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________________ सूत्र ६८८-६६१ तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन गणितानुयोग ३५७ लवणसम दस्स पुरथिम-पच्चत्थिम चरिमाण अंतरं- लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम चरमान्तों का अन्तर६८८. लवणसमुदस्स णं पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ पच्चत्थि- ६८८. लवणसमुद्र के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त का मिल्ले चरिमंते-एस णं पंच जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे व्यवहित अन्तर पाँच लाख योजन का कहा गया है। पण्णत्ते। -सम० सु० १२८ लवणसम दस्स गोतित्थस्स गोतित्थविरहितखेत्तस्स लवणसमुद्र के गोतीर्थ का और गोतीर्थ-विरहित क्षेत्र का य पमाणं प्रमाण६६. प०- लवणस्स णं भंते ! समदस्स के महालए गोतित्थे ६८६. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र का गोतीर्थ (क्रमशः निम्न पण्णते? निम्नतर अर्थात ढालुभाग) कितना विशाल कहा गया हैं ? उ०-गोयमा ! लवणस्स णं समुददस्स उभओ पासि पंचाण- उ.-गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों ओर से (जम्बूद्वीप की उति पंचाणउति जोयणसहस्साइं गोतित्थं पण्णत्ते ।। वेदिका के अन्तिम भाग से लवणसमुद्र की वेदिका के अन्तिम भाग से) पंचानवे पंचानवे हजार योजन जाने पर गोतीर्थ कहा गया है। ६६०.५०-लवणस्स णं भंते ! समुदस्स के महालए गोतित्थ- ६६०. प्र०-भगवन् ! लवणसमुद्र का गोतीर्थ-विरहित क्षेत्र विरहिते खेत्ते पण्णते? (उतार चढ़ाव रहित भाग !) कितना विशाल कहा गया है ? उ०-- गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साई उ०-गौतम ! लवणसमुद्र का गोतीर्थ-विरहित क्षेत्र दस गोतित्थ-विरहित खेत्ते पण्णत्ते । हजार योजन का कहा गया है। -जीवा. पडि. ३, उ. २, मु. १७१ गोयमदीववण्णणं गौतम द्वीप का वर्णन६६१. ५०–कहि णं भंते ! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे ६६१. प्र०-हे भगवन् ! लवणाधिपति सुस्थित (देव) का गौतम णामं दीवे पण्णत्ते ? द्वीप नामक द्वीप कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थि- उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप (नामक) द्वीप के मेरुपर्वत से मेणं लवणसमदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता- पश्चिम में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर लवणाधिएत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं पति सुस्थित देब का गौतम द्वीप नामक द्वीप कहा गया है। दीवे पण्णत्ते। बारसजोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, वह बारह हजार योजन का लम्बा-चौड़ा कहा गया है। सत्ततीस जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए सेंतीस हजार नो सौ अड़तालीस योजन से कुछ कम की किचिविसेसोणे परिक्खेवेणं । परिधि वाला है। जंबूदीवं तेणं अद्धकोणणउते जोयणाई चत्तालीस पंचण- जम्बूद्वीप की ओर सेउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ, ८८-११-योजन वह जल से ऊँचा है । (५ लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिते जलताओ, लवणसमुद्र की ओर से वह जल से दो कोश ऊँचा है। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से समंता संपरिक्खित्ते। घिरा हुआ है। तहेव वण्णओ दोव्ह वि। (पद्मवरवेदिका और वनखण्ड) इन दोनों का वर्णन पूर्ववत् है। गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो-जाव-बहुसमरमणिज्जे गौतमद्वीप नामक द्वीप के अन्दर का भूभाग अत्यधिक सम भूमिभागे पण्णत्ते । एवं रमणीय कहा गया है। से जहानामए-आलिंगपुक्खरेइ वा-जाब-आसयंति। जिस प्रकार मृदंगवाद्य पर मंढा हुआ चर्म हो-यावत देवता बैठते है। १ गोतीर्थमिव गोतीर्थ क्रमेण नीचोनीचतरः प्रवेशमार्गः। २ ठाणं १०, सु०७२० ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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