्ते । दोण्ह वि वण्णओ, दीवसमिया परिक्खेवेणं से घिरा हुआ है । दोनों का वर्णन (कहना चाहिए) इनकी परिधि -जीवा० पडि० ३, उ० २, सु० १७४ द्वीप के समान है। धायइसंडे दीवे वासा धातकीखण्डद्वीप मे वर्ष७०३. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा- ७०३. धातकीखण्ड द्वीप में पूर्वार्ध में सात वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं, १-७भरहे-जाव-महाविदेहे । हैं, यथा-१-७ (भरत ---यावत्-(१) भरत, (२) ऐरवत, (३) हेमवत, (४) हिरण्यवत, (५) हरिवर्ष, (६) रम्यक्वर्ष, (७) महा विदेह) महाविदेह । धाय इसंडदीवे पच्छत्थिमद्धणं सत्त वासा एवं चेव । धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमार्ध में भी इसी प्रकार (सात -ठाणं ७, सु० ५५५ वर्ष) हैं । धायइसंडे दीवे कम्मभूमीओ धातकीखण्डद्वीप में कर्मभूमियाँ७०४. धायइसंडेदीवे पुरथिमद्धे तओ कम्मभूमिओ पण्णत्ताओ, ७०४. धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में तीन कर्मभूमियाँ कही गई हैं तं जहा-१. भरहे, २. एरवए, ३. महाविदेहे । यथा-(१) भरत, (२) ऐरवत, (३) महाविदेह । १ सूरिय पा० १६ सु० १०० । २ (क) सम० सु०१२७ । (ख) ठाणं अ०४ उ०२ सु०३०६ । ३ सूरिय० पा० १६ सु० १००। ४ ठाणं० अ० २, उ० ३, सू० ६२ । ५ (क) ठाणं, ६, सूत्र ५२२ में एक महाविदेह का नाम छोड़कर शेष छह वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं। तथा ठाणं १० सूत्र ७२३ में जम्बूद्वीपति दस क्षेत्रों के नाम कहे गये हैं। ऊपर सूत्र (ठाणं ७, सूत्र ५१२२) में जो सात वर्ष (क्षेत्र) कहे हैं उनमें से महाविदेह के स्थान में महाविदेह के चार विभागों के अलग-अलग नाम देकर सूत्र ७२३ में दस की संख्या पूरी की गई हैं । धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में भी ये दस क्षेत्र हैं किन्तु सूत्र ७२३ में ऐसी कोई संक्षिप्त वाचना की सूचना नहीं हैं। धातकीखण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में महाविदेह क्षेत्र तो है ही, अतः सूत्र ७२३ के अनुसार जम्बूद्वीप के समान धातकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्धद्वीप में भी दस क्षेत्र माने जा सकते हैं।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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